उत्तरी चीन के भीतरी मंगोलिया स्वायत प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित है शी ल्यांग शेन नामक पहाड़ है। 18 वर्ष पहले वह पीली रेत से भरा हुआ था और उस पर हरियाली का कोई निशान तक दिखायी नहीं देता था। पर थांग झन नामक एक किसान ने अपने परिवार को साथ लेकर शी ल्यान शेन रेत में बदल गये दो सौ बीस हेक्टर भाग में तब लगाता पेड़ रोपने का निर्णय लिया। नतीजा यह हुआ कि अब वह हरे पेड़ों से भर गया है।
चौवन वर्षीय थांग झन 18 वर्ष पूर्व अपने जन्मस्थान के धनी विमानों में गिने जाते थे। पर बीसवीं शताब्दी के अस्सी के दशक की शुरुआत में, उन के यहां भू क्षण से इतनी बाढे आईं कि किसानों को भारी क्षति उठानी पड़ी। श्री थांग झन की अधिकांश पारिवारिक संपत्ति भी इस में नष्ट हो गयी। खैर इस प्राकृतिक विपत्ति ने श्री थाग झन को यहां शिक्षा दी कि पर्यावरण संरक्षण के बगैर मनुष्य का अच्छा जीवन बहुल लम्बे अरसे तक बाकी नहीं रहेगा। इसलिए, उन्होंने पेड़ रोपकर अपना जीवन बदलने का निर्णय लिया।वे कहते हैं, मैं ने पेड़ उगाने का विकल्प इसलिए चुना, क्योंकि मैं इस भूमि को हरी और उपयोगी बनाना चाहता हूं। हालांकि यह कठिन काम है।
शी ल्यान शेन पूरी तरह रेतीला था, उस पर घास का एक तिनका तक नहीं था, पर श्री थांग झन निर्णय ले चुके थे कि वे पहाड़ पर पेड़ उगाएंगे। वर्ष उन्नीस सौ तिरासी के पतझर में उन्होंने पहाड़ की 220 हेक्टर रेतीली भूमि पट्टे पर ली औऱ अपने ग्यारह बेटे को वहां लाकर पेड़ उगाना शुरु किया।
श्री थांग झन अपने बेटे के साथ तब एक छोटी झोंपड़ी में रहते थे। पतझड़ में वहां तेज़ रेतीली हवा चलती थी। जब वे सुबह जगते, तो उन का बिस्तर ही नहीं, मुंह, नाक सब जगह रेत से भरी होती थी। खैर, एक पतझड़ में उन्होंने बीस हेक्टर से ज्यादा भूमि पर विभिन्न पेड़ रोपने में सफलता पाई।
इन पेड़ों की देखभाल में उन्हें संवयं करनी थी, इसलिए, सर्दी में भी वे और अपने बेटे के साथ वहीं पहाड़ पर रहे। पहाड़ पर पानी न होने के कारण तब उन्हें कई किलोमीटर दूर जाकर पानी लाना पड़ा है। पर वे महनत से काम करते हुए यहीं उम्मीद लगाये रहे कि अगले वसंत वह हरियाली से भर उठेगा । लेकिन, भगवान भी कभी कभार बहुत निर्दयी होते हैं। तेज़ रेतीली हवा ने उन के लगाये पौद्दों को जब जड़ से उराड़ डाला, तो उन की इच्छा भी जैसे काफूर हो गयी।
उन के पहले कठिन प्रयास की अफलता पर परिवारजनों ने उन्हें समझाया भी कि छोड़ दीजिए, हवा के इस द्वार पर पेड़ उगाना नामुमकिन है।
गांव के लोगों ने भी श्री थांग झन से सवा लिया अंदाज में कहा, आप संवयं साथ के पहाड़ देखिए, सफेद रेत पर क्या कोई पेड़ खड़ा है वहां।
पर हवा में हिलते इने गिने छोटे पौधों को देखकर श्री थांग झन के दिल में न जाने कैसे जटिल विचार उठते तिरते रहते थे।
और एक दिन जब उन्होंने ध्यान से उन्हें देखा, और इन पर छोटी छोटी पत्तियां देखीं, तो वे पहले तो बूच्चों की तरह रोने लगे और फिर चीख पड़े कि वे जीवित हैं ।इन छोटे पौधों ने उन्हें जो आशा दी , वह उन के इस रेतीली पहाड़ पर पेड़ उगाने के विश्वास में बदल गयी। इस के बाद उन्होंने बड़े पैमाने पर पेड़ रोपने का फैसला लिया, वे बताते हैं, इस के बाद मैं ने रेतीली जमीन को मजबूत बनाने के लिए भिन्न भिन्न पेड़ उगाने शुरु किये। पौद्ध खरीदने के लिए, श्री थांग झन ने अपनी सारी सभी संपत्ति बेच दी। इस के बाद उन की पत्नी और माता भी उन के साथ पहाड़ पर रहने लगी। इस तरह श्री थांग झन का घर शी ल्यान शेन पर विस्थापित हो गया।
पर पेड़ उगाना बहुत थकाऊ काम है। पहाड़ पर पानी के अभाव में पौधों के जीवित रहने की दर बहुत नीची थी। अनेक बार जो पौधे वसंत में उगते दिखे। वे पतझर में हवा द्वारा जड़ से उखाड़ दिये गये। खैर, एक वसंत में उन्होंने फिर कई पौधे रोपे। ये पौधे खरीदने के लिए उन्हें और उन की पत्नी को कई किलोमीटर दूर चलना पड़ा। पर श्री थांग झन की 70 वर्षीय मां जी ने भी उन की दृढ़ समर्थन किया। उन की मां जी नेअपना देहांत से पहले कई बार बार उन्हें इस बात की प्रेरणा दी कि वे पेड़ उगाने के काम जारी रखें।
मां जी ने उन्हें प्रोत्साहित किया है। और उन्होंने शपथ ली कि जब तक पहाड़ पर हरियाली नहीं दिखायी देती , वे दाढ़ी नहीं काटेंगे। इन दसों वर्षं में, श्री थांग झन के परिवार ने वृक्षारोपण पर तीस हजार य्वान से ज्यादा का खर्च किया ।अब 18 वर्ष बाद शी ल्यान शेन पहाड़ हरा हो गया है , और श्री थांग झन की दाढ़ी सफेद हो गयी है। इस वर्ष के मार्च में, जब पत्रकार शी ल्रायन शेन के दौरे पर आए, तो उन्होंने उस की हरी घास में पक्षियों को उड़ते देखा और पेड़ों बीच खरगोश को। उन्हें तब वहां पक्षियों ,घोड़ों व पगोड़ों का स्वर्ग लगा।
श्री थांग को भी पेड़ उगाने से लाभ मिला । ये पेड़ उन के घर के लिए दस हजार य्वान से ज्यादा की आय लाये। अब वे तीन नये मकानों के मालिक हैं और हाल ही में उन के बेटे का विवाह भी हो गया।
जब पत्रकारों ने उन के बेटे से पूछा कि उन्हें पहाड़ का जीवन कैसा लगता है।तो उन का कहना था, मैं यहीं रहना चाहता हूं । रोज सुबह पहाड़ में घूमना मेरी आदत हो गयी है।
श्री थांग ने भी कहा कि वे भी यहीं रहेंगे औऱ आसपास के गांवों के लोगों को समझाऐंगे कि वे भी वृक्षारोपण करें।
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