स्वेइ, थाङ, सुङ और य्वान राजवंशों के जमाने में चीन ने विदेशों के साथ अपने संबंध स्थापित व विकसित करने में एक सक्रिय भूमिका अदा की थी। लेकिन मिङ छिङ काल में वह एक निष्क्रिय स्थिरति में पड़ गया।
जब मिङ राजवंश की जगह छिङ राजवंश ने ले ली थी और जब चीन सामन्ती अवस्था व जड़ता की स्थिति में पड़ा हुआ था, तब पश्चिम में पूंजीवाद का सक्रियता से विकास हो रहा था। लेकिन चीन के तत्कालीन शासक बाहर की दुनिया के इस विकास से पूर्णतः अनभिज्ञ रहे।
16 वीं शताब्दी के प्रारम्भ से कुछ पश्चिमी देशों ने पूर्व में अपनी उपनिवेशवादी सरगर्मियां शुरू कर दीं और चीन की प्रादेशिक भूमि का अतिक्रमण किया। समय के साथ साथ चीन के संदर्भ में उन की कुआकांक्षाएं तीव्र से तीव्रतर होती गईं।
यह सच है कि चीन ने मिङ राजवंश के शुरू में एशिया और अफरीका के अनेक देशों की यात्रा पर चङ हो और उस के बेड़े को भेजने में तथा छिङ राजवंश के शुरू में जारशाही रूस के आक्रमण के विरूद्ध जवाबी प्रहार करने में बहुत उत्साह व सक्रियता दिखाई थी। तथापि, समग्र रूप से देखा जाए तो चीन की स्थिति उत्तरोत्तर अकर्मण्यता व निष्क्रियता की होती जा रही थी।
विदेशों के साथ चीन के संबंधों का विकास करने के उद्देश्य से मिङ राजवंश के सम्राट छङचू और उसके उत्तरवर्ती सम्राटों द्वारा चङ हो को एशिया व अफरीका के अनेक देशों की यात्रा व उन के साथ व्यापार करने के लिए भेजा गया।
चङ हो ने समुद्री मार्ग से सात बार हिन्दचीन , मलय द्वीपसमूह , भारत, ईरान और अरबिया की यात्रा की। वह सबसे दूर अफरीका के पूर्वी समुद्रतट तक गया। उस ने कुल मिलाकर 20 साल से अधिक समय में 30 से अधिक देशों की यात्राएं की थीं।
चङ हो की इन समुद्री यात्राओं ने चीन और बहुत से एशियाई अफरीकी देशों के बीच आर्थिक व सांस्कृतिक आदान प्रदान को आगे बढाया, साथ ही उन से चीनी जनता और इन देशों की जनता के बीच मैत्री में भी वृद्धि हुई। तब से अधिकाधिक चीनवासी स्वदेश से जाकर दक्षिणपूर्वी एशिया में स्थाई रूप से बसने लगे।
ये प्रवासी चीनी जहां जहां गये, अपने साथ कृषि कौशल तथा लोहे के औजार, कांसे के बरतन व पोर्सिलेन की ले गए। वे जिन देशों में जाकर बसे वहां के मूल निवासियों के साथ मिलकर उन्होंने उन की अर्थव्यवस्था व संस्कृति के विकास में भारी योगदान किया।
मिङ राजवंश के शुरू से लेकर दो सौ वर्षों तक जापानी समुद्री डाकू जब तब चीन के दक्षिणपूर्वी समुद्रतट पर धावा बोलकर वहां की जनता की हत्या व सम्पत्ति की लूटपाट जैसी गतिविधियां करते रहे। वे कभी कभी तटवर्ती शहरों को भी अपना निशाना बनाकर उन पर कब्जा कर लेते थे और भारी तबाही मचाते थे।
लेकिन जब दक्षिण पूर्वी समुद्रतट की रक्षा का भार छी चीक्वाङ नामक सेनापति के कंधों पर आया, तो उस ने व्यापक जन समुदाय और स्थानीय अधिकारियों के समर्थन से चच्याङ, फूच्येन और क्वाङतुङ प्रान्तों में इन समुद्री ड़ाकुओं को 1561 और 1565 के बीच बारम्बार पराजित किया। इस प्रकार चीन की दक्षिणपूर्वी तटीय प्रतिरक्षा में सुधार हुआ।
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