चीन के दक्षिण पश्चिमी के क्वांगशी ज्वांग स्वायत प्रदेश की रोश्वे म्याओ जाति की एक काऊंटी के एक मिडिल स्कूल में 60 गरीब लड़कियों ने समाज की सहायता से पढाई का अपना सपना साकार किया ।
क्वांग शी की रोन श्वे काऊंटी के पौ हंग मिडिल स्कूल की म्याओ जाति की लड़कियों की कक्षा में कुल 60 लड़कियां हैं।
इस कक्षा में म्याओ जाति की लड़कियों के अलावा, थो एवं यौ जाति की भी कुछ लड़कियां हैं। पर उन में एक समानता यह है कि वे सभी गरीब परिवारों की बेटियां हैं। तीन वर्ष पहले, जब वे प्राइमरी स्कूल से निकलीं, तो, उन के अपनी गरीबी से उन्हें विवश होकर स्कूल छोड़ना पड़ा था।
क्वांग शी विश्विद्यालय प्रकाशन केंद्र ने इसे जानकर 1 लाख, 50 हजार य्वान का चंदा दिया औऱ पो हंग मिडिल स्कूल में इस विशेष कक्षा की स्थापना की। यहां जिन लड़कियों को दाखिल किया गया, उन्हें बहुत कम पैसे देने की जरुरत है।
इस कक्षा की स्थापना से, पहाड़ी क्षेत्र से आयी 60 लड़कियां पुनः स्कूल वापस लौट आई ।
16 वर्षीय च्या छुन मेइ ने बताया, क्वांग शी प्रकाशन केंद्र की सहायता के बिना मैं स्कूल में नहीं पढ सकती थी।वर्ष 1996 के जुलाई माह में उस के जन्मस्थान में फिर एक बार बाढ आई, जिस से उस का घर और खेत जलमग्न हो गया। घर का सारा अनाज औऱ दूसरी घरेलू चीजों को बाढ ने बर्बाद कर दिया था । वह गरीब हो गयी। दो वर्षों बाद, उसे परीक्षा में ऊंच्चे अंक प्राप्त करने की वजह से पौ हंग मिडिल स्कूल में दाखिला मिला, लेकिन, गरीबी की वजह से वह स्कूल नहीं जा पायी। पौ हंग मिडिल स्कूल के अध्यापकों ने यह जानकर उस के लिए सहायता की खोज करनी शुरु की। अंत में क्वांग तुंग प्रांत के एक पत्रिका ने य्या छउन मेई की फीस देने की जिम्मेदारी की।
इस स्कूल में च्या छुन मेई की तरह और लड़कियां भी हैं। इन पहाड़ी लडकियों को समाज की
सहायता ही नहीं , स्कूल के अध्यापकों की अच्छी देख भाल भी मिली है। कुछ लड़कियां घरों के आर्थिक बोझ को कम करने के लिए बाहर काम करना चाहती हैं।
1999 में नये सत्र की शुरुआत के समय कक्षा में एक भी लड़की नहीं थी। स्कूल के अध्यापक अत्यन्त चिंतित थे।अध्यापक ल्याओ ने एक कार्यकर्ता के साथ स्कूल से 120 किलोमीटर दूर पहाड़ी क्षेत्र में जा कर लड़कियों को पुनः स्कूल में वापस पढने के लिए समझाया बुझाया।
पांच घंटों की बहम के औऱ दो घंटों की पैदल यात्रा के बाद दोनों यहां पहुंचे । गांव में पहुंचते ही उन्होंने लड़कियों और उन के मां-बाप को इक्कट्ठा कर एक बैठक बुलाई। पूरी एक रात समझाने बुझाने के बाद ही लड़कियों ने बाहर जाकर काम करने का सोच त्याग दिया।
इस के बाद, ये लड़कियां पहले से ज्यादा महनत से पढने लगी । छुट्टियों में वे अकसर वृद्धा सदन जाकर वहां के वृद्धाओं को सहायता देतीं। इतना ही नहीं, स्कूल के आसपास की जगहों में भी सफाई करने पहुंच जातीं।
अब वे हाई मिडिल स्कूल की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही हैं। आशा है कि वे सभी इस परीक्षा में अच्छे अंक पाएंगी और अपने अपने सपने साकार कर पाएंगी।हम उन्हें यही शुभकामना देना चाहते हैं कि उन का भविष्य और उज्ज्वल हो।
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