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(GMT+08:00) 2005-03-09 13:48:41    
मध्य दक्षिण चीन के हूनान प्रांत का पर्वतों से घिरा प्राचीन फुंगह्वांग नगर

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पिछले कई हजार वर्ष यह नगर पर्वतों के बीच छिपा रहा। इस क्षेत्र में जन्मे चीन के सुप्रसिद्ध आधुनिक साहित्यकार व इतिहासकार श्री शन त्सों वन ने 60 साल पहले पहली बार सुदूर नगर नामक अपने उपन्यास में इस का गहन चित्रण किया और धीरे-धीरे बाहरी लोगों ने इस उपन्यास के जरिये इस प्राचीन नगर का परिचय पाया।

प्रिय मित्रो , चीन का भ्रमण कार्यक्रम में अब तक मध्य-दक्षिण चीन के हूनान प्रांत के कई प्रसिद्ध रमणीक स्थल हो आये हैं। चलिए आज इस के एक छोटे पर प्राचीन शहर फंगह्वांग को देखने चलें ।

मध्य-दक्षिण चीन के हूनान प्रांत का थू चा व म्याऔ जातीय स्वायत्त प्रिफेक्चर उसके पश्चिमी भाग में स्थित है , चारों तरफ पर्वतों से घिरा हुआ है। रहस्यमय प्राचीन फुंगह्वांग नगर इसी प्रिफेक्चर में है। पिछले कई हजार वर्ष यह नगर पर्वतों के बीच छिपा रहा। इस क्षेत्र में जन्मे चीन के सुप्रसिद्ध आधुनिक साहित्यकार व इतिहासकार श्री शन त्सों वन ने 60 साल पहले पहली बार सुदूर नगर नामक अपने उपन्यास में इस का गहन चित्रण किया और धीरे-धीरे बाहरी लोगों ने इस उपन्यास के जरिये इस प्राचीन नगर का परिचय पाया। इसके बाद इस नगर का रहस्यमय व शांतिमय वातावरण अनेक लोगों के आकर्षण का केंद्ग बना।

पिछली शरद के एक दिन मैंने इस रहस्यमय नगर को देखने का मौका हासिल किया। प्राचीन फुंगह्वांग नगर इसी नाम की काउंटी में स्थित है। काउंटी शहर को चार सौ वर्ष पुरानी मोटी दीवारें घेरे हुए हैं। शहर के निवासियों की संख्या तीन लाख है। उन का अधिकांश म्याओ व थू चा अल्पसंख्यक जातियों का है। जब हम काउंटी शहर के उत्तरी द्वार पर पहुंचे, तो म्याओ जाति की सजीधजी युवतियों ने पहाड़ी गीत गाकर हमारी अगवानी की कि फूंगह्वांग नगर इस काउंटी शहर के पश्चिमी भाग में स्थित है। नगर की कई छोटी संकरी गलियां, पुरानी दीवारें, प्राचीन भवन, घाट व मंदिर बड़े दर्शनीय हैं। हरेक गली-सड़क यहां पाये जाने वाले भूरे रंग के पत्थरों से बनी है। सड़क के किनारे लगभग सौ साल पुराने मकान सुव्यवस्थित रूप से खड़े हैं। रोचक बात यह है कि इन मकानों की वास्तुशैली एक सी नहीं है यों उन की छतों पर लगी काली खपरैलें और इन की भूरी लकड़ियों की दीवारें एक ढंग की हैं। एक-दूसरे से सटे अपने ही ढंग के ये मकान एक असाधारण दृश्य बनाते हैं। शरद में यहां ढेरों पर्यटक आते हैं और चारों ओर बड़ी हलचल रहती है। पर बेशुमार मकानों वाली इन गलियों का वातावरण बड़ा शांत रहता है।

प्रसिद्ध चीनी साहित्यकार व इतिहासकार शन त्सों वन का पुराना घर इसी नगर की एक तंग गली में है। लाल पत्थरों से निर्मित छोटे आंगन वाला यह घर पेइचिंग के चारदिवारी वाले परम्परागत मकान जैसा है। इसके अत्यंत सूक्ष्म नक्काशी वाले दरवाजे व खिड़कियां अब भी सुरक्षित हैं और दसेक साफ-सुथरे कमरों में श्री शन के छायाचित्रों के साथ स्याही व परम्परागत चीनी कूची तथा कलम वाले लिपिकला के नमूने प्रदर्शित हैं। श्री शन ने इस मकान में अपना बचपन व लड़कपन बिताया। मेरे साथ चल रही गाइड सुश्री फंग ली ने बताया कि यह मकान कोई 150 वर्ष पुराना है और फुंगह्वांग के पुराने आवासों का एक नमूना भी।

चारदीवारी वाला यह घर फूंगह्वांग के पुराने आवास स्थलों का एक नमूना माना जाता है। इसे शन त्सों वन के दादा ने बनवाया। पुराने समय में इस नगर में चारदीवारी से घिरे आंगन में मकान के प्रमुख कमरे व बैठक के साथ दोनों तरफ अन्य कमरे बनवाने की परम्परा थी। इस मकान की छत पर लगी खपरैल मिट्टी से बनी है, मकान की सभी दीवारे लकड़ियों की हैं, पर उसे नमी से बचाने के लिए दीवारों का निचला भाग और मकान का आधार पत्थरों का रखा गया है।

शन त्सों वन के पुराने घर की दायीं तरफ कलकल करती थो च्यांग नदी बहती है। इस नदी का पानी इतना स्वच्छ है कि उस के तल में उगी घास व जंतु तक साफ-साफ दिखाई पड़ते हैं। नदी के ऊपरी भाग में निर्मित झूलती इमारतें एक लम्बी कतार में खड़ी नजर आती हैं। प्राचीन फुंगह्वांग नगर की यह भी एक अलग पहचान है।

झूलती इमारतें स्थानीय म्याओ व थू चा जातियों की विशेष जातीय वास्तुशैली में निर्मित हैं। ऐसी एक इमारत का एक छोर नदी तट से सटा होता है, जब कि दूसरा नदी के बीच खड़े दो खंभों पर टिका होता है। एक-दूसरी से जुड़ी ये इमारतें एक ही वास्तुशैली की हैं। ऐसी इमारत में रहने पर आपको लग सकता है मानो आप एक सुंदर चीनी स्याही चित्र के भीतर रह रहे हों, क्योंकि आपके नीचे एक स्वच्छ नदी बह रही होती है, पीछे हरे-भरे पर्वत होते हैं और ऊपर नीले आकाश में सफेद बादल मंडरा रहे होते हैं। यह एक मर्मस्पर्शी दृश्य की रचना करता है। नदी के किनारे मैंने पर्यटकों व स्थानीय पर्वतवासियों के अलावा तीन-चार छात्रों को यह चित्र उकेरने में मगन देखा।