सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ऊरूमुची शहर के अधीन ऊरूमुची काऊंटी के पाईयांगको गांव के उज्जबेक जाति के श्री येरशती.मलिक के संदर्भ में कुछ बताए । पाईयांगको गांव इधर के सालों में बकरी की ऊन बिक्री से खासा धनी हो गया है , जिस से गांव दूर निकट बहुत मशहूर है । गांव में बसे येरशती .मलिक बकरी पालने तथा बकरी के ऊन उत्पादन व अनुसंधान में माहिर हैं , उन के द्वारा विकसित बकरी की ऊन उत्पादन मात्रा दूसरों से तीन गुनी ज्यादा है । इसलिए येरशती . मलिक स्थानीय लोगों की जबान पर बकरी विशेषज्ञ कहा जाता है ।
बढिया ऊन वाले बकरी के विकास के लिए येरशती .मलिक ने पहाड़ी चरगाहों में जा जा कर बकरी की गुणवत्ता उन्नत करने के लिए आंकड़े और सामग्री जुटाने की जीभर कोशिश की । बकरी की श्रेष्ठ नस्ल विकसित करने के लिए उन्हों ने उत्तर पूर्व चीन के बकरी और सिन्चांग के बकरी का संकर किया , जिस से जो नई नस्ल के बकरी पैदा हुए , उन की ऊन मात्रा पहले से दुगुनी अधिक हो गई । यह एक असाधारण कामयाबी है । ऊन की उत्पादन मात्रा की समस्या के हल के बाद फिर ऊन का रेश मोटा होने की समस्या भी उभरी , मोटा रेश वाले ऊन से बना ऊनी कपड़ा क्वालिटी में अच्छा नहीं है और दाम भी नीचा है ।
इस कठिनाई के सामने भी येलशती. मलिक का सिर नहीं झुका , उन्हों ने चरगाहों में मोटा रेश का कारण मालूम करने की अथक कोशिश की .एक रात उन्हों ने एक चरवाहे के घर में देखा कि इस घर के बकरी चमड़े बिस्तर के ऊन बहुत महीन थे , उस चरवाहे ने उसे जंगली बकरी का चमड़ा बताया । इस खबर से येरशती .मलिक को अपार खुशी हुई , उन्हों ने तुरंत जंगली बकरी व पालतु बकरी का संकर करने की योजना बनायी ।
पहाड़ पर जंगली बकरी पकड़ना काफी मुश्किल था , तो येरशती .मलिक ने चिड़िया घर का सहारा ले लिए । उन्हों ने चिड़िया घर में जंगली बकरी बाड़े के पास एक झोपड़ी बना कर पांच महीनों तक बेसारा लिया , समय पर जंगली व पालतु बकरियों के संकर बच्चे जन्मे , दुख की बात थी कि नन्हें बकरी बच्चे एक के बाद एक मर गए , अंत में जो एक बचा था , वह भी बीमार पड़ा । इसी नाजुक घड़ी पर येरशती की दो बेटियां भी बीमार पड़ी , इस दुविधा से बुरी तरह परेशान हुए येरशती . मलिक को अखिरकार संकर बकरी बचाने का विकल्प किया । आगे वह संकर बकरी तंदरूस्त पला बढ़ा , उस के ऊन बहुत महीन और बढ़िया निकले । उस का पीढ़ी दर पीढ़ी वंशवृद्धन होता गया , जो बोगता सफेद ऊन वाला बकरी के नाम से मशहूर हो गया ।
येरशती .मलिक ने अपनी पूरी शक्ति को बकरी पालन में अर्पित की है , नई नई नस्लों के बकरियों के विकास के लिए वे घर का कामकाज संभालने में भी असमर्थ हुए । वे अकसर महीनों तक पहाड़ों पर ठहरते थे । उन की तीसरी लड़की 27 वर्षीय गुलिफिरे ने अपने पिता की चर्चा में यों कहाः
मेरी तीन साल की उम्र में मेरा पापा पहाड़ में गया था , वे बकरी झुंडों के साथ रहते थे , अत्यन्त व्यस्त थे , उन की इस प्रकार की मेहनत और अध्ययनशील भावना से मैं हमेशा प्रेरित रही हूं । मुझे अपने महान पिता पर गर्व महसूस होता है ।
वर्षों के कड़े मेहनत व अथक परिश्रम का संतोषजनक परिणाम निकला । वर्ष 1996 में येरशती द्वारा विकसित सफेद ऊन बकरी अन्य सभी बकरियों को मात कर श्रेष्ठतम नस्ल चुना गया और बोगता सफेद ऊन बकरी के नाम से देश विदेश में मशहूर हो गया ।
बोगता सफेद ऊन बकरी विश्व में ऐसी प्रथम नस्ल का बकरी है , जिस के ऊन सब से लम्बे और महीन है और उस की ऊन मात्रा भी सब से ज्यादा है , विश्व में इस क्षेत्र में यह सर्वोच्च विज्ञान उपलब्धि मानी गई और इस वैज्ञानिक अनुसंधान मुद्दे को चीन में अनेक प्रमुख पुरस्कारों से सम्मानिक किए गए और खुद येरशती .मलिक को भी देश के असाधारण योगदान किए वैज्ञानिकों की नामसूची में स्थान मिला ।
अब बोगता सफेद ऊन बकरी सिन्चांग की तीस से ज्यादा काऊंटियों में व्यापक रूप से पाले जाते हैं । मात्र ऊरूमुची काऊंटी में एक लाख बीस हजार हैं । आरंभिक अनुमान के अनुसार बोगता सफेद ऊन बकरी ऊरूमुची काऊंटी के चरवाहों के लिए 12 करोड़ी आर्थिक लाभांश ला सकते हैं । बोगता बकरी के पालन से धनी हुए चरवाहे वेबुलेहास ने मुझे बतायाः
बकरी ऊन की बिक्री से हम चरवाहे धनी हो गए हैं , अब घर घर में बिजली की लाइट और टीवी की सुविधा उपलब्ध हुई , बच्चे ऊरूमुची शहर में पढ़ने भी गए । हम श्री येरशती .मलिक के बहुत आभारी हैं , उन का काम बहुत कष्ट दायी है , रोज दस बारह घंटे तक काम करते हैं ।एक बार भारी बर्फबारी पड़ी , तो वे खुद बर्फ झाड़ने चले गए , भारी बर्फबारी की हालत में भी वे पहाड़ों पर बकरी का हालचाल जानने जाते है । पहाड़ी चरगाहों में बसे कजाख जाति के सभी लोग उन की तारीफ का बांध बनाते हुए शाबास कहते हैं ।
उधर के वर्षों से अनेक विदेशी अनुसंधान प्रतिष्ठानों ने येरशती .मलिक को विदेश में काम करने और घर बसाने के लिए आमंत्रित किया और उन्हें आकर्षक सुविधा देने का वचन दिया । लेकिन उन्हों ने ऐसा निमंत्रण नहीं स्वीकारा । वे कहते हैं कि वे विदेश में काम करने जाना चाहते हैं , लेकिन यहां मेरा बोगता सफेद ऊन बकरी है , वे उस पर आगे गहन अनुसंधान नहीं छोड़ सकते । उन का कहना हैः
एक वैज्ञानिक होने के कारण मैं जानता हूं कि जो कामयाबी हासिल हुई है , वह तो गयी गुजरी है । गौरव भी कोई खास महत्व का नहीं है , अहम बात यह है कि वैज्ञानिक अनुसंधान काम आगे बढ़ाया जाए ,हर काम आज से ही शुरू किया जाए । मैं अपना अनुसंधान जारी रखूंगा तथा पशुपालन क्षेत्र में और बड़ा योगदान करूंगा ।
दोस्तो , इस आलेख के लिए हम ने जो प्रश्न रखा है , वह यह है कि स्थानीय चरवाहों की जबान में श्री येरशती . मलिक किस नाम से कहा जाता है । आशा है कि आप जल्दी ही अपना प्रश्नोत्तर हमें भेजेंगे।
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