वर्ष 1984 के मई माह में श्री ल्यू युथ्यान ने पैदल चल कर छै हजार किलोमीटर लम्बी दीवार को नापा था , जो इस प्रकार की पैदल यात्रा का प्रथम चीनी शख्स बन गया । इस के बाद उस ने फिर चार बार विश्व के दूसरे विशाल रेगिस्तान यानी चीन के सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश में स्थित ताकलामकन रेगिस्तान को पैदल से आरपार कर दिया और एक बार कुरबानथुंकुट रेगिस्तान को पार कर दिया , मृतक बेसिन के नाम से मशहूर सिन्चांग के लोपुनॉर बेसिन का एक बार तथा तिब्बत के विरान उत्तरी इलाके का दस बार दौरा किया , वे तिब्ब्त में यालुंगजांबु नदी की पूरी विशाल घाटी का दौरा करने वाले प्रथम व्यक्ति बने ।
उल्लेखनीय बात यह है कि इन सभी खतरनाक अन्वेषण कार्यवाहियों में वे अकेला गए थे और अनेक बार चीन के अन्वेषण अभियान में पैदल यात्रा के प्रथम शख्स का नाम कमाया ।
अपने अन्वेषण अनुभवों की चर्चा करते हुए 63 वर्षीय ल्यू युथ्यान ने हमारे संवाददाता से कहाः
शुरूआत में मैं ने विदेशियों से होड़ लगाने के उद्देश्य में पैदल यात्रा की कार्यवाही की थी । अमरीकी और फ्रांसीसी अन्वेषकों ने चीन की पूरी लम्बी दीवार का पैदल से दौरा किया था , तो हम देशवासी क्यों नहीं करते । मैं अपने इस प्रकार की कोशिश को देश के लिए रौशन लाने का काम समझता हूं । लेकिन ऐसा काम करते करते मेरी यह कोशिश एक नियमित काम बन गयी है और अन्वेषण अभियान ने मेरे जीवन को भी बदला है ।
आज से 21 साल पहले 42 वर्षीय ल्यू युत्यान ने देश का रौशन बढ़ाने के उद्देश्य से प्रेरित हो कर लम्बी दीवार को पैदल नापना शुरू किया , उन की इस कोशिश से देश में काफी जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई और वे भी बहुत से लोगों की पूज्य मिसाल बन गए । इस से उन्हें बड़ी प्रेरणा मिली और उन्हों ने विश्व के दूसरे विशाल रेगिस्तान यानी सिन्चांग में स्थित ताकलामाकन रेगिस्तान को पैदल से आरपार करने की ठान ली , जिसे उन से पहले किसी भी विदेशी अन्वेषक ने पार नहीं किया था । पहली कोशिश में वे निर्जन ताकलामाकन रेगिस्तान में पैदल से 20 दिन चले , पर दिग्भ्रम होने तथा खाद्यान्न और पानी खत्म होने के कारण उन की यह कोशिश नाकाम हो गई । उन की जान भी स्थानीय चरवाहों ने बचायी ।
पहली कोशिश विफल होने के बावजूद ल्यू युथ्यान ने हार नहीं मानी ,उसी साल की सर्दियों में उन्हों ने दूसरी कोशिश की , उन्हों ने छै ऊंटों की मदद से ताकमाकन रेगिस्तान को आर पार करने में सफलता पायी , इस तरह वे विश्व में इस निर्जन रेगिस्तान को पार करने वाला प्रथम अन्वेषक बने ।
इस के बाद उन्हों ने कुरबानथुंकुट रेगिस्तान को सफलतापूर्वक पार किया , पर इस पैदल यात्रा में उन की जान गंवाते गंवाते बच गई , वे रेगिस्तान में बीमार पड़े , शरीर में सूजन पड़ा और तेज बुखार आया , दोनों पांव गल सड़ गए , डाक्टर ने उन्हें दोनों पांव को काट देने की सलाह दी , लेकिन उन्हों ने नहीं माना । वे दो वेवूर लोगों की मदद से फिर रेगिस्तान में गए और खुद वहां की जड़ी बूटी से सड़े हुए पांवों का इलाज किया । अंत में पांव सेहतमंद हो गए , इस पर डाक्टरों के आश्चर्य की ठिकाना भी नहीं रही ।
इतनी कठिनाइयों और मुसिबतों को झेलने पर भी ल्यू युथ्यान अपने इरादे पर डटे रहे । उन्हों ने सिन्चांग के निर्जन व विरान लोपुनॉर बेसिन को आर पार करने की भी कोशिश की । इस पैदल अभियान में पैसा की कमी के कारण वे केवल सात गधे और अपने 18 वर्षीय पुत्र को ले गए , यात्रा के दौरान सातों गधे
भाग कर खोए और पुत्र भी बमुश्किल से बच गया । इस की चर्चा में श्री ल्यू युथ्यान ने कहाः
लोपुबो रेगिस्तान में मैं बुरी तरह जख्म हो गया , गधे भाग गए तो मैं ने पुत्र को उन की तलाश के लिए भेजा , अनुभव नहीं होने के कारण पुत्र गुमराह हो गया । सुभाग्य से पुत्र ने रात में मेरे जलाए अलाव को देखा और वह वापस लौटा ।
अन्वेषण जीवन से श्री ल्यू युथ्यान को शुद्ध प्रकृति में लौटने का गहन अनुभव हुआ . उन का कहना हैः
बीस साल की अन्वेषयण यात्रा के चलते मैं शहरों से काफी दूर हो गया और संसारी मामलों से अज्ञात भी हुआ । मुझे गहरा अनुभव हुआ है कि मैं घर जैसी प्रकृति में घुल मिल हो गया हूं ।
जब उन्हों ने विश्व की सब से ऊंची पर्वत चोटी चुमुलांमा पर आरोहन के वक्त अपने हृद्य में उत्पन्न भावना की याद की , तो वे बहुत भावविभोर हो कर कहते हैः
चुमुलांमा पर्वत की 6 हजार मीटर ऊंचाई पर पहुंचने के बाद मैं ने पाया कि वहां की बर्फ इतना स्वच्छ और शुद्ध है कि उस पर पांव रखने का साहस भी नहीं आ सका , यह संसार से अछूता पवित्र बर्फ है , मुझे उस पर पांव रखने की हिम्मत नहीं है , ऐसा लगता है कि आगे देवता का लोक हो , मुझे मुड़ कर वापस लौटना होना है ।
तिबब्त के प्रति इस प्रकार की श्रद्धाभावना लिए श्री ल्यू युथ्यान ने वर्ष 1993 में यालुचांगबु नदी की विशाल घाटी को पैदल से पार किया । इस के उत्तरवर्ती सालों में उन्हों ने तिब्बत में कई बार पैदल यात्रा की , वे यांगत्सी नदी के उद्गम स्थल पर खड़ी गलातानतुंग बर्फीली चोटी पर चढ़े , तिब्बत के निर्जन उत्तरी इलाके में गए और चीन नेपाल सीमा तक पैदल चले ।
अपने जोखिम भरे यात्रा के दौरान उन्हों ने संदर्भ सामग्रियों को भी जुटाया और यात्रा वृतांत भी लिखी । उन का कहना है कि वे अनेक खतरनाक स्थानों की अन्वेषण खोज के अग्रिम शख्स हैं और नई पीढ़ी के अन्वेषकों के लिए कुछ न कुछ हितकारी अनुभव और ज्ञान छोड़ कर रखना चाहते है । वे कहते हैः
चीन में अन्वेषण अभियान का आरंभिक काल हो रहा है । मैं ने उच्च शिक्षा भी नहीं पायी है , जबकि विदेशी अन्वेषक बहुधा विद्वान , विशेषज्ञ , पुरातत्व शास्त्री और भूगोल शास्त्री हैं , वे किसी भी किसी क्षेत्र में विशेषज्ञ हैं । इसे देख कर मुझे बड़ा खेद हुआ है , मैं अन्वेषण के बारे में ज्ञान जुटाने की कोशिश करता हूं ।
श्री ल्यू युत्यान अपने अन्वेषण जीवन से बहुत प्यार करते हैं और भविष्य में भी अपना पैदल अन्वेषण यात्रा करते रहेंगे । उन्हों ने इस के लिए कुल अस्सी मुद्दे तय किए हैं , जिन में से कुछ पूरा हो चुका है और कुछों के लिए आगे प्रयत्न करते रहेंगे ।
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