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(GMT+08:00) 2005-04-06 10:07:55    
जेड की सच्चाई की जांच की तकनीक

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जेड को चीनियों के बीच विशेष महत्व प्राप्त है। जब विश्व के दूसरे क्षेत्रों के लोग स्वर्ण और अन्य रत्नों की तलाश में जुटे हुए थे, तभी चीनियों ने जेड के प्रति अपना गहरा प्यार दिखाना शुरू कर दिया था। जेड की अनेक किस्में हैं और उन सब में चीनी लोग हरे रंग के जेड या फेइज्वेई को सब से अधिक चाहते हैं। लेकिन विश्व के दूसरे क्षेत्रों की ही तरह चीन के जेड बाजार में भी जब-तब नकली जेड दिख जाते हैं। इसलिए जेड की जांच की बेहतर तकनीक बहुत आवश्यक हो गई है। जेड के बारे में चीन में प्रचलित कहानी इस तरह है। कोई 27 सौ साल पहले चीन के छू राजवंश में हुए प्यैन-ह नामक युवक ने एक पहाड़ में एक पत्थर में चिपके मूल्यवान जेड का पता लगाया। इस युवक ने यह जेड राजा को भेंट किया, लेकिन राजा ने जेड के बाहर के पत्थर को देखकर उसे भी सिर्फ पत्थर समझा और क्रोध में आकर प्यैन-ह की टांगें काटने का आदेश दिया। दुखी प्यैन-ह इस जेड को गोद में लिये तीन दिन तक रोता रहा। बाद में राजा के कर्मचारियों ने पत्थर में छिपे जेड का पता लगाया और इसे प्यैन-ह जेड नाम दिया। प्यैन-ह की कहानी भी जाहिर करती है कि जेड की सही जांच के लिए उच्च तकनीक की जरूरत होती है। जेड की गुणवत्ता और किस्म की जांच की तकनीक हासिल करना सरल नहीं है। आज जेड और जेड से निर्मित जेवर आम घरों तक पहुंच गये हैं। लेकिन आम लोगों के लिए असली जेड की जांच करना बड़ा कठिन है। पेइचिंग के एक व्यापारी श्री तु फंग का कहना है, मुझे जेड बहुत पसंद है। पर मैं आम तौर पर दो तीन हजार य्वान वाला सस्ता जेड ही खरीदता हूं। बाजार में ऊंची कीमत वाले बहुत से जेड दरअसल नकली होते हैं। श्री तु की चिन्ता समझ में आने वाली है। आज अनेक लोग जेड खरीद रहे हैं। बाजारों में जेड और जेड से निर्मित वस्तुओं का बहुत स्वागत हो रहा है। इसलिए कुछ व्यक्तियों ने नकली जेड का उत्पादन करना शुरू कर दिया है और उन की नकली जेड बनाने वाली तकनीक भी निरंतर विकसित हो रही है। इसलिए बाजार में नकली जेड की पहचान करना पहले से कठिन हो गया है। जहां तक फेइज्वेई का ताल्लुक है, यह सुन्दर और दुर्लभ जेड आम तौर पर म्येनमार से आता है। हरे के अलावा फेइज्वेई की कुछ किस्मों का रंग पीला , सफेद और लाल भी होता है। सब से मूल्यवान फेइज्वेई हरे रंग का थोड़ा पारदर्शी जेड होता है। आज अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इस से निर्मित कड़े का दाम लाखों य्वान तक है। इसके भारी मात्रा में आयात के चलते भी कुछ लोग नकली जेड बनाने की हरकत में लिप्त हुए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार नकली जेड की दो किस्में हेती हैं। पहली में किसी भी हरे रंग के पत्थर को फेइज्वेई का रूप दे दिया जाता है। ऐसा नकली जेड मुलायम होता पर इसके अन्दर कई अशुद्धियां रहती हैं। दूसरी किस्म का यह नकली जेड किसी सस्ते हरे जेड की सतह पर मूल्यवान फेइज्वेई के रंग की कलई कर तैयार किया जाता है। ऐसा फेइज्वेई काफी कठोर होता है और उस का रंग असली फेइज्वेई की ही तरह दिखता है। इस के अलावा कुछ व्यक्ति सस्ते जेड को तेजाब में रखकर उसे पोलिश से रंगीन बनाते हैं। ऐसे नकली फेइज्वेई पत्थर का दाम कुछ दर्जन य्वान भर होता है , पर इसे बाजार में एक से दो लाख य्वान की कीमत पर बेचा जाता है। इधर कुछ अपराधियों ने लैसर जैसी उच्च तकनीक के जरिये नकली जेड को फेइज्वेई का विशेष रंग देने की कोशिशें भी की हैं। ऐसे नकली जेड की नंगी आंखों से जांच नहीं की जा सकती। इसकी जांच के लिए विशेष यंत्र चाहिये। चीनी भूगर्भ संग्रहालय के कर्मचारी श्री च्यांग ईंगच्वन नकली जेड की जांच करने के लिए आम तौर पर दोहरे रंग वाले सूक्ष्मदर्शी का प्रयोग करते हैं। यदि नकली फेइज्वेई उन के सूक्ष्मदर्शी के नीचे रखा जाए, तो उसका रंग भूरा दिखेगा। कुछ और यंत्र भी हैं जो नकली जेड की जांच करने में उपयोगी साबित हुए हैं। हाल के वर्षों में चीन में जेड की जांच करने वाली लगभग साठ से अधिक विशेष संस्थाएं उभरी हैं। उन के पास अपने स्टूडियो और यंत्र हैं और वे जेड की जांच का प्रमाणपत्र तक देने का जिम्मा उठाते हैं। उपभोक्ताओं की मदद के लिए अनेक जेड जांच कक्षाएं भी खोली गयी हैं। इनमें लोगों को जेड की किस्म और गुणवत्ता की जांच की जानकारी मिलती है। विशेषज्ञों को मानना है कि जेड खरीदते समय उसे सिर्फ आंखों से देखना ही काफी नहीं है। इसलिए चीन के बहुत से आभूषण बाजारों के निकट ऐसी जांच संस्थाएं भी स्थापित की गई हैं जो ग्राहकों को जेड की जांच में मदद देती हैं। नीचे आप पढ़ पाते हैं पुरानी पुस्तों की जांच के बारे में कुछ जानकारियां । चीन की असंख्यक पुरानी पुस्तकें व चित्रें हैं । इन की सच्चाई या बनावटी की जांच करने का कौशल हमेशा कुछेक व्यक्तियों के हाथ में बना रहा है । कुछ व्यक्ति विशेष तौर पर इस काम में लगे हुए हैं , और उन्हें इस तरह पुरानी पुस्तकों व चित्रों की सच्चाई की जांच करने का मास्टर कहलाता है । लेकिन मास्टरों का कौशल आम तौर पर इन की व्यक्तिगत अनुभव से जुड़ा है । इस में अनुभवी मास्टर भी अक्सर गलतियां बनाते हैं । इस लिए कुछ चीनी तकनीशियनों ने उच्च तकनीक के जरिये पुरानी पुस्तकों व चित्रों की सच्चाई की जांच करने का प्रयास किया है और भारी प्रगतियां प्राप्त कीं । पेइचिंग अध्यापन विश्वविद्यालय की प्रोफेसर ओयांग छीमींग ने स्पेक्ट्रमी यंत्र नामक मशीन से पुरानी पुस्तकों की सचचाई का तुरंत ही पता लगाने में सफल किया है । इन के स्पेक्ट्रमी यंत्र को पुरानी पुस्तकों व चित्रों के ऊपर रखा जा , तो यंत्र नीचे पुरानी पुस्तकों व चित्रों के अक्षर, निशानों व कागज़ की सामग्रियों का डेटा को एकत्र कर सकेगा । फिर इन डेटा की सच्चाई, पुरानी पुस्तकों व चित्रों से प्राप्त डेटा के साथ तुलना की जाएगी । अगर ये डेडा एक ही है , तो पुरानी पुस्तकों की सच्चाई का प्रमाण किया जा सकता है । प्रोफेसर ओयांग छीमींग पुरानी पुस्तकों व चित्रों की सच्चाई का पता लगाने की मास्टर नहीं हैं । लेकिन उन्हों ने अपने स्पेक्ट्रमी यंत्र से दवाओं की जांच करते समय इस का पता लगाया कि इस यंत्र का , पुरानी पुस्तकों व चित्रों की सच्चाई का पता लगाने में भी इस्तेमाल किया जा सकता है । प्रोफेसर ओयांग छीमींग ने अपने यंत्र का परिचय देते हुए कहा , विभिन्न प्राचीन काल में प्रयुक्त स्याही और पेंट सामग्री भी अलग हैं । इसलिए स्पेक्ट्रमी यंत्र से भिन्न पुरानी पुस्तकों व चित्रों की सामग्रियों की तुलना करने से इन पुस्तकों व चित्रों का युग तय किया जा सकता है । बहुत से विशेषज्ञों ने भी श्री शी शू छींग के विचार का समर्थन किया है । पेइचिंग में रहने वाली सुश्री रेंह्वा के घर में बड़ी मात्रा की पुरानी पुस्तक और चित्र हैं । उन्हों ने अपनी पुरानी पुस्तकों व चित्रों की सच्चाई तय करने में अनेक माध्यम चुना है । उन के मित्रों में कुछ पुरानी पुस्तकों व चित्रों की सच्चाई की जांच करने के मास्टर भी हैं , और कुछ रासायनिक माध्यम से पुरानी रचनाओं की सच्चाई या बनावटी का पता लगाते हैं । उन्हों ने कहा कि बनावटी रचने वाले भी पुरानी कागज़ का इस्तेमाल किया करते हैं । और वे पुरानी रचकों की विशेषता और कौशल का अनुसरण करने में भी सफलतापूर्ण हो सकते हैं । इसलिये पुरानी पुस्तकों व चित्रों की सच्चाई की जांच करने में सभी माध्यमों व तकनीकों को साथ साथ जोड़ना चाहिये । इसमें यह भी चर्चित है कि ऐसी तकनीक से पुरानी पुस्तकों की सच्चाई की जांच करने में इन पुस्तकों के प्रति कोई क्षति नहीं पहुंचती है ।