हमें बताया गया कि नदी के सुंदर प्राकृतिक दृश्य का आनन्द उठाने में सब से बड़ा मजा नाव से आता है। नदी में धीरे-धीरे चलती नाव से दोनों किनारों के अद्भुत दृश्य ही साफ नजर नहीं आते हैं, दूसरी नावों पर सवार म्याओ जाति के युवकों व युवतियों के सुरीले गीत भी सुनने को मिलते हैं। मैं कुछ पर्यटकों के साथ एक छोटी नाव पर सवार होकर नदी के बीच पहुंची, तो दूर से गीतों व ढोल की आवाज सुनाई पड़ी।
दोस्तो, हम चीन का भ्रमण कार्यक्रम में अब तक मध्य-दक्षिण चीन के हूनान प्रांत के कई प्रसिद्ध रमणीक स्थल हो आये हैं। पिछले दिनों हम इसी प्रांत के एक छोटे पर प्राचीन शहर फंगह्वांग को देखने भी गये ।
वहां देखने के बाद हमें मालूम हुआ कि पिछले कई हजार वर्ष यह नगर पर्वतों के बीच छिपा रहा। इस क्षेत्र में जन्मे चीन के सुप्रसिद्ध आधुनिक साहित्यकार व इतिहासकार श्री शन त्सों वन ने 60 साल पहले पहली बार सुदूर नगर नामक अपने उपन्यास में इस का गहन चित्रण किया और धीरे-धीरे बाहरी लोगों ने इस उपन्यास के जरिये इस प्राचीन नगर का परिचय पाया। इसके बाद इस नगर का रहस्यमय व शांतिमय वातावरण अनेक लोगों के आकर्षण का केंद्ग बना।
उल्लेखनीय है कि इस नगर की छोटी संकरी गलियां, पुरानी दीवारें, प्राचीन भवन, घाट व मंदिर पर्यटकों को मोह लेते हैं। हरेक गली-सड़क यहां पाये जाने वाले भूरे रंग के पत्थरों से बनी है। रोचक बात यह है कि यहां के मकानों की वास्तुशैली एक सी नहीं है यों उन की छतों पर लगी काली खपरैलें और इन की भूरी लकड़ियों की दीवारें एक ढंग की हैं। एक-दूसरे से सटे अपने ही ढंग के ये मकान एक असाधारण दृश्य बनाते हैं।
प्रसिद्ध चीनी साहित्यकार व इतिहासकार शन त्सों वन का चारदीवारी वाला घर फूंगह्वांग के पुराने आवास स्थलों का एक नमूना माना जाता है।
और तो और इस नगर की झूलती इमारतें पर्यटकों को अपनी ओर खिंच लेती हैं। ऐसी एक इमारत का एक छोर नदी तट से सटा होता है, जब कि दूसरा नदी के बीच खड़े दो खंभों पर टिका होता है। एक-दूसरी से जुड़ी ये इमारतें एक ही वास्तुशैली की हैं। ऐसी इमारत में रहने पर आपको लग सकता है मानो आप एक सुंदर चीनी स्याही चित्र के भीतर रह रहे हों ।
यहां हमें बताया गया कि नदी के सुंदर प्राकृतिक दृश्य का आनन्द उठाने में सब से बड़ा मजा नाव से आता है। नदी में धीरे-धीरे चलती नाव से दोनों किनारों के अद्भुत दृश्य ही साफ नजर नहीं आते हैं, दूसरी नावों पर सवार म्याओ जाति के युवकों व युवतियों के सुरीले गीत भी सुनने को मिलते हैं। मैं कुछ पर्यटकों के साथ एक छोटी नाव पर सवार होकर नदी के बीच पहुंची, तो दूर से गीतों व ढोल की आवाज सुनाई पड़ी।
नाव के एक पुल के नीचे से गुजरने पर गाइड ने उस की ओर इशारा करते हुए बताया कि हुंगछाओ नाम का यह पुल 6 सौ साल से भी अधिक समय पुराना है और भूरे पत्थरों व लसदार चावल से बनाया गया है। पिछले सैकड़ों सालों में यह हवा व वर्षा का शिकार रहा, पर आज भी अपनी जगह मजबूती से टिका है।
इस पुराने पुल से होकर हम चहलपहल भरी एक छोटी सी सड़क पर पहुंचे। इस सड़क के किनारे लगी दुकानों में जंगली कवक और कसीदाकारी की अनेक स्थानीय विशेष वस्तुओं के अलावा म्याओ जाति में प्रचलित कंगन, बालियां जैसे चांदी के खूबसूरत आभूषण भी बिक रहे थे। उत्तर-पूर्वी चीन के चिन चाओ शहर से आये पर्यटक ली तूंग एक दुकान में अपनी प्रेमिका के लिए उपहार खरीदने में व्यस्त थे।
उन्होंने बताया कि यहां की वास्तु शैली अपने ही ढंग की है औऱ लोग भी बहुत सादे, शिष्ट व दयालु हैं। ऐसा बड़े शहरों में कम देखने को मिलता है।
प्राचीन फुंगह्वांग नगर में मैं ने दक्षिणी लंबी दीवार की भव्यता भी देखी। यह लम्बी दीवार इस नगर से 8 किलोमीटर दूर स्थित एक पर्वतीय श्रृंखला पर खड़ा है।यहां रहने वाली सुश्री हू चुन लान ने कहा कि चार सौ साल पहले लोगों ने बाहरी आक्रमण के मुकाबले के लिए यहां यह दीवार खड़ी की और यह चीन की सबसे प्राचीन परियोजनाओं में से एक थी।
दक्षिणी लम्बी दीवार की लम्बाई 190 किलोमीटर और ऊंचाई तीन मीटर है। यह मुख्य तौर पर मजबूत काले पत्थरों से निर्मित है। इस दीवार की निर्माण शैली चीन की प्रसिद्ध लम्बी दीवार से बहुत फर्क नहीं है। अतीत में इसने म्याओ व हान जातियों के बीच सम्पर्क को बाधित रखा, पर आज यह चीन की अल्पसंख्यक जातियों की सांस्कृतिक धरोहर बन गयी है।
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