चीन के प्राचीन शहर कगाओ गो ली और उसके वास्तुओं के 28वें विश्व विरासत सम्मेलन में विश्व विरासत सूची में शामिल होने के बाद चीन की विश्व विरासतों की संख्या 30 तक पहुंच गयी है। इस दृष्टि से चीन विश्व में तीसरे स्थान पर आ गया है। इन विरासतों प्रबंधन व संरक्षण लोगों को आकर्षित करता है ।
वर्ष 1972 में संयुक्त राष्ट्र शिक्षा विज्ञान व संस्कृति संगठन यानी युनेस्को ने विश्व विरासत संधि संपन्न की। वर्ष 1985 में चीन इस संधि में शामिल हुआ। अब तक चीन की कुल तीस सांस्कृतिक व प्राकृतिक विरासतें विश्व विरासत सूची में शामिल की गई हैं, जिन में थाई शान पर्वत, ह्वांग शान पर्वत, अर्मेई शान पर्वत तथा वू यी शान पर्वत आदि चार पर्यटन स्थल सांस्कृतिक व प्राकृतिक विश्व विरासतों में शामिल हैं। इसके अलावा, चीन और करीब सौ परियोजनाओं को विश्व विरासत सूची में शामिल करने का आवेदन कर रहा है। इसमें विश्व विरासत के लिए सबसे ज्यादा आवेदन किये जा रहे हैं।
चीन एक विशाल देश है।इस का इतिहास बहुत पुराना है। इसलिए यहां अनेक मूल्यवान विरासतें व सुन्दर प्राकृतिक स्थल हैं। इन स्थलों को विश्व विरासत की सूची में शामिल किये जाने पर ये शीघ्र पर्यटन स्थल बन जाएंगे। उदाहरण के लिए उत्तरी चीन के शान शी प्रांत का प्राचीन शहर फिंग याओ विश्व विरासत सूची में शामिल किए जाने के पूर्व भी लम्बे समय से मौजूद था, और हर वर्ष उसका पर्यटन करने वालों की संख्या एक लाख के आसपास थी। पर वर्ष 1997 में फिंग याओ को विश्व विरासत सूची में शामिल किए जाने के बाद वहां आने वाले पर्यटकों की संख्या में भारी वृद्धि हुई। वर्तमान में इस शहर की सैर करने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों की संख्या एक अरब तक पहुंच गयी है।
प्राचीन शहर फिंग याओ चीन के भीतरी इलाके में स्थित है, जहां का यातायात बहुत सुविधाजनक है, लेकिन इस के विपरीत उत्तर-पश्चिमी के रेतीले क्षेत्र में स्थित कान शू प्रांत की तुन ह्वांग मो गाओ गुफ़ा का यातायात बहुत सुविधाजनक नहीं है । तुन ह्वांग के अवशेषों का अनुसंधान केंद्र चीन की इस प्राचीन विरासत के संरक्षण व सुधार के लिए जिम्मेदार है। इस केंद्र की अध्यक्ष सुश्री फ़ान चिन शी ने कहा
"मेरा विचार है कि हमारे देश की तुन ह्नांग जैसी कुछ विश्व विरासतें सीमा से अधिक दोहन का शिकार हुईं। पर्यटकों की भारी संख्या के कारण इन विरासतों को भारी नुकसान पहुंचा।"
ऐसी स्थिति चीन की अन्य विश्व विरासतों को लेकर भी है, जिस पर चीन सरकार के संबंधित विभागों का ध्यान आकृष्ट हुआ है । चीनी राष्ट्रीय अवशेष ब्यूरो के विश्व विरासत प्रबंधन विभाग के निदेशक श्री क्वो जान ने इस की चर्चा में कहा
"चीन का भौगोलिक दायरा बहुत विशाल होने के कारण आर्थिक व सांस्कृतिक स्तर भी भिन्न है। कुछ स्थलों के भिन्न सीमा तक विश्व विरासत सूची में शामिल करने के आवेदन पर जोर देना, विरासतों के प्रबंधन को महत्व न देना , विरासतों का सीमा से अधिक प्रयोग किया जाना तथा उन के संरक्षण को महत्व न देना आदि समस्याएं मौजूद है । हम ने विरासतों के संरक्षण को बेहतर बनाया है।"
श्री क्वो जान के अनुसार, ऐतिहासिक कारणों से चीन की विश्व विरासतों का प्रबंधन विभिन्न विभागों में बंटा हुआ है। चीनी राष्ट्रीय अवशेष ब्यूरो, निर्माण मंत्रालय, स्थानीय सरकार यहां तक कि चीनी विज्ञान अकादमी भी चीनी विश्व विरासतों के प्रबंध विभाग हैं । चीनी विश्व विरासतों के प्रबंधन को अलग-अलग भागों में बांटे जाने से भी सवाल पैदा हुए।
चीन की विश्व विरासतों के प्रबंधन में मौजूद इस समस्या का अब समाधान किया जा रहा है। चीनी राष्ट्रीय अवशेष ब्यूरो और चीनी निर्माण मंत्रालय आदि विभागों ने विशेष सभा आयोजित कर चीन की वस्तुस्थिति के अनुकूल विश्व विरासतों का संरक्षण के प्रस्ताव पर विचार किया है। इस के साथ ही आर्थिक शक्ति की मज़बूती के साथ चीनी केंद्रीय सरकार से विभिन्न स्थानीय सरकारों तक की सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण व जीर्णोद्धार की क्षमता उन्नति हुई है। वर्ष 2004 में पेइचिंग ने अपनी छै विश्व विरासतों के लिए सर्वतोमुखी जीर्णोद्धार व सुरक्षा संबंधी प्रस्ताव पेश किया। इस की चर्चा में पेइचिंग सांस्कृतिक अवशेष ब्यूरो के अध्यक्ष मेई निंग ह्वा ने कहा
"इधर पेइचिंग के थ्येन थान महल, समर पेलिस, लम्बी दीवार तथा मिंग राजवंश के तेरह मकबरों का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। विश्व विरासतों के जीर्णोद्धार को इतनी गति देना अभूतपूर्व है। इस से राजधानी पेइचिंग की विश्व विरासतों की स्थिति बेहतर होगी।"
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