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(GMT+08:00) 2005-06-01 13:35:40    
ल्यू ली छांग में प्राचीन चीनी संस्कृति की खोज

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प्रिय दोस्तो , चीन की राजधानी पेइचिंग की आधुनिकता के बारे में आप बहुत कुछ जानते हैं, और मेरा मानना है कि इस बहुत प्राचीन शहर के इतिहास और सांस्कृतिक परम्परा की जानकारी पाने में भी आप की रुचि होगी ही। तो आज के चीन का भ्रमण कार्यक्रम में चलिए निकते हैं पेइचिंग की एक प्रसिद्ध सड़क के दौरे पर। यह दौरा आपसे पेइचिंग का ऐतिहासिक व सांस्कृतिक शोध करवायेगा।

चीन में खुला द्वार व रूपांतरण की नीति लागू होने के बाद पिछले बीसेक वर्षों में अभूतपूर्व परिवर्तन आया है। तेज आर्थिक व व्यापारिक विकास के चलते समूचे चीन में नये नजारे दिख रहे हैं। राजधानी पेइचिंग भी अपवाद नहीं है। पेइचिंग में चारों ओर चहल- पहल दिखती है और अनेक गगनचुम्बी इमारतें व डिपार्टमेंट स्टोर कतारों में खड़े हैं। पर इन ऊंची आधुनिक इमारतों के पीछे पेइचिंग के इतिहास की झलक भी देखी जा सकती है। शहर के दक्षिणी भाग की पुरानी ल्यू ली छांग सड़क शहर की प्राचीन संस्कृति का नमूना पेश करती है।

तांगा चालक मंग तेह पाओ इस वर्ष 57 वर्ष पार कर चुके हैं। पिछले दसेक सालों से वे हर रोज इस सड़क के एक सिरे से दूसरे तक आते-जाते रहे हैं और इसलिये इस से पूरी तरह वाकिफ हैं।

उन्हों ने इस सड़का का परिचय देते हुए कहा कि यह सड़क छिंग राजवंश के समय बनी। तब यहां पत्थर की एक भट्टी थी, जो विशेष तौर पर राजमहल के लिए ल्यू ली नामक रंगीन खपरैल तैयार करती थी।

मंग तेह पाओ ने भी बताया कि इस सड़क का नाम खपरैलों की इस भट्टी के कारण ही ल्यू ली पड़ा। 13वीं शताब्दी में य्वान राजवंश के समय शाही परिवार ने इसी जगह ल्यू ली खपरैल बनवाने के लिए जो भट्टी स्थापित की, वह काफी छोटी थी।17वीं शताब्दी में पेइचिंग के विस्तार के बाद यह क्षेत्र शहर में विलीन हो गया और खपरैल भट्टी को पेइचिंग के बाहर ले जाया गया, लेकिन इस क्षेत्र ने अपना पुराना नाम फिर भी बरकरार रखा।

खैर इस ने पेइचिंग की प्रसिद्ध सांस्कृतिक सड़क का रूप कैसे धारण किया आइए अब करें इस कारण की चर्चा।

17वीं शताब्दी में छिंग राजवंश के दौरान ल्यू ली छांग क्षेत्र कई शाही अधिकारियों का निवासस्थल था। इसके राजमहल के नजदीक होने से शाही परीक्षा में शामिल होने वाले युवक भी यहां ठहरना पसंद करते थे। ये शाही अधिकारी व पढ़े-लिखे युवक पुस्तक और अन्य सांस्कृतिक सामग्री खरीदने के शौकीन थे। इसे ध्यान में रखकर देश के अनेक क्षेत्रों के पुस्तकविक्रेता यहां एकत्रित हुए और पुस्तक भंडारों के लिए सुंदर मकान भी बनवाने लगे। धीरे-धीरे यहां पेइचिंग का सब से बड़ा पुस्तक बाजार सामने आया और पुस्तकों से संबंधित स्याही, कागज, कूची, के अलावा मूल्यवान पत्थर, चित्र आदि सांस्कृतिक व कलात्मक कृतियां भी बिकने लगीं।

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