सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश अपनी विशेष शैली के मनमोहक नृत्य गान से देश में अत्यन्त मशहूर है । वहां बड़ी संख्या में विभिन्न जातियों के श्रेष्ठ कलाकार प्रशिक्षित हुए हैं । वेवूर जाति के कलाकार श्री अखपार उन में से एक है ।
37 वर्षीय अखपार का जन्म सिन्चांग की वेवूर जाति के एक कलाकार परिवार में हुआ । उस का पिता अबुतुगुली सिन्चांग का मशहूर शहनाई वादक है और माता जी एक नृत्य कलाकार । अखपार के 15 भाई बहन हैं , सभी 16 लोग नृत्यगान में पारंगत और मशहूर हैं । अखपार का सब से बड़ा भाई खरिमु चीन का सुप्रसिद्ध गायक है , जो हान भाषा में वेवूर के लोकगीत प्रस्तुत करने वाला प्रथम वेवूर कलाकार हैं । अखपार के अन्य दो बड़े भाई सिन्चांग के सुप्रसिद्ध गायक हैं ।
खुद श्री अखपार बालावस्था में ही गाने नाचने में होशियार नजर आया था , वह खुली मिजाज का है और विनोद पसंद करते हैं। चार साल की उम्र में वह रंगमंच पर लोकगीत प्रस्तुत करने लगा , सात साल की उम्र में वह 13 वेवूर नृत्य में कुशल हुआ । उस में कला का असाधारण बौध होता है । सिन्चांग के मशहूर गायक होने के अलावा नाना किस्मों की आवाज की नकल उतारने में भी कुशल है और उस की यह कला कुशलता बालावस्था में भी व्यक्त हुआ था । अपने बचपन की एक घटना की याद करते हुए आज के सिन्चांग के सशस्त्र पुलिस बल की कला मंडली के उप नेता बने अखपार ने कहाः
बालावस्था में मैं अत्यन्त नटखट था । एक रात मैं नींद से नहीं सो पाया , इस समय पड़ोसी के घर में मादा बकरी से बच्चे का जन्म होने वाला था , तो मैं ने आधी रात को उठ कर मेमने की आवाज की नकल उतार कर दी । पड़ोसी की दादी समझी कि मादा बकरी से मेमने का जन्म हुआ है , तो वह बाहर निकल कर बाड़े में देखने गयी , बकरी के बच्चे का जन्म नहीं हुआ देख कर वह पुनः कमरे में गयी . मैं ने फिन मेमने की आवाज की नकल उतारी , वह फिर देखने बाहर आ गई । तीन चार बार ऐसा हुआ , जब मादा बकरी से सच में बच्चे का जन्म हुआ ,तो पड़ोसी की दादी गलत समझ कर बाहर नहीं आई, इस के कारण दो नवजात मेमनों ने बिना देखरेख से दम तोड़ा । मैं इस पर बहुत दुखी हो गया ।
कला पर अपनी असाधारण प्रतिभा और संगीत से असीम प्यार के चलते अखपार 16 साल की उम्र में सेना में एक बाल कलाकार बन गया और इस तरह उस का संगीत जीवन आरंभ हुआ । वेवूर होने पर भी वह देश के दूसरे स्थानों और जातियों के लोकगीत और ओपेरा संगीत पसंद करते हैं और मंच पर प्रस्तुत भी करते हैं । श्री अखपार की आवाज में जो उत्तर पश्चिम चीन के उत्तरी शेनसी प्रांत का लोक गीत प्रस्तुत है , वह बहुत मधुर और उत्तरी शेनसी की गाढ़ा विशेष शैली में है । अखपार गीत संगीत सीखने में भी अत्यन्त मेहनती और तेज दिखे हैं । वह रोज अपने पास सी डी ले जाते हैं , जब कभी फुरसत मिली , तो बजा कर सीखते हैं । ठेठ शैली के उत्तरी शेनसी का लोक गीत सीखने के लिए वर्ष 1995 में वह विशेष कर उत्तरी शेनसी प्रांत गये और वहां के लोकगीत बादशाह नाम से मशहूर 70 वर्षीय दादा ली से लोकगीत सीखे । इस बात की चर्चा में उस ने कहाः
उत्तरी शेनसी प्रांत में लोकगीत सीखने के दौरान मेरा जीवन काफी कठिन था , रोज नमकीन सब्जी के साथ बाजरे का चावल खाते थे । संगीत के साथ वहां का स्थानीय नाच भी सीखते थे ,जिस से मेरा शारीरिक बजन दस किलोग्राम घट गया । लेकिन दादा ली की यह बातें हमेशा मेरी कान में गूंजती रही है कि कठोर जीवन से मधु परिणाम निकलता है ।
अथक अध्ययन और सृजन के फलस्लरूप अखपार की कला शैली में अपनी विनोदपूर्ण विशेषता संपन्न हुई है , जो दूसरों से अलग पहचान बन गई है । उसकी गायन शैली में गाढ़ा जातीय विशेषता के साथ जीवन का जोशीला भाव उजागर होता है । उस के गीत लोगों में बेहद लोकप्रिय है ।
श्री अखपार कलाकार भी है और सैनिक भी । अपना कला स्तर उन्नत करने के अलावा वह सेना के शिविरों में कार्यक्रम प्रस्तुत करने जाया करते हैं । पिछले साल वह खुनलुन पर्वत पर तैनाक एक सैनिक चौकी गए , समुद्र सतह से पांच हजार मीटर ऊंचे स्थान पर महज दस सैनिक रहते है । कड़ाके की सर्दी और आक्सिजन के अभाव के मौसम में उस ने सैनिकों को छै गीत गा गा कर सुनाए , उस की सांस कठिन चल रही थी , तो भी उस ने कुछ आक्सिजन ले कर फिर गाना जारी रखा , उस के अंतिम गीत यौद्धाओं की याद से प्रभावित दस सैनिकों की आंखों में आंसू भर आयी और खुद अखपार की आंखू डबडबा हो गई ।
ज्यादा से ज्यादा लोगों को सिन्चांग के गीत संगीतों से अवगत कराने के लिए पिछले साल की जनवरी में अखपार ने उस साल का तौल्यांग नृत्य नामक अपना प्रथम संगीत एलब्म जारी किया , जिस में शामिल गीतों से लोकगीत और पोपगीत का मिश्रित गायन सुनने को मिलता है ।
अखपार के एलब्म में शामिल तौल्यांग नृत्य का प्रमुख गीत है । तौल्यांग नृत्य सिन्चांग के तारिम बेसिन में बसे वेवूर जाति के लोगों का परम्परागत नृत्य है , जो शानदार फसल काटी जाने के समय नाचा जाता है , तौल्यांग का अर्थ लोकप्रिय गायक है । इस गीत को अच्छी तरह पेश करने के लिए अखपार तौल्यांग नृत्य की जन्म भूमि मैकेती में एक महीने तक रह चुके थे । गीत के बोल कुछ इस प्रकार हैः
नाचो , नाचो , धरती का रूपाकार बदल रहा , नाचो नाचो , नदी का पानी झुक गया , नाचो नाचो , टोपी सिर पर से गिरा , जूता पांव से हट गया। इस से शानदार फसल कटने के समय किसानों में उत्साह और उमंग की लहरें दौड़ी दिखी है ।
इस संगीत एलब्म के लिए अखपार ने बड़ी मेहनत और लगन से काम किया था , धुन बजाने में उपयोगी सभी वाद्य सिन्चांग के प्राचीन बाजा साजा है , तंबल , दुतार और रेवाब नाम से मशहूर ये सिन्चांग वाद्य हाथों से बनाए गए है . अखपार ने कहाः
सिन्चांग के गीत संगीत प्रचूर हैं , वृद्ध बालक सभी लोग नाचगान के शौकिन हैं , त्यौहार और शादी ब्याह में यदि खाना पीना नसीब नहीं है , तो कोई खास समस्या नहीं है , यदि नाच गान नहीं है , तो जरा खुश आनंद नहीं मिलता है । मेरे एलब्म तौल्यांग नृत्य की अपनी विशेष पहचान है , इस से तौल्यांग स्थान के संगीत की मोहन शक्ति अभिव्यक्त होती है । मैं उसे आधुनिक इलेक्ट्रोनिक वाद्य से बजा कर सिन्चांग से बाहरी दुनिया तक पहुंचाने की कोशिश करता हूं ।
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