आज के इस कार्यक्रम में हम मुर्शिदाबाद, पश्चिम बंगाल के सादाब अलाम, बिलासपुर छत्तीसगढ़ के चुन्नीलाल कैवर्त, सीतामढ़ी, बिहार के मोहम्मद जहांगीर (रौनक लिसनर्स क्लब), कोआथ रोहतास, बिहार के किशोर कुमार केशरी, सुनील केशरी, डी डी साहिबा, संजय केशरी, सीताराम केशरी, किशोर कुमार केशरी, सोनू कुमार केशरी, राज कुमार केशरी के पत्र शामिल कर रहे हैं।
पहले मुर्शिदाबाद, पश्चिम बंगाल के सादाब अलाम का पत्र लें। उन्होंने अपने पत्र में पूछा है कि चीन के कितने हिस्से को बिजली की सुविधा हासिल है। जिन हिस्सों में यह सुविधा नहीं है, उन के लिए चीन सरकार की क्या योजनाएं हैं।
दोस्तो, नए चीन की स्थापना के बाद चीन के बिजली जाल के विकास में भारी इजाफा हुआ। इस के साथ ही चीन के ग्रामीण क्षेत्र के बिजली जाल का भी इजाफा हुआ और इस की गति चीन के औसत स्तर से ज्यादा रही।
वर्ष 1949 में चीन में बिजली की आपूर्ति 3 अरब, 44 करोड़ किलोवाट घंटा थी। इस में ग्रामीण क्षेत्र का अनुपात 2 करोड़ किलोवाट घंटा मात्र था, जो समूचे देश का 0.58 प्रतिशत था।
20 वीं सदी के 50 व 60 वाले दशक में चीन के ग्रामीण क्षेत्र में बिजली आपूर्ति का विकास बहुत तेज गति से हुआ। वर्ष 1958 से 1978 तक के 20 वर्षों में चीन के ग्रामीण क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति की वृद्धि दर 35 प्रतिशत थी, जो तत्कालीन चीन के औसत वृद्धि स्तर से ऊंची ही नहीं थी, विश्व में भी आश्चर्यजनक थी।
वर्ष 1978 में चीन में बिजली की आपूर्ति 2 खरब 10 अरब 24 करोड़ किलोवाट घंटा थी। इस में से ग्रामीण क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति 51 अरब 2 करोड़ किलोवाट घंटा थी और सारे देश में इस का अनुपात बढ़ कर 23.27 प्रतिशत पहुंच गया था।
80 वाले दशक में ग्रामीण क्षेत्र में सुधार और अर्थतंत्र के विकास के साथ बिजली की मांग भी बढ़ी। समूचे देश में बिजली की आपूर्ति भी बढ़ी। वर्ष 1987 में ग्रामीण क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति का अनुपात बढ़ कर देश के 31.5 प्रतिशत तक जा पहुंचा।

वर्ष 1997 में समूचे चीन में बिजली की आपूर्ति बढ़ कर 11 खरब 3 अरब 90 करोड़ किलोवाट-घंटा पहुंच गयी, ग्रामीण क्षेत्र की बिजली आपूर्ति 4 खरब 39 अरब 93 करोड़ किलोवाट-घंटा बढ़ी और इस का अनुपात बढ़ कर 39.49 प्रतिशत हो गया। वर्ष 2000 में चीन के ग्रामीण क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति का अनुपात बढ़ कर 42.1 प्रतिशत जा पहुंचा।
नए चीन की स्थापना के बाद ग्रामीण क्षेत्र में बिजली की सुविधा अधिकाधिक ग्रामवासियों के घर तक पहुंची। वर्ष 1978 में चीन के 61.05 प्रतिशत गांवों और 93.3 प्रतिशत ग्रामवासियों के घर में बिजली पहुंच चुकी थी।
वर्ष 2000 में बिजली की सुविधा पाने वाले गांवों और ग्रामवासियों के परिवारों का अनुपात अलग-अलग तौर पर 98.23 प्रतिशत और 98.03 प्रतिशत रहा। इस वर्ष पेइचिंग, थ्येनचिन, शांगहाई, चीलीन, ल्याओनिंग, शानतुंग, निंगश्या, च्यांगसू, आनह्वेई, हपेई, च्येच्यांग, फ़ूच्येन हूपेई, हूनान और सछ्वान के हर गांव में बिजली पहुंच गई।
इस समय चीन के अनेक सुदूर व सीमावर्ती क्षेत्रों में बिजली की सुविधा नहीं है। वर्ष 2002 तक चार जिलों में बिजली नहीं थी। इन जिलों में 14331 गांव हैं और 57 लाख 40 हजार ग्रामीण परिवार रहते हैं। सरकार इन जिलों और ग्रामीण क्षेत्र की समस्याओं पर भारी ध्यान दे रही है और वहां बिजली पहुंचाने के लिए वास्तविक कदम उठाएगी।
अब लें बिलासपुर, छत्तीसगढ़ के चुन्नीलाल कैवर्त का पत्र। उन्होंने पूछा है कि पेइचिंग का पुराना राजप्रासाद किन राजवंशों एवं सम्राटों का राजमहल रहा।

राजधानी पेइचिंग का शाही महल शहर के केन्द्र में स्थित है। यह चीन के दो राजवंशों मिंग और छिंग के कुल 24 राजाओं का निवास स्थान रहा।
मिंग राजवंश की पहली राजधानी पूर्वी चीन का नानचिंग शहर थी। पर बाद में मिंग राजवंश के तीसरे राजा चू ती राजधानी को स्थानांतरित कर पेइचिंग ले आये। पेइचिंग में शाही महल का निर्माण नानचिंग के शाही महल के डिजाइन पर किया गया। इस में कोई दस लाख व्यक्ति लगे और इसका निर्माण 14 साल चला।
इस शाही महल का कुल क्षेत्रफल 7 लाख 20 हजार वर्गमीटर है। महल की दक्षिण से उत्तर तक लम्बाई 961 मीटर है जबकि पूर्व से पश्चिम तक चौड़ाई 753 मीटर। महल को चारों ओर से घेरने वाली दीवार की लम्बाई 3428 मीटर और ऊंचाई 8 मीटर है। इस राजमहल की रक्षा के लिए इस दीवार के चारों कोनों पर बुर्ज बनाये गए और दीवार के बाहर एक नहर भी खोदी गयी।
यह चीन का ही नहीं विश्व का अब तक सुरक्षित सब से बड़ा प्राचीन व आलीशान महल है।

वर्ष 1911 में चीन में हुई क्रांति में छिंग राजवंश का पतन हो गया। इसके साथ ही चीन में 2000 साल पुराना सामंती राज भी खत्म हुआ। इस के बाद राज परिवार का महल से बहिष्कार कर दिया गया और महल को पुरातत्व संग्रहालय का दर्जा दिया गया।
वर्ष 1961 में चीनी राज्य परिषद ने इस प्राचीन महल को चीन के संरक्षित सांस्कृतिक अवशेषों की सूची में रखा। वर्ष 1987 में संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को ने इस महल को विश्व की सांस्कृतिक धरोहरों में शामिल किया।
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