चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के शिकाज़े प्रिफ़ैक्चर में स्थित जाशलुम्बु मठ पंचन लामा का कई पीढ़ियों से निवास स्थान रहा है । इस लेख में हम करेंगे इस मशहूर मठ का दौरा , आप तिब्बत की धार्मिक संस्कृति का अनुभव कर सकेंगे।
चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के शिकाज़े प्रिफ़ैक्चर के पश्चिमी भाग में खड़े निमा पर्वत पर स्थित जाशलुम्बु मठ तिब्बती धर्म के गरुबा संप्रदाय के चार बड़े मठों में से एक है। तिब्बती भाषा में जाशलुम्बु का मतलब होता है मंगलमय। ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार, जाशलुम्बु मठ की स्थापना वर्ष 1447 में हुई।इस का निर्माण गरूबा संप्रदाय के गुरु ज़ोंन घा बा के शिष्य प्रथम दलाई लामा कन तुन जू बा ने कराया। चौथे पंचम लामा लो सांग छ्यू ची के समय इस मठ का विस्तार किया गया। इस के बाद जाशलुम्बु मठ पंचन लामा की हर पीढ़ी का निवास स्थान बन गया। आज भी इस मठ में पांचवें से नौवें पंचन लामा के पार्शिव शरीर विभिन्न स्तूपों में रखे हैं । मठ दक्षिणी तिब्बत का धार्मिक-सांस्कृतिक केंद्र भी है।
जाशलुम्बु मठ निमा पर्वत की भौगालिक स्थिति के अनुसार निर्मित हुआ है। उस के पीछे ऊंचा पहाड़ है और हर भवन सुव्यवस्थित है। जाशलुम्बु मठ का क्षेत्रफल कोई एक लाख पचास हज़ार वर्ग किलोमीटर है। इस में 57 सूत्र भवन और 3600 से ज्यादा अन्य वास्तु हैं। वर्तमान में यहां आठ सौ से ज्यादा लामा रहते हैं।
महासूत्र भवन जाशलुम्बु मठ का सब से प्राचीन वास्तु है।इस के निर्माण में बारह साल लगे। महासूत्र भवन के सामने 6 सौ वर्गमीटर से भी बड़ा मैदान है।यह पंचन लामा का मठ के सभी लामाओं को सूत्र सुनाने तथा लामाओं के धार्मिक वाद-विवाद का स्थान है। महासूत्र भवन के चारों ओर की गुफ़ाओं में बौद्ध धर्म के गुरुओं के साथ एक हज़ार से ज्यादा बौद्ध मूर्तियां अंकित हैं। इस भवन की उत्तरी दिशा की दीवार के मध्य में तिब्बती बौद्ध धर्म के गरूबा संप्रदाय के गुरू ज़ोन खा बा और बौद्ध धर्म के अन्य अस्सी भिक्षुओं व विभिन्न देवताओं की मूर्तियां हैं। महासूत्र भवन के मध्य में पंचन लामा का पवित्र आसान रखा है।
गाम्बा बुद्ध मूर्ति भवन जाशलुम्बु मठ के पश्चिमी भाग में स्थित सब से बड़ा भवन है।इस के बीचोंबीच विश्व की सब से बड़ी गाम्बा बुद्ध मूर्ति खड़ी है। गाम्बा बुद्ध चीन के भीतरी इलाके में मैत्रेय के रूप में जाने जातो हैं। बौद्धमत में मैत्रेय भविष्य का नियंत्रण करने वाले बुद्ध हैं। इसलिए इन्हें भविष्य बुद्ध भी कहा जाता है। मैत्रेय भवन के बरामदे में कांसे का एक घंटा लटका हुआ है। यहां से गुज़रने वाले पर्यटक जब उसे पीटते हैं, तो एक बहुत सुरीली आवाज़ सुनाई पड़ती है। हमारे साथ चल रहे शिकाज़े प्रिफ़ैक्चर के प्रसार-प्रचार विभाग के पूर्व निदेशक फूबू छीरन ने हमें इस घंटे को पीटे जाने का धार्मिक कारण बताया
"घंटे की पहली आवाज़ से हम बुद्ध को नमस्कार करते हैं और बुद्ध से कहते हैं कि हम यहां आ रहे हैं। दूसरी आवाज़ से महासूत्र भवन के प्रबंधक लामा को नमस्कार किया जाता है, ताकि वे हमसे भेंट की तैयारी कर सकें और तीसरी आवाज़ का मतलब है कि हम बुद्ध से विदा ले रहे हैं और उन से कहना चाहते हैं कि भविष्य में हम फिर आएंगे।"
गाम्बा बुद्ध भवन का निर्माण वर्ष 1914 में नौवें पंचन लामा छ्वी ची निमा ने कराया। इस भवन की उंचाई तीस मीटर है और क्षेत्रफल है 862 वर्गमीटर। यह बुद्ध मूर्ति 3.8 मीटर ऊंचे कमलासन पर विराजमान है। बुद्ध मूर्ति का चेहरा दक्षिण में पूरे जाशलुम्बु मठ को देखता है। गाम्बा बुद्ध की मूर्ति की ऊंचाई 26.2 मीटर है, कंधे की लम्बाई 11.5 मीटर और हाथ की लम्बाई 3.2 मीटर है। जाशलुम्बु मठ की गाम्बा बुद्ध मूर्ति विश्व की ऐसी सब से बड़ी कांस्य मूर्ति मानी जाती है । शिकाज़े प्रिफ़ैक्चर के प्रसार-प्रचार विभाग के पूर्व निदेशक श्री फूबू छीरन ने बताया
"गाम्बा तिब्बती भाषा का शब्द है, जिस का अर्थ है बहुत दयालु बुद्ध। गाम्बा बुद्ध की मूर्ति का निर्माण 110 मज़दूरों ने 4 सालों में पूरा किया। इस मूर्ति का निर्माण आधुनिक तकनीक का नहीं शारीरिक श्रम का नतीजा था। यह मूर्ति 335 किलो सोने और 1 एक लाख,15 हज़ार किलो कांसो से बनी है।इस से भी तिब्बती जाति की श्रमिक बुद्धि जाहिर होती है।"
लोग ऊपर चढ़कर गाम्बा बुद्ध मूर्ति की आंखें देख सकतें हैं। इस महान बुद्ध मूर्ति के सामने खड़े होकर उन के मन में सम्मान की भावना पैदा होती है। साल भर बड़ी तादाद में तिब्बती बौद्ध अनुयायी सपरिवार इस भीमकाय मूर्ति के दर्शन के लिए यहां आते हैं। वे बुद्ध की दंडवत पूजा करने के अतिरिक्त मूर्ति को रेशम का पवित्र सफेद हाता भी प्रदान करते हैं और मूर्ति को घी के सात दियों की आहुति देते हैं। दो लामा विशेष तौर पर दियों में घी डालने का काम संभालते हैं। उन के चेहरे की दया भावना, धार्मिक विश्वास और वहां व्याप्त धार्मिक वातावरण भवन में आने वाले हर व्यक्ति को प्रभावित करता है।
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