आज से कोई 5000 वर्ष पहले, ह्वाङहो नदी (पीली नदी) और छाङच्याङ नदी (याङत्सी नदी) घाटियों के अनेक मातृसत्तात्मक सगोत्र कम्यून क्रमशः पितृसत्तात्मक सगोत्र कम्यून की अवस्था में पहुंच गये थे।
"लुङशान संस्कृति"इस अवस्था का प्रतिनिधित्व करती थी। यह काल उत्तर-कालीन नवपाषाण काल कहलाता है। उस समय भी मुख्य औजार पत्थरों के ही होते थे, हालांकि तांबे की कुछ चीजें भी बनाई जाने लगी थीं। फसलों की किस्में और पैदावार काफ़ी बढ़ गई थी। अनाजों से शराब बनाने के तरीके का आविष्कार हो गया था। घोड़ा, बैल, भेड़, मुर्गा, कुत्ता और सुअर, जो आज के मुख्य पालतू जानवर माने जाते हैं, पाले जाने लगे थे।
मिट्टी के बरतन बनाने की तकनीक में काफ़ी प्रगति हुई थी। काली मिट्टी के बरतन, सफ़ेद मिट्टी के बरतन और अण्डे के छिलके जैसे पतले मिट्टी के बरतन उस काल के नये आविष्कार थे। जेड और हाथीदांत की कलात्मक वस्तुएं भी बनाई जाने लगी थीं। ये सब चीजें उत्पादन के विकास और मनुष्य के जीवनस्तर की उन्नति का प्रतीक थीं। श्रम के सामाजिक विभाजन और वस्तु-विनिमय के विकास ने निजी मिलकीयत को बढ़ावा दिया और वर्गों के आविर्भाव की प्रक्रिया को तेज कर दिया, जिससे आदिम समाज का कदम-ब-कदम विघटन शुरू हो गया।
चीन में दास समाज का प्रारम्भ श्या राजवंश की स्थापना से हुआ था। इन-शाङ और पश्चिमी चओ नामक दो दास-राजवंशों में इस का निरन्तर विकास हुआ तथा वसन्त और शरद काल में इस का धीरे-धीरे पतन हो गया। इस प्रक्रिया से गुजरने में कोई 1600 वर्षों का समय लगा था।
चीन के इतिहास में श्या राजवंश (21 वीं शताब्दी – 16 वीं शताब्दी ई. पू.) दासप्रथा वाली प्रथम राजसत्ता का प्रतिनिधित्व करता था। यह राजवंश य्वी नामक शासक द्वारा अपने बेटे छी को अपना पद दिए जाने के समय से लेकर अंतिम शासक च्ये की मृत्यु तक कुल 400 वर्षों से अधिक काल तक चला था। कृषि उस काल का प्रमुख धंधा था। इस राजवंश की गतिविधियों का केन्द्र आज के पश्चिमी हनान और दक्षिणी शानशी के आसपास के इलाकों में था।
ईसापूर्व 16 वीं शताब्दी में, ह्वाङहो नदी के निचले भाग के आसपास के इलाकों में रहने वाले शाङ कबीले ने अपने मुखिया थाङ के नेतृत्व में श्या राजवंश का तख्ता पलट दिया और शाङ राजवंश (16 वीं शताब्दी – 11 वीं शताब्दी ई. पू.) की स्थापना की। शुरू-शुरू में उसकी राजधानी पो (आज के हनान प्रान्त के शाङछ्यू के आसपास) थी। बाद में राजा फानकङ ने उसे इन (आज के हनान प्रान्त के आनयाङ के श्याओथुन के आसपास) स्थानान्तरित कर दिया। उस काल में राजनीति, अर्थतंत्र और संस्कृति का अत्यधिक विकास हुआ था। राजधानी इन की खुदाई से प्राप्त पुरावशेषों से उस समय की सामाजिक स्थिति का प्रतिबिम्ब देखने को मिलता है। शाङ राजवंश की अपनी अपेक्षाकृत सम्पूर्ण राज्य मशीनरी और सेना थी।
शहरों का उदय हो चुका था। कोदों, मकई, गेहूं और धान आदि फसलें उगाई जाती थीं। रेशम के कीड़े पालने, रेशम अटेरने और रेशमी कपड़ा बुनने की तकनीक को आत्मसात कर लिया गया था। कांसा पिघलाने और ढालने की विधि का भी पर्याप्त उच्च स्तर तक विकास हो चुका था। कांसे का इस्तेमाल मदिरापात्रों के अलावा, हथियार, धर्मानुष्ठान में काम आने वाले पात्र, खाने के बरतन, घोड़ा-गाड़ी के पुरजे, बाजे और औजार बनाने में भी किया जाने लगा था। ये सभी चीजें राजधानी इन के ध्वंसावशेषों की खुदाई से प्राप्त हुई हैं। आनयाङ नामक स्थान की खुदाई से प्राप्त कांसे का चार पैरों वाला एक आयताकार पात्र, जिस पर"सि मू ऊ"रेखाक्षर अंकित हैं, आज भी पेइचिंग के चीनी इतिहास के संग्रहालय में सुरक्षित रखा हुआ है।
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