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(GMT+08:00) 2005-04-26 15:34:28    
चो तोंग छाओ और उन की सुरना धुनें

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परम्परागत चीनी वाद्य सुरना एक किस्म की छोटी तुरही है। यह वाद्य बहुत छोटा होता है और मुंह से फूंक मारकर बजाया जाता है। सुरने के सुरों की विशेषता यह है कि वे बहुत सुरीले और ऊंचे होते हैं। इस लेख में आप पाएंगे सुरना बजने वाले मशहूर चीनी संगीतकार श्री चो तोंग छाओ का परिचय

धुन--"पक्षीराज वंदना"

यह है मशहूर चीनी लोक धुन "पक्षीराज वंदना"। सुरने पर प्रस्तुत यह परम्परागत संगीत जंगल के पक्षियों की चहचहाहट से सुनने वालों के मन में अपने गिर्द फैली प्रकृति के प्रति प्यार उभारता है। श्री चो तोंग छाओ अनेक बार इस धुन की प्रस्तुति दे चुके हैं । वर्ष उन्नीस सौ अट्ठासी में चीन स्थित विभिन्न देशों के राजदूतों के लिए आयोजित एक समारोह में जब उन्होंने यह धुन बजाई, तो वे सभी यह देख-सुनकर आश्चर्य में आ गए कि आखिर इतना छोटा वाद्य इतनी मीठी आवाज़ कैसे निकालता है और उन्होंने माना कि सुरने के स्वर चिड़ियों की चहक को सचमुच वैसा ही पेश करते हैं।

उत्तरी चीन के ह बेई प्रांत की दिंग श्येन कांउटी में जन्म लेने वाले श्री चो तोंग छाओ के पिता भी संगीतकार हैं । पिता को बांसुरी और सुरने से मीठे सुर फूंकने में महारत हासिल थी। इसलिए नन्हे चो तोंग छाओ की बचपन से ही इन वाद्यों में रुचि जगने लगी। वे कहते हैं

"सात वर्ष की उम्र थी जब पिता जी द्वारा बांसुरी पर बजायी गयी धुन ने मुझ में संगीत के प्रति रुचि पैदा की । इस वाद्य की सुरीली आवाज़ मुझे इतनी पसंद आयी कि जब पिता जी न बजाते, तो मैं स्वयं इसे बजाने की कोशिश करने लगा। पिता जी ने बांसुरी बजाने में मेरी ऐसी गहरी दिलचस्पी देखी, तो वे मुझे बांसुरी सिखाने लगे।"

तो सात वर्ष की आयु से ही श्री चो तोंग छाओ ने बांसुरी बजाने का अभ्यास करना शुरू कर दिया था।कड़ी मेहनत से उन्हें प्रगति मिली। नौ वर्ष की उम्र में वे सुरना बजाना सीखने लगे और कुछ समय बाद लोगों के सामने अपनी वादन प्रतिभा का प्रदर्शन भी करने लगे। 12 वर्ष की उम्र तक वे सुरना बादन में कई उपलब्धियां हासिल कर चुके थे। दो बार वे अपनी कांउटी की ओर से प्रांत स्तर की सुरना वादन प्रतियोगिता में भी शरीक रहे और दो बार उस में पुरस्कार भी जीता। वर्ष 1975 में 15 वर्षीय चो तोंग छाओ ने ह बेई प्रांत की ओर से चीनी राजधानी पेइचिंग में हुई राष्ट्रीय सुरना वादन प्रतियोगिता में भाग लिया और इस प्रतियोगिता का पुरस्कार पाने वाले सब से युवा वादक होने का गौरव पाया। पेइचिंग की इस प्रतियोगिता के बाद उन्हें चीनी रेडियो जातीय संगीत दल की सदस्यता हासिल हुई।

धुन--"मिट्टी से प्रेम"

यह है श्री चो तोंग छाओ द्वारा प्रस्तुत स्वरचित संगीत रचना है। "मिट्टी से प्रेम" नामक इस धुन में उत्तर-पश्चिमी चीन के रीति-रिवाज़ और इस क्षेत्र के लोगों के अपने जन्मस्थान के प्रति गहरा प्यार व्यक्त हुआ है। उन की इस धुन का वर्ष 1997 में हुई चीन की तीसरी राष्ट्रीय लोक वाद्य संगीत रचना प्रतियोगिता में श्रोताओं ने हार्दिक स्वागत किया और इसे दो पुरस्कार भी हासिल हुए ।

चीनी रेडियो जातीय संगीत दल में आने के बाद श्री चो तोंग छाओ ने मशहूर संगीतकारों श्री चाओ छुन फ़ङ और श्री ल्यु फ़ङ थोंग से सुरना सीखना जारी रखा। अपने इन अध्यापकों की मदद से वे सुरना बजाने में और प्रवीण हुए। चीन के इस परम्परागत वाद्य की आवाज़ मीठी होती है, और इसे बजाने की शैली बहुत सरल है। इस में बदलाव लाने के लिए उन्होंने पश्चिमी वाद्य सीखना शुरू किया। पश्चिमी वाद्यों के साथ सुरने की आवाज़ उन्हें और अच्छी जान पड़ी। और लम्बे समय के प्रयोगों ने श्री चो तोंग छाओ को सुरना वादन में विशेषता दिलायी।