तिब्बत की राजधानी ल्हासा से शिकाज़े प्रिफ़ैक्चर तक की दूरी कोई 400 से ज्यादा किलोमीटर है ,इसी रास्ते में और श्वे कु ला पर्वत व मा च्यांग ला पर्वत दो पर्वतों को पार करना पड़ता है । एक दिन की सुबह हम ल्हासा से शिकाज़े की ओर चले । पहले हम ने छिंग हाई-तिब्बत मार्ग , जिसे तिब्बत में सब से अच्छा राज मार्ग माना जाता है, पर एक घंटे का रास्ता तय किया , इस के बाद हमारी यात्रा पहाड़ी रास्ते पर चल निकली । पहाड़ की तलहटी एक छोटा सा किब्बती शिविर बसा हुआ है, यह तिब्बती शैली का एक रेस्टरां है। "छिंग ल्यांग रेस्टरां"की मालिकन गसांनिमा एक तिब्बती महीला है।
गसांनिमा के साथ बातचीन के समय चार व्यक्ति "छिंग ल्यांग रेस्टरां" में आ गए । गसांनिमा उन की सेवा में खाना तैयार करने में व्यस्त होने लगी । ये चार व्यक्ति शिकाज़े प्रिफ़ैक्चर से काम के लिए ल्हास्सा जा रहे हैं । उन में से एक का नाम है जाशी च्याबाओ , जो शिकाज़े प्रिफ़ैक्चर के कांग बा कांऊटी के प्रोक्युरेटर हैं । काम के कारण जाशी च्याबाओ कभी कभी ल्हास्सा और शिकाज़े आते जाते हैं । इस लिए वे गसांनिमा के रेस्टरां के पुराने ग्राहक बन गए । उन्होंने हमें बताया ति इधर के वर्षों में चीनी कम्युनिस्ट पार्यी और सरकार की नीति अच्छी होने के कारण अधिकांश तिब्बती किसानों व चरवाहों के जीवन में बड़ा सुधार आया है । गसांनिमा उन में से एक है । वह नीलगाय का पालन करने के साथ "छिंग ल्यांग रेस्टरां" भी संभालती है , और समृद्ध भी हो गई है । जाशी च्याबाओ ने कहाः
"इधर के दो सालों में मैं इस रास्ते पर आता जाता हूँ । मैं ने देखा कि इस क्षेत्र के लोगों का जीवन स्तर बड़ा उन्नत हुआ । इस का श्रेय चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और केंद्र सरकार की अच्छी नीति को जाता है । अतीत में यहां आने जाने के समय बहुत सी कठिनाइयां मौजूद थीं, लेकिन अब चाहे आप किस किस्म का खाना चाहते हों, तो खाने को मिल सकते हैं । आम तौर पर कहा जाए, तो तिब्बती जनता समृद्ध हुई है और जेब में पैसा भरा हुआ है ,इसलिए हम जैसे पर्यटकों को बड़ी सुविधा मिल सकती है । अगर आप के पास पैसे हैं, तो किसी स्थल पर जाकर अपना पसंदीदा खाना पा सकते हैं ।"
तिब्बती घी चाय पीते हुए, जौ के आटा से बने चान बा और नीलगाय का गोश्त खाते हुए तथा रेस्टरां की मालीकन द्वारा खुद बनाई गई दही पीते हुए हमारे दिल में एक प्रकार का विशेष आनंद उभरा है । नीले आसमान में सफ़ेद बादल के नीचे, बहती झरने और ऊंचे पर्वत के पास हम हरेभरे घास मैदान में शुद्ध तिब्बती शैली के खाने का मजा ले रहे हैं, और कानों में तिब्बती लोगों की हंसने व बातचीत करने की आवाज़ गुंज रही है , सामने कभी कभार चंद कुछ नीलगाय इधर उधर घूमते गुजर रहे हैं , मानो हम स्वर्ग लोक में पधारे हों । हमारे साथियों ने पठारी पहाड़ों की तलहटी में इस दोपहर के खाने पर बहुत संतुष्ट हुए हैं । शांगहाई से आए श्री छ्येन दक्षिणी चीन के खाने के आदि हैं, उन्होंने भी इस तिब्बती खाने की भूरी भूरी प्रशंसा की और कहाः
"तिब्बत में आने के बाद मैं ने प्रथम बार तिब्बती शैली का खाना खाया , मेरे लिए बहुत अविस्मर्णीय है । नीले आसमान में सुर्य की गर्मागम धूप में मुझे बहुत अच्छा लगता है ।"
खाने के बाद सभी ग्राहकों के चेहरे पर संतो का भाव देखकर छिंग ल्यांग रेस्टरां की मालीकन गसांनिमा को भी बड़ी प्रसन्नता हूई । उस ने हमें बताया कि उसे वर्तमान रेस्ट्रां की स्तिथि से असंतोष है । उस की एक बड़ा रेस्टरां खोलने की योजना है । गसांनिमा ने कहा कि निकट भविष्य में शिकाज़े और ल्हास्सा के बीच जो मार्ग निर्माणधीन है उसे पूरा किया जाने के बाद वह उस मार्ग पर एक नया रेस्टरां खोलने की इच्छुक है । उस ने कहाः
"छिंग ल्यांग रेस्टरां खोलने के अनुभवों के आधार पर निकट भविष्य में शिकाजे ल्हासा राज मार्ग का निर्माण किए जाने के बाद मैं एक और बड़ा रेस्टरां खोलना चाहती हूँ ।"
गसांनिमा के चेहरे पर सुखद मुस्कुराहट और आंखों में भविष्य के प्रति दिखी अभिलाषा से हम बहुच प्रभावित हुए । हमारे मन ही मन में यह कामना की गयी कि गसांनिमा अपनी इच्छा को जरूर पूरा कर सकेगी, और जल्दी ही अपना बड़ा आकार वाला रेस्टरां खोल सकेगी ।
विदाई के समय गसांनिमा ने अपने रेस्टरां के सामने खड़ी हमें दूर की ओर चलने ताकी । उस की छवि, उस की आनंदमय मुस्कुराहट और पठारी पहाड़ों की तलहटी में इस तिब्बती रेस्टरां की याद सदा के लिए हमारे साथ रहेगी । हमें विश्वास है कि गसांनिमा का सपना अवश्य ही साकार होगा ।
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