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तिब्बत का सांस्कृतिक व धार्मिक केंद्र--जाशलुम्बु मठ

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चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के शिकाज़े प्रिफ़ैक्चर के पश्चिमी भाग में खड़े निमा पर्वत पर स्थित जाशलुम्बु मठ तिब्बती धर्म के गरुबा संप्रदाय के चार बड़े मठों में से एक है। तिब्बती भाषा में जाशलुम्बु का मतलब होता है मंगलमय। ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार, जाशलुम्बु मठ की स्थापना वर्ष 1447 में हुई।इस का निर्माण गरूबा संप्रदाय के गुरु ज़ोंन घा बा के शिष्य प्रथम दलाई लामा कन तुन जू बा ने कराया। चौथे पंचम लामा लो सांग छ्यू ची के समय इस मठ का विस्तार किया गया। इस के बाद जाशलुम्बु मठ पंचन लामा की हर पीढ़ी का निवास स्थान बन गया। आज भी इस मठ में पांचवें से नौवें पंचन लामा के पार्शिव शरीर विभिन्न स्तूपों में रखे हैं । मठ दक्षिणी तिब्बत का धार्मिक-सांस्कृतिक केंद्र भी है।

जाशलुम्बु मठ में पांचवें से नौवें लामा के पार्शिव शरीर स्तूपों मे रखे हैं । वर्ष 1989 में दसवें पंचन लामा ने शिकाज़े में महानिर्वाण प्राप्त किया। वर्ष 1990 में चीन की केंद्रीय सरकार ने जाशलुम्बु में दसवें पंचन लामा के पार्शिव शरीर के स्तूप भवन के निर्माण पर छै करोड़ बयालीस लाख चालीस हज़ार युवान की धनराशि खर्च की। तीन वर्षों के निर्माण के बाद वर्ष 1993 में दसवें पंचन लामा के पार्शिव शरीर को सुरक्षित रखने वाला स्तूप भवन पूरा हुआ। इसका क्षेत्रफल 1933 वर्ग मीटर है और इसके निर्माण में मुख्य तौर पर प्राचीन तिब्बती वस्तु शैली अपनायी गई है। स्तूप का क्षेत्रफल 253 वर्ग मीटर है और ऊंचाई 11.55 मीटर। इस स्तूप में रखे 24 प्रकार के रत्नों की संख्या 6794 है। भवन के चारों ओर थांग खा चित्र रखे हुए हैं। अनुयायी इस में प्रवेश कर सदिच्छा से प्रार्थना करते हैं।

जाशलुम्बु मठ अपने गहरे धार्मिक रंग तथा विशेष वस्तु शैली से विश्व के विभिन्न देशों के पर्यटकों व बौद्ध अनुयायियों को आकृष्ट करता है। नीदरलैंड से आई सुश्री कोचे ने बताया कि वर्ष 2000 में उन्हों ने जाशलुम्बु मठ का दौरा किया था। चार साल बाद अब अपने प्रेमी के साथ वे दोबारा इस पवित्र मठ को देखने आईं । उन्होंने कहा जाशलुम्बु मठ की हर चीज़ उनकी नज़र खींचती है। कोचे ने कहा

"मुझे महसूस हुआ कि तिब्बत बहुत महान है। जाशलुम्बु मठ की सभी मूर्तियां और भित्तिचित्र बहुत सुन्दर हैं। मेरा विचार है कि यह एक सच्ची कला है जिसे मैं बहुत पसंद करती हूँ।"

वर्तमान में जाशलुम्बु में आठ सौ ज्यादा लामा रहते हैं। वे तपस्या करने के साथ काम भी करते हैं और तृतीयक उद्योग के विकास में लगे हैं। जाशलुम्बु के लामाओं ने एक फ़र्नीचर कारखाने की स्थापना की है और सेवा व्यवसाय भी शुरू किया है। 18 वर्षीय लामा बा सांग चार साल पहले तपस्या के लिए जाशलुम्बु मठ आए। उन्हों ने बताया कि जाशलुम्बु मठ का जीवन बहुत नियमित है। बौद्धसूत्र पढ़ने के अलावा, हर लामा को अपना काम आप करना पड़ता है। लामा बा सांग ने कहा

"हमारे यहां पांच सौ लामा मुख्य तौर पर सूत्र पढ़ते हैं, जबकि अन्य तीन सौ से ज्यादा काम करते हैं। सुबह हम साढ़े पांच बजे से आठ बजे तक सूत्र पढ़े जाते हैं और नौ बजे से कुछ लामा काम करते हैं तो कुछ मठ का प्रबंध करते हैं। कुछ लामा उत्पादन केंद्र जाते हैं और कुछ प्रतिरक्षा का काम करते हैं । हम अलग-अलग तौर पर भिन्न-भिन्न काम करते हैं।"

लामा बा सांग ने बताया कि उस की इच्छा मेहनत से बौद्धसूत्र पढ़ कर बौद्धधर्म की ज्यादा स् ज्यादा जानकारी हासिल करना और भविष्य में उच्च स्तर का बौद्ध बनना है। जाशलुम्बु मठ के अधिकतर लामाओं की अभिलाषा बा सांग जैसी ही है।

इस पवित्र मठ में आकर हमारा दिल भी स्वच्छ हो गया। विशाल शानदार गाम्बा बुद्ध की मूर्ति बार-बार सामने आती रही। कामना है कि भविष्य के जिम्मेदार बौद्ध हमें और उज्ज्वल व सुनहरा भविष्य प्रदान करेंगे।

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