1930 के दशक में ब्रिटिश लेखक जेम्स शेर्टन ने खोयी हुई भूमि नामक अपनी पुस्तक में एक शांत और रहस्यमय भूमि का वर्णन किया। शंगरीला नाम की इस जगह पर पिरामिड के आकार वाले बर्फीले पहाड़ों के बीच गहरी घाटी होने की बात कही गई थी जहां नीली झीलें, बड़े-बड़े घास मैदान और बौद्ध मठ व ताओ मंदिर ही नहीं मस्जिदें और गिरजे भी थे। शंगरीला में मनुष्य प्रकृति के साथ मेलजोल से रहता था और अनेक धर्म एक साथ मौजूद थे। वहां अनेक जातियों का सहअस्तित्व था। यह तो था जेम्स शेर्टन का शंगरीला आज हम आपको चीन के शीमारिया पहाड़ के पास बसे व्यन नान प्रांत के दी छींग प्रिफेक्चर के शंगरीला की यात्रा करा रहे हैं। आइए एक साथ वहां की रमणीक प्रकृति का आनंद लें।
चीन के दक्षिण-पश्चिमी व्यन नान प्रांत का दी छींग तिब्बती प्रिफेक्चर चीन के दस प्रमुख तिब्बती प्रिफेक्चरों में आता है। विश्व के प्राकृतिक अवशेषों के रूप में विख्यात लेन छांग, चिन शा और नू च्यांग नदियों के उद्गम क्षेत्र यहीं स्थित है और लोगों की कल्पना का शंगरीला भी।
व्यन नान से तिब्बत की ओर जाने वाली सड़क पर चलने पर लगता है जैसे आप स्वर्ग में आ गये हों। यहां प्रकृति इतनी सुन्दर है कि विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि यह सब सच है भी या नहीं। दूर बर्फीले पहाड़ खड़े हैं, या लाल पत्ते वाले पेड़ों से सजे हैं। यहां का मौसम त्रिआयामी कहा जा सकता है। नीचे से ऊपर की ओर चलने पर आप शीतोष्ण से सम शीतोष्ण क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। विशेष भौगोलिक वातावरण ने दी छींग प्रिफेक्चर को सुन्दर प्राकृतिक दृश्य ही नहीं भरपूर संसाधन भी दिये हैं। दी छींग की प्रचार प्रभारी सुश्री ली च्वू फांग कहती हैं, यहां की सभी चीजों को त्रिआयामी कहा जा सकता है। भौगोलिक स्थिति त्रिआयामी है, जिससे मौसम भी त्रिआयामी हो गया है। इस भौगोलिक स्थिति के चलते यहां जीव-जन्तुओं का फैलाव भी त्रिआयामी है। यही नहीं जन जाति का फैलाव भी त्रिआयामी है। यहां जीव-जन्तुओं की 4000 से ज्यादा किस्में पाई जाती हैं।
सुश्री ली के अनुसार, दी छींग व्यन नान प्रांत का विभिन्न संसाधनों से भरा एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यहां वन, जीव-जन्तु, खनिज एवं पर्यटन जैसे सभी संसाधन हैं। इनमें शंगरीला की छाप वाला पर्यटन दी छींग के लोगों को विशेष गौरव देता है।
ब्रिटिश लेखक जेम्स शिल्टन की कहानी खोयी हुई भूमि में वर्णित शंगरीला अनेक धर्मों के सहअस्तित्व वाली जगह है। वहां विभिन्न धर्मों के अनुयाई मेलजोल से रहते हैं और चारों ओर बौद्ध मठ, गिरजे, और ताओ मंदिर हैं। दी छिंग में तिब्बती, ली सू, हान, नाशी, ई, बेई और ह्वेई आदि 26 जातियां रहती हैं।इन में से हरेक की आबादी कुछ हजार में है। दी छिंग में विभिन्न जातियों के ये लोग मेलजोल से रहते हैं। उन सभी के अपने-अपने धार्मिक विश्वास हैं और रंग-बिरंगी जातीय संस्कृति है। व्यन नान के दी छिंग तिब्बती प्रिफेक्चर की प्रचार प्रभारी सुश्री ली च्वू फांग बताती हैं,"दी छिंग ऐसी जगह है, जहां तिब्बती जाति प्रमुख जाति है पर बहुत सी जातियों के लोग उसके साथ मिल कर रहते हैं। दी छिंग में जाति विविधता से संस्कृति का बहुध्रुवीकरण दिखता है। इसका कारण यह है कि एक जगह की संस्कृति अपनी जातीय और क्षेत्रीय विशेषता का मेल लेकर उपस्थित होती है। इस तरह वह अपनी छाप की स्थापना करती है। हम ने यहां शंगरीला संस्कृति की छाप तैयार की है। वास्तव में शंगरीला संस्कृति मनुष्य के प्रकृति और मनुष्य से सहअस्तित्व की संस्कृति ही है। धार्मिक दृष्टि से देखें तो दी छिंग में लगभग हर कोई धर्म पर विश्वास करता हैं। यहां तिब्बती बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म, कैथलिक और इस्लाम धर्म तो हैं ही, इन के अलावा, कुछ पुराने धर्म भी मौजूद हैं।
दी छिंग के अधिकतर तिब्बती लोग तिब्बती बौद्ध धर्म पर विश्वास करते हैं। कुछ अन्य अल्पसंख्यक जातियों के लोग भी इस बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। तिब्बती बौद्ध धर्म के लिए तिब्बती लोगों के मन में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है।
तिब्बती क्षेत्र में पहुंचने पर आप जगह-जगह मठ, लामा औऱ मणि पत्थरों के अलावा सफेद स्तंभों और पहाड़ों पर प्रार्थना अंकित पताकाएं देख सकते हैं। तिब्बती लोगों के घरों की सजावट, वेशभूषा, दैनिक श्रम, त्यौहार, विवाह आदि पर तिब्बती बौद्ध धर्म का प्रभाव महसूस किया जा सकता है। दी छिंग में अनेक बौद्ध मठ हैं। इन में सब से प्रसिद्ध मठ ग देन सुंग ज्येन लिन मठ और ग देन तुंग च्वु लिन मठ हैं। छोटे मठ तो दी छिंग में हर जगह दिखायी देते हैं।
|