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(GMT+08:00) 2005-06-09 08:29:55    
कजाख जाति की लड़की कानरगुल की सपना

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चीन के सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश की निवासी कजाख जाति की लड़की कानरगुल इस साल 17 साल की है , जो सिन्चांग की राजधानी ऊरूमुची के दक्षिण उपनगर में आबाद म्योलको गांव में रहती है । इतवार के दिन सुबह सुबह जब वह उठती है, तो उस के लिए पहला काम है कि पानी ला कर बीमारी के कारण पलंग को पकड़े अपने पिता की सेवा करती है और उन के हाथ मुंह पानी से धुलाती है ।

पिता को धुलवाने के बाद सुश्री कानरगुल फिर घर में पालतू बकरियों को चार चराने लगी । इस सब कामों से निपटने के बाद कानरगुल पाठ्यपुस्तक ले कर मुक्त कंठ से पाठ पढ़ने लगी कानरगुल का घर एक चरागाह में बसा हुआ है , जहां खूबसूरत प्राकृतिक दृश्य और कजाख जाति की अनोखी रीति रिवाज देखने को मिलता है ।

सुश्री कानरगुल का परिवार कभी बहुत सुखमय रहा था , परिवार में माता पिता के अलावा दो बड़े भाई हैं , लेकिन इधर के सालों में परिवार में कई दुखद घटनाएं हुईं , माता जी बीमार पड़ी , जो भारी श्रम करने में अक्षम हो गई । पिता जी को उच्च रक्तचाप और हृद्य का रोग हुआ , जो श्रम करने तथा अपने आप की देखभाल करने की क्षमता से भी वंचित हो गया , और तो बीमारी के इलाज के लिए हर साल दस हजार य्वान का खर्च हुआ करता है । इन के अलावा तीनों भाई बहन की पढ़ाई तथा जीवनयापन का खर्च भी जुड़ता है , जिस के परिणामस्वरूप कानरगुल परिवार का निश्चिंत जीवन बहुत कठिन पड़ गया ।

परिवार की कठिनाइयों को दूर करने के लिए सुश्री कानरगुल अपने दो भाइयों के साथ मिल कर पढाई के अवकाश समय में पर्यटन सेवा का काम करने लगी । इस के अलावा उस ने घर के कामकाज को भी अपने हाथ में ले लिया , वह घर का खाना पकाती है और बकरियों को चराती है । अपने कंधे पर इतना भारी बोझ पड़ने पर भी कानरगुल अपनी पढ़ाई पर असर पड़ने नहीं देती है , पढ़ाई में वह हमेशा स्कूल के पहले तीन स्थान पर रहती है । सुश्री कानरगुल के दिल में हमेशा एक सपना संजोई हुई है कि एक दिन वह जरूर देश की राजधानी पेइचिंग में विश्वविद्यालय में पढ़ने जाए ।

एक संयोग की बात थी कि इस साल की शुरूआत में उसे पेइचिंग जाने का मौका मिला और उस ने खुद आंखों से लम्बे समय से चाहत शहर देखा । बात यह थी कि इस साल चीनी कम्युनिस्ट नौजवान लीग तथा राष्ट्रीय छात्र संघ द्वारा संयुक्त रूप से देश भर में श्रेष्ठ छात्रों के चयन की गतिविधि चली , इस में सुश्री कानरगुल भी विजयी हुई । पेइचिंग में आयोजित पुरस्कार समारोह में भाग लेने के लिए वह पेइचिंग आई , यह कानरगुल की पहली हवाई सफर थी और पहली पेइचिंग यात्रा भी । पेइचिंग में मात्र दो दिन ठहरने पर भी यह यात्रा उस के लिए आजीवन अविस्मरणीय है ।

सुश्री कानरगुल ने बड़ी खुशी से कहा कि पेइचिंग कितना बड़ा शहर है , थ्येनआनमन मंच इतना आलीशान है , देख कर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा । मैं अवश्य ही अच्छी तरह पढ़ूंगी और पेइचिंग में पढ़ने आने के लिए भरसक कोशिश करूंगी ।

इस सपना से प्रेरित हो कर सुश्री कानरगुल कड़ी मेहनत करती रही , इस से बहुत से लोग प्रभावित हो गए । गांव मुखिया ने बताया कि बहुत से लोगों ने उसे मदद भी दी , यहां तक शहर के लोगों ने भी उस के घर आकर उसे पढ़ाई के लिए एक साल का जरूरी पैसा प्रदान किया । सुश्री कानरगुल के बारे में रिपोर्टताज के समय शहर से आए मेहमान , गांव मुखिया तथा स्कूल के शिक्षक भी उपस्थित थे, उन्हों ने कानरगुल के परिवार को पैसा के अलावा चावल , मैटा और खाद्यतेल भी लाए । सुश्री कानरगुल ने बड़ा भाव विभोर हो कर कहाः मैं चाचा दादा के बहुत बहुत आभारी हूं , मैं अवश्य अच्छी तरह पढूंगी और पेइचिंग में उच्च शिक्षा लेने की सपना को साकार करूंगी ।

पारिवारिक जीवन के भारी बोझ से दब कर सुश्री कानरगुल की माता जी की मुस्कान बहुत दिनों से गुल गयी थी , इस समय इतने ज्यादा हितैषी लोगों को घर आए देख कर वे फिर प्रसन्न हो उठी और उन के चेहरे पर फिर मुस्कराहट खिली और बेटी का साथ देते हुए मेहमान के स्वागत का गीत गाया । गीत के बोल इस प्रकार हैः आदरनीय मेहमान आए , पधारे , हमारे तंबू में बैठ आएं , आप को पेश है महकता हुआ दूध का चाय ।

कानरगुल के बड़े भाई ने भी खुशी में बह कर कजाख जाति के वाद्य तुंबुला बजा कर एक कजाख धुन पेश की , मधुर धुन के साथ कानरगुल प्रफुल्लित हो कर कजाख नाच नाचने लगी । कमरे में तालियों की आवाज के साथ हर्षोल्लास गूंज उठा । अपनी पुत्री पर माता जुबिरा को बड़ा गर्व महसूस हुआ । उन का कहना हैः

मेरी बेटी की पढ़ाई बहुत अच्छी है , मैं उस पर गर्व करती हूं । चाहे किसी प्रकार की कठिनाई क्यों न हो , मैं उसे दूर करने की कोशिश करूंगी और बेटी को अच्छे से अच्छे विश्वविद्यालय में भेज दूंगी ।

श्री सेरीक सुश्री कानरगुल का अध्यापक है , उन्हों ने कहाः कानरगुल एक श्रेष्ठ छात्रा है , वह मेहनत से पढ़ती है और पढ़ाई में आने वाली समस्याओं को हल करने में सक्रिय है और वह दूसरे छात्रओं को मदद भी देती है और रिटायर अध्यापकों व गरीब सहपाठियों को जीवन में मदद करती हैं । मेहमानों के चले जाने के बाद सुश्री कानरगुल फिर अपनी पढ़ाई में लग गई ।