सम्राट खाङशी ने यह ऐलान भी किया कि "आबादी में चाहे जितनी वृद्धि हो, पहले से निर्धारित व्यक्ति कर कभी नहीं बढाया जाएगा।" साथ ही, व्यक्ति कर को भूमि कर में मिला देने की व्यवस्था लागू की गई, जिस के अन्तर्गत कर का निर्धारण भूमि के परिमाण के आधार पर होता था।
वास्तव में यह व्यवस्था मिङ राजवंश की एक कर वाली व्यवस्था का ही जारी रूप थी। इस व्यवस्था में नाना प्रकार के करों को मिलाकर, जिन में व्यक्ति कर का एक भाग और बेगार कर ( बेगार न करने की स्थिति में वसूल किया जाने वाला कर ) भी शामिल था, एक ही तरह की लेवी का रूप दे दिया गया था, जिस की बसूली चांदी में की जाती थी। लेकिन मिङ राजवंश के अन्तिम काल में अनेक और लेवियां भी लगा दी गई थीं, जिन के फलस्बरूप जनता का बोझ दिनोंदिन बढता गया था और तथाकथित " एक कर वाली व्यवस्था " की सारभूत बातों को ग्रहण कर उस में कुछ संशोधन व सुधार किया।
सम्राट युङचङ के शासनकाल में व्यक्ति कर को भूमि कर में मिलाने की नीति व उपरोक्त अन्य नीतियां सारे देश में लागू की गईं, जो सामाजिक अर्थव्यवस्था के विकास के लिए बहुत फायदेमन्द साबित हुई।
व्यापक किसान समुदाय के कठोर श्रम से परती जमीन को खेतीयोग्य बनाया गया, और कृषि उत्पादन धीरे धीरे बढने लगा।
आबादी में भी वृद्धि हुई। छिङ सरकार के आंकड़ों के अनुसार, 1651 में खेतीयोग्य जमीन केवल दो हजार नौ सै लाख मू और आबादी केवल एक सौ छै लाख थी, लेकिन 1761 में खेतीयोग्य जमीन बढकर सात हजार चार सौ लाख मू हो गई और आबादी 1764 में बीस करोड़ से अधिक तक पहुंच गई।
आबादी और कृपि उत्पादन बढने के साथ साथ पण्य अर्थव्यवस्था भी पनपने लगी। च्याङनिङ (नानचिङ), सूचओ, हाङचओ और अन्य शहरों में बड़े बड़े सूती कारखाने थे।
सम्राट छ्येनलूङ के शासन काल में च्याङनिङ शहर रेशमी कपड़ा बुनने का एक महत्वपूर्ण केन्द्र था, जहां करघों की संख्या तीस हजार से अधिक थी। ये करघे पहले से उन्नत किस्म के थे। 1730 में सूचओ शहर में कपड़ा रंगाई छपाई मजदूर 19 हजार से भी ज्यादा थे।
लोहा गलाने की तकनीक भी उन्नत हुई।
कुछ स्थानों में लोहा गलाने की भटठी में प्रति दिन एक हजार पांच सौ से दो हजार किलोग्राम तक लोहा तैयार किया जा सकता था, तथा दैनिक उच्चतम उत्पादन तीन हजार किलोग्राम तक पहुंच गया था। युननान प्रान्त में तांबे के खनन का बहुत तेजी से विकास हुआ। सम्राट छ्येनलुङ के शासनकाल में इस प्रान्त में तांबे की तीन सौ से भी ज्यादा खाने हो गई थीं।
चीनीमिट्टी के बरतन बनाने के उद्योग के प्रमुख केन्द्र चिङतेचन में पोर्सिलेन मजदूरों की संख्या एक लाख से अधिक थी। पोतनिर्माण ,शक्कर , कागज, तम्बाकू और रंग रोगन उद्योगों ने भी पर्याप्त प्रगति की।
सम्राट खाङशी , युङचङ और छ्येनलुङ के शासनकाल में बहुत से शहर पहले से और समृद्ध हो गए। उस समय तक पेइचिङ चीन का व्यापार केन्द्र बन चुका था। विभिन्न प्रान्तों में व्यापारियों द्वारा अपने अपने संघ कायम कर लिए गए थे और बड़े बडे शहरों में इन संघों के दफ्तर भी खोले जा चुके थे।
पण्य अर्थव्यवस्था के विकास के साथ साथ नवजात पूंजीवाद भी धीरे धीरे किन्तु अनवरत रूप से विकसित होने लगा था। दस्तकारी उद्योग में, पुनःविक्रय के उद्देश्य से माल खरीदने की गतिविधियां बहुत बढ गई थीं। फलस्वरूप, पूंजीवादी स्वरूप वाले दस्तकारी कारखानों की संख्या में भी वृद्धि हुई।
|