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(GMT+08:00) 2005-06-15 20:36:11    
भारतीय संस्कृति के विद्वान थेन व्यन शेन

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सन उन्नीस सौ चौबीस में महान कवि रनीन्द्रनाथ ठाकुर की चीन यात्रा के बाद चीन औऱ भारत के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान कदम ब कदम बढ़ता गया।

उन की चीन यात्रा से पहले भारतीय संस्कृति के बारे में चीनी विद्वानों की जानकारी औऱ अनुसंधान का दायरा बहुत सीमित थे। तब वे मुख्य रुप से टैकोर की रचनाओं के अनुवाद और उन के दर्शन और साहित्यिक विचार के अनुसंधान पर अभिव्यक्त हुए थे। टैकोर की चीन यात्रा के बाद उन की रचनाओं का अनुवाद जारी रहा। इस के साथ साथ चीनी बुद्धिजीवियों में भारत के साहित्य, दर्शनशास्त्र , इतिहास औऱ समाज के बारे में जानकारी हासिल करने औऱ चीन भारत मैत्री को बढ़ाने का जोश अभूतपूर्व रुप से उजागर हो गया।

रवीन्द्रनाथ ठाकुर की चीन यात्रा की एक प्रत्यक्ष सफलता थी कि यात्रा से दोनों देशों के विद्वानों की आवाजाही और अकादमिक आदान-प्रदान में इजाफा होता गया। दोनों देशों के सुप्रसिद्ध विद्वानों ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाने के उद्देश्य से चीन भारत सोसाइटी की स्थापना की। इसी संगठन की सहायता में विश्व भारती में चीनी भवन की स्थापना की गई, तब से वह चीन औऱ भारत के बीच अकादमिक औऱ सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक महत्वपूर्ण अड्डा बन गया।

जैसा कि आप लोग जानते हैं कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान और युद्ध के कुत्तर में भारतीय साहित्य, दर्शन बौद्ध शास्त्र पर चीनियों का अनुसंधान क्रमशः शुरु हो गया। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक काल में बड़ी संख्या में संबंधित पेपर विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। सन उन्नीस सौ सोलह में पेइचिंग विश्विद्यालय में भारतीय दर्शन शास्त्र कोर्स खोला गया। इसी बीच उन्यी कई विश्विद्यालयों में बौद्ध शास्त्र , साहित्य और भाषा आदि कोर्स भी खोले गये।

सन उन्नीस सौ अठारह में कलकत्ता विश्विद्यालय के चीनी संस्क-ति औऱ भाषा के कोर्स खोले गया, यह आधुनिक भारतीय विश्विद्यालय में चीन का अध्ययन करने की शुरुआत है।

बीसवीं शताब्दी के आरम्भ काल में विदेशों में पड़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या उत्तरोतर बढ़ती गई। पर मुख्य तौर पर वे जापान, और योरुप पढ़ने जाते थे। कोई भारत में पढ़ने नहीं गया। महान कवि टैकोर की चीन यात्रा के बाद कुछ भारत जाने लगे। भारत में पढ़ने जाने वाले विद्यार्थी का नाम जन शन थी था, उस ने टैकोर के स्मरण में अपने एक लेख में कहा, वर्ष उन्नीस सौ चौबीस में टैकोर के पद चन्हों पर चलते हुए चीन से सिंगापुर हो कर कलकत्ता पहुंचा और वहां से फिर शान्तिनिकेतन गया। भारत जाने के कारण का जिक्र करते हुए उन्होंने अन्य अपने एक लेख में कहा, वह मास्टर सू मेन शू की भावना सेप्रेरित होकर भारत गया था। मास्टर सू मेन शू संस्कृत जानते थे। जिन से उन्हें संस्कृत और भारत के प्रति रुचि पैदा हो गई। उस ने आगे लिखा, टैकोर की चीन यात्रा से उसे प्रेरणा मिली। टैकोर उस के लिए गीतानजलि और पक्षी आदि कविता संग्रह ले आये। इन कविताओं से वह भारत के जंगलों, हिमच्छादित पर्वतों पर ऋषियों यहां तक कि लम्बी दाढ़ी पगड़ी आदि की ओर आकर्षित हो गया। वह अपनी आंखों से भारत को देखना चाहेंगा और संस्कृत और भारतीय संस्कृति सीखूंगा। शउरु शउरु में वह विश्व भारती में पढ़ता था, बाद में वह महात्मा गांधी द्वारा स्थापित एक कालेज में पढ़ने लगे और महात्मा गांधी के ही पास रहता था, सन उन्नीस सौ पच्चीस में वह स्वदेश लौटा।

भारत में सास्कृतिक आदान-प्रदान के कार्य में लगे रहने वाला प्रथम चीनी विद्वान श्री थेन य्वन शेन थे। वह चीन भारत के बीच सांस्कृति आदान-प्रदान बढ़ाने की उदात्त अभइलाषा से विश्व भारती गये औऱ वह आत्म बलिदान की भावना और दृढ़ मनोबल से दोनों देशों के बीच समझदारी औऱ दोस्ती को बढ़ाने का संकल्पबद्ध थे। सन 1924 में टैकोर ने चीन की यात्रा की। इश बारे में चीनी पत्र पत्रिकाओं में बड़ी संख्या में पृष्टों पर उन की रचनाओं का परिचय दिया। जिन में उन पर गहरी छाप पड़ी। तब तक वह एक कालेज में पढ़ते थे। स्नातक होने के बाद वह पढ़ाने के लिए सिंगापुर और मलेशिया गये। सन 1927 में सिंगापुर में उन्हें टैकोर से मुलाकात हुई। वे टैकोर की बुद्धिमता औऱ विचार से आकर्षित हुए। टैकोर ने उन्हें भारत जाने को उत्साहित किया औऱ विश्व भारती में पढ़ाने का निमंत्रण किया। शअरी थे व्यन शेन सितम्बर 1928 में विश्व भारती पहुंचे।

विश्व भारती में उन्होंने बौध विद्या औऱ भारतीय संस्कृति का अध्ययन करने के साथ साथ चीनी साहित्य का कोर्स खुलवा दिया औऱ चीनी भाषा पढ़ाने और संस्कृत सीखने लगे।

इसी बीच वह लेख लिख कर चीन की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में भआरत की स्थिति राष्ट्रीय आन्दोलन, घर्ष, संस्कृति और भारत में प्रवासी चीनियों की हालत का परिचय दिया। वर्ष 1931 उन्होंने समूचे भारत की यात्रा की। औऱ भारत की यात्रा का वृत्तान्त नामक पुस्तक लिखा।

वर्ष 1935 में उन्होंने अन्य एक पुस्तक लिखी, नाम था भारत के बारे में इस रचना भारत की राजनीति, अर्थव्यवस्था, संस्कृति , विचार , धर्म और रीति रिवाज आदि सभी क्षेत्रों की स्थिति का परिचय गया।

वर्ष उन्नीस सौ अट्ठाइस के अक्तूबर में मशहूर चीनी कवि श्वू जी मो योरुप से स्वदेश लौटने के रास्ते में विशेष तौर पर भारत के शान्तिनिकेतन में जाकर टैकोर से मुलाकात की। इस पर टैकोर बेहद प्रसन्न था। औऱ उन के स्वागत में एक ही पार्टी आयोजित की। कवि शू जी मो ने टैकोर के निमतर्ण पर विश्व भारती में कंफ्यूशिस की जीवनी ओऱ विचार संबंधी भाषण दिया। वह केवल तीन दिन भारत में ठहरे। उन के सिवाए, बीसवीं और तीसवीं दशकों में अनेक चीनी कवियों, लेखकों औऱ अनुसंधान कर्ताओं ने भारत की यात्रा की, जिन में सुप्रसिद्ध लेखक शू दी एन , चित्रकार गाओ ज्येन फू ,विद्वान शू जी शेन भी शामिल थे।

भारत में कई वर्ष गुजर के बाद श्री थ्येन य्वन शेन ने टैकोर के साथ मिल कर चीन भारत सोसाइटी की स्थापना पर विचार विनिमय किया। थे व्यन शेन का यह विचार था कि चीन भारत के एकता को सुदृढ़ बनाने के लिए यह आवश्यक है कि दोनों देश एक दूसरे को बखूबी समझे औऱ एक दूसरे की संस्कृति का अध्ययन करे। टैकोर थे व्न शेन के विचार से पूरी तरह सहमत थे। चीन में श्री थे व्न शएन के इस विचार का जल्दी ही अनुमोदन किया गया। चीनी सांस्कृतिक और अकादमिक जगतों के गणय मान्य व्यक्ति टैकोर के साथ सहोयग करने को पूरी तरह तैयार थे। इन व्यक्तियों में खास तौर पर ज्ये व्येन फेई और देई जी थाओ का उल्लेख किया जाना चाहिए। उस समय ज्ये व्येन फेई, केन्द्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठा के महा निदेशक थे। वे चीन भारत मैत्री के विकास को बहुत महत्व देते थे।

वर्ष 1935 में चीन भारत सोसाइटी की औपचारिक स्थापना हुई। श्री ज्ये व्येन फेई सोसाइटी के अध्यक्ष के पद पर चुने गये। इस तरह इतिहास में पहली बार चीन औऱ भारत के बीच गैर सरकारी सांस्कृतिक आदान-प्रदान संगठ अलग अळग चीन और भआरत में स्थआपित हुए। वर्तमान सामग्री के अनुसार, चीन भआरत सोसाइटी द्वारा विशअव भआरती में पढ़ने भेजा गया पहला विद्यार्थी वेई फंग च्चयांग था। थे व्न शेन की सिफारिश औऱ ज्ये व्येन फेई की अनुमति पर वेई फंग च्यांग को भारतीय साहित्य और इतिहास पढ़ने भेजा गया था।वर्ष 1933 से 1939 तक वह वहां पढ़ते रहे। वेई फंग च्यांग एक अध्ययनशील विद्यार्थी विश्व भारती में वे टैकोर के पास ही रहे।

विश्वभारती में चीनी भवन की स्थापना करना , चीन भारत सोसाइटी की एक प्रमुख योजना थी। यह भी टैकोर की एक अभिलाषा थी। इस योजना पर अमल करने के उद्येश्य से टैकोर और थे व्न शेन ने बार बार विचार विमर्श किया। चीनी भवन के निर्माण के लिए धन राशि एखत्र करने के लिए थे व्न शेन भारत चीन आते जाते रहे। इस योजना पर अमल करने के लिए टैकोर ने पत्र लिख कर भारत औऱ चीन के संबंधित व्यक्तियों से सहायता देने की अपील की।ज्ये व्येन फेई और अन्य चीनी विद्वानों ने टैकोर के नाम पत्र में विश्व भारती में चीनी भवन के निर्माण के लिए कहा, धन राशि एकत्र करने के बारे में प्रोफेसर थे के साथ सहयोग करने में मैं यथासंभव सहायता देने के तैयार हूं। चीन और भारत दोनों चौदह अप्रेल उन्नीस सौ सैंतीस में चीनी भवन की स्थापना हुई। यह चीन भारत सांस्कृतिक आदान-पर्दान के इतिहास में एक और भवन घटना थी। जिसे राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता महात्मा गांधी और जवाहरालाल नेहरु की प्रशंसा मिली। महात्मा गांधी, किसी पहले से तय की गई। महत्वपूर्ण गतिविधइयों में भआग लेने के कारण चीनी भवन की स्थआपना की रस्में नहीं आ सके, बीमारी की वजह से जवाहर नेहरु भी रस्म में भआग न ले सके। नेहरु की बेटी इन्द्रिया, अपने पिता की ओर से रस्म में शहीक हुई। जवाहरलाल नेहरु ने टैकोर के नाम पत्र में कहा, खेजजनक बात है कि मैं कल शान्तिनिकेतन में आयोजित चीनी भवन की स्थापना समारोह में भआग नहीं ले सकूंगा। उन्होंने रस्म को महान समारोह की संज्ञा दी। उन्होंने कहा इस ने चीन और भारत को कस कर एक सूत्र में बांध दिया है, जिस से चीन औऱ भारत एक दूसरे के और ज्यादा निकट आए हैं।

इन दिन, विश्वभारती के कोने कोने में त्यौहार का सा वातावरण व्याप्त था। समारोह में टैकोर ने उत्साहपूर्ण भाषण दिया। उन्होंने कहा, आज मेरे लिए एक महान दिवस है। मैं एक लम्बे अरसे से इस दिवस के आगमन का इन्तजार करता आया हूं। चीन और भारत की जनता की पारस्परिक समझ औऱ मैत्री , दिन ब दिन बढ़ती जाएगी। चीनी विद्वान औऱ छात्र यहां आकर हम लोगों के साथ दुख सुख में रहेंगे औऱ वे एख समान कार्य के लिए कोशइश करेंगे। और दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध की पुनः स्थापना करेंगे। टैकोर ने कहा, चीन और भारत की सीमा हजारों गीलों तक फैली हैं। उस में आने जाने के लिए असंख्या मार्ग है। ये मार्ग युद्ध घोड़ों और मीशनगणों से नहीं बने हैं। वे शान्तिदूतों के पद चन्हों से बने हैं। आज दोनों देशों की जनता इन मार्दों को और चौड़ा व समतल बनाएगी ताकि आदान प्रदान को और घनिष्ट बनाया जा सके।

शअरी थए व्न शएन को चीनी भवन के महा निदेशक के पद पर नियुक्त किया गया। अपने भआषण में उन्होंने टैकोर के प्रति इस बात के लिए आभार व्यक्त किया कि उन्होंने चीन भारत सांस्कृतिक आदान प्रदान की पुनः स्थापना में उल्लेखनीय योगदान किया और यह विचार भई व्यक्त किया किवे और उन के शिष्य भारत और चीन के सांस्कृतिक कार्य के आदान-प्रदान में इजाफा करने की हर चन्द कोशिश करेंगे।

श्री थे व्न शेन ने चीनी भवन की स्थापना और चीन भारत के सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ाने में जो योगदान दिया है, वह अमिर रहेगा। चीनी भवन की स्थापना के बाद प्रोफेसर थए व्न शएन बौद्ध विद्या, दर्शन शास्त्र और साहित्य पर अनुसंधान में लके रहे । उन्होंने कुल मिलाकर अंग्रेजी में 38 चीनी में दस रचनाएं लिखीं।