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(GMT+08:00) 2005-06-03 08:54:08    
सिन्चांग का मौला शेरफकान दमोल्ला

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चीन के सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश में अनेक अल्पसंख्यक जातियों के लोग रहते हैं , उन में से कई जातियों में इस्लाम धर्म की आस्था होती है । प्रस्तुत है सिन्चांग के एक मशहूर धार्मिक व्यक्ति इस्लाम धर्म के मौला शेरफकान दमोल्ला के संबंध में एक आलेखः रोज सुबह साढे चार बजे , सिन्चांग की राजधानी ऊरूमुची शहर में जब संनाटा छाया भी रहा है , तो 98 वर्षीय मौला दमोल्ला शेरफकान बाहर निकल कर मस्जिद में नमाज अदा करने चले जाते हैं ।

इस्लाम धर्म के अनुसार हरेक मुसलमान रोज मक्का की दिशा में मुख करते हुए पांच बार नमाज अदा करते है । हर शुक्रवार को वे मस्जिद में जा कर जुमा करते हैं । वयोवृद्ध शेरफकान दमोल्ला को इस नियम में पक्का आस्था है और वे बड़ी उम्र में भी रोज मस्जिद जाते हैं ।

बीसवीं शताब्दी के शुरू में श्री शेरफकान का जन्म सिन्चांग के तुरफन बेसिन क्षेत्र में असीम धार्मिक विश्वास रखने वाले परिवार में हुआ था , उन के पूर्वजों में से अनेक मशहूर मौला निकले थे । अपनी सात साल की उम्र में वे धार्मिक स्कूल में पढ़ने लगे ,फिर सिन्चांग के दक्षिणी भाग में स्थित प्रसिद्ध नगर काश्गर में धार्मिक उच्च शिक्षालय में पढ़ने गए । वहां से स्नातक होने के बाद वे अपने गृहस्थान में मौला के रूप में काम करने लगे । अस्सी के दशक में वे सिन्चांग की राजधानी ऊरूमुची के जामा मस्जिद में इमाम बने , जो जामा मस्जिद के धार्मिक मामलों का संचालन करते हैं ।

श्री शेरफकान कद में लम्बा नहीं है , पर देखने में बड़े दयालु और बुद्धिमान लगते हैं । उन की सफेद लम्बी दाढ़ी हवा की झोंके के साथ हल्की हल्की हिलती है , जिस से उन का अपना व्यक्तित्व झलकता है । इस समय श्री शेरफकान ऊरूमुची के एक मशहूर मस्जिद में काम करते हैं , जिस का नाम है यांगहांग जामा मस्जिद । मस्जिद मुसलमान आबादी क्षेत्र में खड़ा है और विशेष इस्लामी शैली में निर्मित यांगहांग जामा मस्जिद बहुत भव्य और पाक लगता है ।

ऊरूमुची का यह जामा मस्जिद सौ साल पुराना है , नब्बे के दशक में वह फट पुराना पड़ गया था , इस के जीर्णोद्धार के लिए मस्जिद के इमाम होने के नाते श्रे शेरफकान ने सरकार से मदद मांगी , जो जल्द ही स्वीकार की गई तथा विशेष धन राशि प्रदान की गई । इस पर इमाम शेरफकान बेहद खुश हुए और मस्जिद के जीर्णोद्धार के काम में व्यस्त रहे , निर्माण का काम पूरा होने तक वे रोज कार्य स्थल पर जाते रहे । पुनःनिर्मित यांगहांग जामा मस्जिद का क्षेत्रफल तीन हजार वर्गमीटर हो गया , जिस में हजार लोग नमाज पढ़ सकते हैं । इस की चर्चा में श्री शेरफकान ने कहाः हमारे मस्जिद के जीर्णोद्धार के लिए सरकार ने बीस लाख य्वान का अनुदान किया , इस के सहारे हम ने मस्जिद को महल सरीखा खूबसूरत बनाया है ।

अपने जीवन में मौला शेरफकान इस सिद्धांत पर कायम रहते हैं कि गरीब लोगों के शादी ब्याह रस्म में वे अवश्य निःशुल्क पाठ पढ़ते हैं ,कभी एक कोड़ी भी नहीं लेते हैं । वे बेरोजगार युवा लोगों को मस्जिद में बुला कर अस्थाई नौकरी देते हैं , ताकि वे गुमराह होने से बच जाएं । जब किस जगह प्राकृतिक आपदा पड़ी , तो राहत सहायता के लिए वे चंदा जुटाने का काम भी संभालते हैं । वे हमेशा जन कल्याण काम में व्यस्त रहते हैं ।

सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश में देश के सब से ज्यादा मुसलमान रहते हैं , वहां की 13 जातियों में 10 इस्लाम धर्म मानती हैं । मुसलमानों की संख्या एक करोड़ से भी ज्य़ादा है । चीन में धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए धार्मिक मामला नियमावली लागू हुई है , इस पर श्री शेरफकान कहते हैः अब धार्मिक गतिविधियों को कानूनी गारंटी मिल गई है , सभी काम सुव्यवस्थित हो गया । मुझे लगा कि हमारा समाज आधुनिक सभ्यता , जनवाद और कानून व्यवस्था के साथ अग्रसर रहा है ।

नए चीन की स्थापना तक चीन के सिन्चांग से मात्र 50 मुसलमान मक्का जा कर काजी हुए थे , पचास साल के बाद आज हर साल हजार से ज्यादा मुसलमान मक्का की तीर्थ यात्रा पर जाते हैं । मौला शेरफकान ने कहा कि उन्हों ने क्रमशः नाइजिरिया , फ्रांस और सऊदी अरब आदि अरब देशों की यात्रा की थी और उन के साथ धार्मिक आदान प्रदान किया । उन्हों ने कहा कि यह सब देश में बेहतर धार्मिक वातारवण होने से ही संभव हुआ है ।

सिन्चांग का इस्लाम शास्त्र प्रतिष्ठान सिन्चांग के विभिन्न मस्जिदों के लिए धार्मिक प्रतिभाओं को प्रशिक्षित करने वाला एक उच्चशिक्षालय है । श्री शेरफकान समय समय पर वहां लेक्चर देने जाते हैं , वे अनुभवी हैं और इस्लाम धर्म के ज्ञाता हैं , इसलिए छात्र उन का बहुत सम्मान करते हैं । प्रतिष्ठान के उप कुलपति श्री अब्दुल रेकिप ने इसकी चर्चा में कहाः उन का जीवन इस्लाम धर्म से अभिन्न जुड़ा हुआ है , वे कुरान के नियमों का कड़ाई से पालन करते हैं और जन समुदाय में कुरान के शिष्टाचार नियमों का प्रचार प्रसार करते हैं , वे सादा व शुद्ध जीवन बिताते हैं और हर समय सहृद्यता का व्यवहार करते हैं ।

श्री शेरफकान की संतानें बहुधा उच्च शिक्षा पा चुके हैं , एक पुत्र और एक पोता धार्मिक कर्मचारी भी हैं । हां , उन के एक पुत्र को कभी मादक द्रव की बुरी लत लगी थी , उसे सुधारने के लिए शेरफकान ने कुरान को ले कर उसे शिक्षा दी तथा उस से कुरान को लेकर कसम भी करवाया, जल्द ही पुत्र की लत दूर गई और वह एक कामयाब व्यापारी बन गया।

श्री माहमुतकान शेरफकान का दामाद है ,उस ने कहा कि उस के ससुर की सेहत बहुत अच्छी है , इसे उन के पक्के धार्मिक विश्वास तथा शांत जीवनयापन से लाभ प्राप्त हुआ है । वे कहते हैः वे जीवन में बहुत नियमबद्ध हैं , सुबह चार बजे उठते हैं , सुबह का नमाज अदा करने के बाद दो घंटे पढ़ते हैं , फिर घूमने जाते हैं और इस्लामी सूत्र पढ़ते हैं और साधारण घरेलू भोजन करते हैं और मानसिक रूप से खुश रहते हैं ।

तड़के की धुंध में मस्जिद से मजलिस की आवाज गूंज उठी श्री शेरफकान नमाज अदा करने जा रहे हैं , उन के दो युवा विद्यार्थी उन्हें थोड़ा सा सहारा देते हुए साथ हो लिए । वयोवृद्ध मौला ने हमें बतायाः जब मैं चल फिर सकता हूं , तब मैं मस्जिद जाना नहीं छोड़ता हूं