मित्रो , शायद आप को याद हो कि चीन का भ्रमण कार्यक्रम में हम मध्य-दक्षिण चीन के हू नान प्रांत के उस ल्यूयांग शहर का दौरा कर चुके हैं जो आतिशबाजी के लिए विश्वविख्यात है। आज के इस कार्यक्रम में हम आप को ले चल रहे हैं इसी प्रांत के थाओ ह्वा य्वान नामक रमणीक स्थान की सैर पर।
चीन भर में इस क्षेत्र के बारे में एक मशहूर किम्वदंती है। कहते हैं कि बहुत पहले एक मछुआ मछलियों का शिकार करने के बाद घर वापस लौटते समय रास्ता भटक गया और इस तरह आड़ू के फूलों से ढकी एक अनजान पहाड़ी घाटी में जा पहुंचा। उसने देखा कि बाहरी दुनिया से एकदम अपरिचित वहां के निवासी बड़ा निश्चिंत जीवन बिता रहे हैं। मछुए ने अपनी यह खोज स्थानीय लोगों को बतायी जो धीरे-धीरे आम लोगों के बीच इतनी चर्चित हुई कि सांसारिक जीवन से ऊव चुके कुछ लोग इस जगह की ओर आकर्षित होने लगे। यह स्थान आज के हूनान प्रांत के छांग तेह शहर के उपनगरीय क्षेत्र में है। पिछली शरद के एक दिन, मैं ने भी इस की यात्रा का कार्यक्रम बनाया।
छांगतेह शहर से मैं कार से कोई तीस मिनट में थाऔ ह्वा य्वान क्षेत्र पहुंची। वहां लकड़ी के एक बहुत बड़े बारीक नक्काशीदार मंडप को पार करते ही मुझे आड़ू का एक विशाल बगीचा नजर आया। इस बगीचे का क्षेत्रफल कोई 130 हैक्टर है और उसमें आड़ू के एक लाख से ज्यादा पेड़ खड़े हैं। इस विशाल उद्यान में इतने सारे पेड़ देखकर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ। कल्पना की जा सकती है कि जब वसंत में इन सभी पेड़ों पर फूल खिलते होंगे, तो उनसे रंगों की कितनी सुंदर दुनिया बन पड़ती होगी।
इस उद्यान के बगल की पगडंडी पर चलते-चलते मैं एक बहुत साधारण सी गुफा के सामने जा पहुंची। और इस गुफा को पार करने के बाद खुद को किम्वदंती वाली जगह पाया। गाइड सुश्री चाओ ली इंग ने बताया कि इस छोटे से रहस्यमय गांव तक पहुंचने के लिए सबको इस गुफा से गुजरना पड़ता है।
गुफा के पार लहलहाते खेत, मकान और मछलियों से भरे तालाब नजर आये। इस पहाड़ी गांव में कुल नौ परिवार रहते हैं और सभी का कुल नाम छिन है। रोजमर्रा के काम की कुछ वस्तुएं वे पहाड़ के नीचे जाकर खरीद लाते हैं। गांव के सभी मकान लकड़ी या बांस से निर्मित हैं।
इस पुराने गांव की ऊबड़-खाबड़ सड़क पर घूमते हुए मैंने सचमुच सांसारिक जीवन से कुछ अलग महसूस किया। लकड़ी या बास से बने छोटे-छोटे मकान धान के लहलहाते खेतों और मछली तालाबों के बीच झांक रहे थे और उनके सामने बच्चे बेचैनी से खेल रहे थे। यह गांव तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा है और इसके एक ओर झील है। सुनते हैं कि इस गांव के निवासियों के पूर्वज आज से दो हजार वर्ष पहले छिन राजवंश के समय युद्ध से बचने के लिए यहां आ बसे थे और धीरे-धीरे इनका बाहरी दुनिया से सम्पर्क पूरी तरह टूट गया।
हालांकि इधर कुछ सालों से पर्यटन के विकास के चलते कुछ लोग यहां आने लगे हैं, तो भी गांव का वातावरण शांत बना हुआ है और गांववासियों का स्वभाव वैसा ही सादा है। मैं ने एक मकान के द्वार के पास खड़ी एक महिला से बातचीत शुरू ही की थी कि वह तुरंत भीतर से मेरे लिए एक कटोरा खूशबूदार सूप सा कुछ ले आई। मेरे साथ चल रहे श्री थांग छी ची ने कटोरे की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह कोई सूप नही हैं, बल्कि छिन वासियों की प्रसिद्ध वह लेई चाय है जो वे अपने सब से आदरणीय मेहमान को पिलाते हैं।
इसमें आम तौर पर अदरक, कच्चे चावल, चाय की हरी पत्तियों, तिल और मूंगफली को एक साथ पीसने के बाद उबाला जाता है और चाय के रूप में मेहमानों को दिया जाता है। यह चाय सर्दी, बुखार और जुकाम का इलाज भी कर सकती है।
उन्हों ने आगे बताया कि यहां के गांववासी कृषि से अवकाश के समय लेई चाय और विभिन्न प्रकार के पकवान तैयार कर उनका रिश्तेदारों और मित्रों के साथ गपशप करते मजा उठाते हैं। कभी-कभार वे सुबह से शाम तक साथ बैठे गप मारते रह जाते हैं। यह सुनकर मुझे लगा कि उन का जीवन सच में बहुत आरामदेह है।
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