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(GMT+08:00) 2005-02-08 11:19:18    
मार्कोपोलो पुल    लाओ त्से

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आज के इस कार्यक्रम में हम बालाघाट, मध्य प्रदेश के डा. प्रदीप मिश्रा, कोआथ, बिहार के विश्व रेडियो श्रोता संघ के अध्यक्ष सुनील केशरी, कोआथ के ही प्रमोद कुमार केशरी, सनोज कुमार केशरी और भगलपुर, बिहार की नाजनी हसन, तामन्ना हसन, हमीदा हसन, शबीना हसन, सुलताना खातून तथा नाजमा खानम के पत्र शामिल कर रहे हैं।

लीजिए, अब आप एशिया मंच पर जानकारी का दूसरा भाग लें।

मंच एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जो गैरसरकारी व अव्यापारिक है। इस का वार्षिक समारोह आयोजित होता है और मुख्यालय चीन के हैनान प्रांत के पोआउ में स्थित है। मंच की परिषद के सदस्य देशों ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव रखा है कि मंच का समारोह हर वर्ष अप्रैल के तीसरे सप्ताहांत में हो। मंच का उद्देश्य एशियाई देशों के बीच आर्थिक आदान-प्रदान, समन्वय व सहयोग को आगे बढ़ाने के साथ एशिया व विश्व के अन्य क्षेत्रों के साथ वार्तालाप व आर्थिक संपर्क को बढ़ावा देना है।

अब भगलपुर, बिहार की नाजनी हसन, तामन्ना हसन, हमीदा हसन, शबीना हसन, सुलताना खातून और नाजमा खानम का पत्र लें। उन्होंने मार्कोपोलो पुल के बारे में जानकारी मांगी है।

मार्कोपोलो पुल चीन की राजधानी पेइचिंग के दक्षिण-पश्चिम में 15 किलोमीटर दूर युंगतिंग नदी पर स्थित है। वर्ष 1189 में इस पुल का निर्माण शुरू हुआ और 1192 में पूरा हुआ। पहले पुल को क्वांगली नाम दिया गया और फिर यह लूकाउ में बदल गया। यह प्राचीन पेइचिंग का सब से बड़ा पुल था। 700 साल पहले इतालवी यात्री मार्कोपोलो ने पेइचिंग की यात्रा के दौरान इस पुल का भी दौरा किया और उन्होंने चीन का भ्रमण नामक पुस्तक में इस पुल का विवरण बी दिया, इसलिए पश्चिमी लोगों ने लूकाउ पुल को मार्कोपोलो पुल नाम दिया।

7 जुलाई, 1937 को, जापानी आक्रमणकारी सेना ने इस पुल के निकट स्थित वानफिंग नगर से चीन के खिलाफ आक्रमणकारी युद्ध छेड़ा। चीनी लोगों को जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध की याद दिलाने के लिए आज पुल के निकट एक स्मारक भवन भी खड़ा है।

मार्कोपोलो पुल की लम्बाई 266.5 मीटर है। पुल के दोनों किनारों पर पत्थर से बनी शेरों की 498 मूर्तियां हैं। इन सभी मूर्तियों की आकृति भिन्न है। पर्यटन के लिए यह एक रमणीक स्थल है।

अंत में कोआथ बिहार के प्रमोद कुमार केशरी और सनोज कुमार केशरी का पत्र देखें। उन्होंने अपने पत्र में चीन के मशहूर दार्शनिक लाओ त्से के बारे में जानकारी चाही है।

लीजिए, आइए लें इसकी विस्तार से जानकारी। लाओत्से 2500 साल पूर्व चीन के वसंत व शरत काल के विचारक और ताउपंथ के संस्थापक थे। उन्होंने लाउत्से नामक पुस्तक या ताउतह सूत्र लिखा। उन के ताउतह सूत्र में संसार के परिवर्तन पर प्रकाश डाला गया। चीन की दर्शनप्रणाली पर इस सूत्र का भारी प्रभाव है।

लाओत्से का जन्म उस वक्त के छू राज्य की खू कांउटी या आज के हनान प्रांत के लूई जिले में हुआ था।

प्राचीन चीन के महान शिक्षक और विचारक कंफ्यूशियस ने लाओत्से के पास रहकर उनसे मर्यादा सीखी।

ताउ पंथ के संस्थापक लाउत्से चीन के दर्शन व विचार के महान शास्त्री भी थे।

प्राचीन चीन में मुख्यतः कंफ्यूशियस मत, बौद्धमत और ताउमत प्रचलित थे। इन तीन मतों की विचारधारा ने चीन के सामंती समाज की राजनीति, अर्थतंत्र, धार्मिक विश्वास, साहित्य व कला, विज्ञान व तकनीक यहां तक रीति-रिवाज पर भारी प्रभाव डाला। लाउत्से को ताउमत का संस्थापक भी माना जाता है, क्योंकि ताउ शास्त्र की विचारधारा ही ताउमत का सहारा है।

ताउमत में प्राणायाम का अभ्यास भी प्रचलित है। यह पद्धति भी ताउशास्त्र का सहारा है।

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