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(GMT+08:00) 2005-05-25 13:38:28    
तिब्बती जाति बहुल कान नान क्षेत्र का तीर भेंट पर्व

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प्रिय मित्रो , जैसा कि आप जानते हैं, चीन की 55 अल्पसंख्य़क जातियां एक लम्बे अर्से से मेलमिलाप से साथ-साथ रहती आयी हैं और उन्होंने अपने रंग-बिरंगे जातीय त्यौहारों को मनाने की अनोखी परम्पराएं भी बरकरार रखी हैं। इधर के सालों में इन रंगारंग त्यौहारों ने अनेक देशी-विदेशी पर्यटकों को भी आकर्षित किया। आज के इस कार्यक्रम में हम आप को तिब्बती जाति के धार्मिक तीर-भेंट पर्व की खुशियां मनाने ले जा रहे हैं ।

पश्चिमी चीन स्थित कानसू प्रांत के दक्षिणी क्षेत्र में तिब्बती जाति की घनी आबादी है। किवंदती है कि बहुत पहले एक तिब्बती वीर ने दुश्मनों के साथ लड़ाई में अपने प्राण त्याग दिये। लोगों ने उन के इस कारनामे को याद रखने के लिए उन का एक तीर स्थानीय पर्वत की चोटी पर जा लगाया और इस वीर को पर्वत देव के रूप में पूजना शुरू कर दिया। इसके बाद लोग अपनी सुरक्षा की मनौती के लिए पर्वत देव को पूजा में तीर भी भेंट करने लगे। कालांतर में यह गतिविधि तीर-भेंट पर्व के रूप में मनायी जाने लगी। धीरे-धीरे पर्वत देव को पूजा में हर वर्ष तीर भेंट करने की यह परम्परा दक्षिणी कानसू क्षेत्र के बहुत से गांवों और कबीलों में प्रचलित हो गई।

दोस्तो , स्थानीय लोग गीत गाते और नाच नाचते हुए इस तीर-भेंट त्यौहार की खुशियां मनाते हैं । यह पर्व आम तौर पर जून-जुलाई में मनाया जाता है, पर इसके लिए कोई तिथि निश्चित नहीं रहती बल्कि धार्मिक तरीके से तय की जाती है। तीर-भेंट पर्व के दिन पौ फटते ही सभी कबीलों व गांवों के घोड़ों पर सवार नये कपड़ों में सजे पुरुष लकड़ी से बने लंबे तीर लिये एक पर्वत पर इकट्ठे हो जाते हैं।वे प्रसाद के रूप में अपने साथ जौ, घी व दूध से तैयार पकवान, चाय, रेशमी कपड़े आदि तो लाते ही हैं, देवदार और अन्य पेड़ों की डालें व लुंगता नामक चीज लाना भी नहीं भूलते। लुंगता दो इंच का लाल, पीले, नीले, सफेद व हरे रंग से बना चौकोर कागज होता है, जिस पर तिब्बती जाति के शुभचिन्ह अंकित रहता है।

पर्वत देव की पूजा के समय आकाश की ओर लुंगता फेंकना अत्यावश्यक रस्म होती है। पूजा शुरू होने से पहले लोग देवदार आदि पेड़ों की डालें इकट्ठी कर चुके होते हैं और इसके बाद साथ लाये विभिन्न प्रकार के पकवानों, मदिरा और चाय के प्रसाद को उन पर रख देते हैं। सूर्योदय के साथ पूजा शुरू होने से पहले इन डालों को जलाया जाता है। स्थानीय लोग इस रस्म को वई सान कहते हैं। इस गतिविधि में भाग लेने वाले भिक्षु लोसांताचे ने बताया कि वई सान की रस्म से पहले तीर-मंच स्थापित करना जरूरी होता है।

इस के लिए सब से पहले करीब एक मीटर गहरा गड्ढा खोदा जाता है जिसमें विभिन्न प्रकार के अनाज, छुरी व तीर आदि हथियार दबा दिये जाते हैं। इस गट्ढे के ऊपर ही एक मीटर ऊंचा तीर-मंच बनाया जाता है। वई सान की रस्म शुरू होने पर जीवित बुद्ध व भिक्षु शांति की प्राप्ति के लिए बौद्ध सूत्रों का पाठ करते हैं, जबकि लोग तीर-मंच पर तीर व प्रसाद सामग्री रख कर लुंगते बार-बार आकाश की ओर फेंकते हैं और सुखमय जीवन की आशा से पर्वत देव का गुणगान करते हैं। इस वक्त चारों ओर उल्लास का वातावरण व्याप्त रहता है।

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