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(GMT+08:00) 2005-05-18 09:52:15    
चीन की विवाह के लिए शारीरिक जांच व्यवस्था

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युवाओं के विवाह से पहले सरकार द्वारा निर्दिष्ट अस्पतालों में शारीरिक जांच कराने की व्यवस्था चीन में लंबे समय तक लागू रही। तब ऐसी जांच न कराने वाले वर-वधू को विवाह प्रमाणपत्र नहीं दिया जाता था। इस जांच से जहां संभावित वर-वधू में रोगों का पता लगाया जा सकता था, वहीं इसकी युवाओं के शरीर व निजी जीवन का आदर न करने के लिए आलोचना होती रही। इसलिए चीन सरकार ने दो साल पहले इस व्यवस्था को रद्द कर दिया। आज युवा विवाह से पहले स्वयं निर्णय ले सकते हैं कि वे किसी अस्पताल में शारीरिक जांच करवायेंगे या नहीं और यह जांच विवाह प्रमाणपत्र प्राप्त करने की शर्त भी नहीं रह गया है। पेइचिंग स्थित एक विदेशी कंपनी में कार्यरत सुश्री च्यांग का मानना है कि आज युवा विवाह से पूर्व शारीरिक जांच करवाने, न करवाने के लिए स्वतंत्र हैं, तो भी उन्हें विवाह से पहले किसी अस्पताल में शारीरिक जांच करवानी ही चाहिए। ऐसा करने से वे अपने अज्ञात रोगों का पता लगा सकेंगे और यह नव दंपत्ति के भावी जीवन और समाज तक के लिए लाभदायक होगा। चीन ने वर्ष 1980 में विवाह के लिए जरूरी शारीरिक जांच की व्यवस्था लागू की। इसके लिए देश के विभिन्न क्षेत्रों में विवाह के लिए शारीरिक जांच करने वाले विशेष अस्पताल तय किये गये। पेइचिंग शहर के एक ऐसे अस्पताल अनचेन अस्पताल की स्त्रीरोग विज्ञानी डाक्टर च्यांगच्वन ने कहा कि विवाह के लिए शारीरिक जांच कोई जटिल परीक्षा नहीं होती। युवा विवाह से पहले अस्पताल में शारीरिक जांच कराने के अतिरिक्त यौन संबंधों के बारे में भी मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं। उन के अनुसार बहुत से लोगों को कुछ गंभीर रोग होते हैं। ये रोग एड्स, अन्य यौन रोग, शिश्न रोग या मानसिक रोग हो सकते हैं। ऐसे रोगों वाले लोगों को विवाह करने पर उन के भावी जीवन तथा समाज को नुकसान ही पहुंचेगा। ऐसे लोगों की जांच रिपोर्ट में डाक्टर उन्हें विवाह के लिए उचित नहीं ठहरायेंगे। इधर के कुछ वर्षों में विवाह के लिए शारीरिक जांच कराने वाले युवाओं में से लगभग आठ से दस प्रतिशत इन बीमारियों के शिकार पाये गये। यों कुछ लोगों का मानना है कि वे विवाह करने को स्वतंत्र हैं, चाहे वे बीमार हों या नहीं। इसीलिए सरकार द्वारा विवाह के लिए अनिवार्य शारीरिक जांच व्यवस्था रद्द किये जाने के बाद अधिकतर युवा विवाह से पहले शारीरिक जांच न कराने का निर्णय लेने लगे हैं। पेइचिंग में सिर्फ पांच प्रतिशत वर-वधू विवाह के लिए शारीरिक जांच कराते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह अनुपात और कम हो गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि वर-वधू इसलिए भी शारीरिक जांच नहीं करवाना चाहते क्योंकि अस्पतालों की संबंधित सेवा बहुत संतोषजनक नहीं है। युवा खुद को तकलीफ नहीं देना चाहते। इस के अलावा इस जांच पर कुछ न कुछ खर्च आता ही है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले युवाओं के लिए एक बोझ है। लेकिन कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि अगर हर कोई युवा विवाह के लिए शारीरिक जांच न कराये, तो चीनी समाज में आनुवंशिक बीमारियों और विकलांग शिशुओं की संख्या बढ़ सकती है, जिससे भारी पारिवारिक और सामाजिक समस्या पैदा होने की आशंका है। इधर चीन के विभिन्न क्षेत्रों के अस्पतालों ने अपनी संबंधित सेवा में सुधार लाने के लिए पूरी शक्ति से प्रयास किया है, ताकि युवा विवाह पूर्व शारीरिक जांच के लिए स्वयं वहां जा सकें। पेइचिंग और शांघाई जैसे बड़े शहरों में विवाह के लिए होने वाली इस शारीरिक जांच का खर्च सरकार उठा रही है और वर-वधुओं की निजता के समादर को भी अत्यंत महत्व दिया जाने लगा है। इस सबके बावजूद चीन में विवाह से पहले शारीरिक जांच कराने के लिए अस्पताल जाने में कम युवाओं की ही दिल्चस्पी है। चीनी रोग निरोध केंद्र के विशेषज्ञ प्रोफेसर सू ह्वेइछींग का कहना है कि विवाह के लिए शारीरिक जांच के बारे में सभी वैज्ञानिक जानकारियों का प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिये। इस सवाल के समाधान के लिए सिर्फ सरकारी कोशिशों पर निर्भर रहना काफी नहीं होगा। इसके लिए आम लोगों के वैज्ञानिक स्तर को उन्नत किया जाना आवश्यक है। वर्तमान में चीनी राज्य परिषद का महिला व बाल कार्यालय तथा चीनी नागरिक मामला मंत्रालय संयुक्त रूप से एक वैज्ञानिक प्रचार-प्रसार आन्दोलन चला रहा है जो एक साल चलेगा। इसका उद्देश्य विभिन्न पुस्तकों व सामग्रियों के प्रकाशन तथा प्रदर्शनियों के आयोजन के जरिये आम लोगों को विवाह पूर्व शारीरिक जांच का महत्व बताना है। नीचे आप पढ़ पाते हैं चीन में टीका लगाने के कार्य में प्राप्त प्रगति । टीकों को रोगरोधन का सब से कारगर कदम माना जाता है । टीकों के जेरिये छूत के बहुत से रोगों को रोका जा सकता है । बीती आधी शताब्दी में मानव ने कोढ़ , तपेदिक , पीलिया , चेचक , हैजा और प्लेग आदि भयानक रोगों के लिये टीकों के अनुसंधान और उत्पादन में सफलता पायी है । टीकों से न सिर्फ संक्रामक रोग रोके जा सकते हैं , इन रोगों के इलाज का खर्च का बचाव भी कम किया जा सकता है । आंकड़े बताते हैं कि खसरे के एक रोगी के इलाज का कुल खर्च , ऐसे बीस टीकों के बराबर बैठता है । और चेचक के टीके प्रति वर्ष दुनिया के तीस करोड़ अमेरिकी डालर बचाते हैं। चीन में भी अन्य देशों की ही तरह लोग संक्रामक रोगों के शिविर बनते हैं । इसलिये चीन सरकार ने देश में टीका लगाने के काम को विशेष महत्व दिया है । चीनी रोगरोधन सोसाइटी की एक पदाधिकारी सुश्री वांग चाओ का कहना है कि में नये चीन की स्थापना के बाद से चीन सरकार टीकों के जरिये रोगरोधन को बहुत महत्व देती आयी है । नये चीन की सरकार ने अपनी स्थापना के समय से ही विभिन्न संक्रामक रोगों के टीकों का अनुसंधान शुरू कर दिया , जिस में उस ने उल्लेखनीय प्रगति भी प्राप्त की । मिसाल के लिये चीन वर्ष उन्नीस सौ साठ में ही विश्व के अन्य क्षेत्रों से दस साल पहले चेचक का विनाश करने में सफल रहा । चीन ने अपने अल्पसंख्यक जाति-बहुल क्षेत्रों में बच्चों को टीका लगाने के कार्य को विशेष महत्व दिया है । कुछ समय पहले हमारे संवाददाता ने तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के ल्हासा शहर के एक महिला बाल स्वास्थ्य केंद्र का दौरा किया । वहां त्सीरेंबाईचेन नामक एक महिला ने उन से बातचीत में कहा कि मेरा बच्चा दो माह का है , मैं उसे दो बार टीका लगवा चुकी हूं । मुझे मालूम है कि टीके स्वास्थ्य के लिये कितने अच्छे हैं , इन से अनेक रोगों की रोकथाम होती है । इसलिये मैं अपने बच्चे को सारे टीके लगवाऊंगी । सिर्फ ल्हासा ही नहीं , देश के सभी शहरों व देहातों में ऐसे विशेष संस्थान खुले हुए हैं , जहां लोगों को टीके लगाने की सुविधा हासिल है । और घासमैदान के पशुपालकों तथा पहाड़ी इलाकों के निवासियों के बच्चों के लिये टीका लगाने की जिम्मेदारी विशेष चिकित्सक उठाते हैं ।