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(GMT+08:00) 2005-02-08 17:06:12    
पांचवें ग दा जीवित बुद्ध और चीनी लाल सेना की मैत्री की कहानी

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वर्ष 1936 के मई माह में, प्रथम तिब्बती क्रांतिकारी सत्ता चीन लोक सोवियत बोपा स्वशासी सरकार की सी छ्वेन के गेन जी प्रिफेक्चर की गेन जी कांउंटी में स्थापना हुई। 33 वर्षीय पांचवें ग दा जीवित बुद्ध स्वशासी सरकार के उपाध्यक्ष चुने गये। लाल सेना के गेन जी प्रिफेक्चर से जाने के बाद पो बा सरकार ने भी अनेक काम किये और लाल सेना द्वारा पीछे छोड़े गये हताहतों की देखभाल की । लाल सेना के जाने के वक्त अनेक तिब्बती युवक भी लाल सेना में दाखिल हुए।

वर्ष 1936 के जुलाई माह में चीनी लाल सेना उत्तर की ओर चली गयी। क्वो मींग दांग पार्टी और गुलामों के मालिक फिर एक बार गेन जी लौट आये। गेन जी के आकाश पर मानो फिर काले बादल छा गये। लाल सेना के जाने के दूसरे दिन 40 से ज्यादा लाल सैनिक हताहत हुए। इस पर पांचवें ग दा जीवित बुद्ध को बहुत आश्चर्य हुआ। उन्होंने क्वो मींग दांग के सरगनाओं के साथ वार्ता की और उन्हें समझाने की कोशिश की। उनके और स्थानीय जनता की देखभाल में पठार में रह रहे 3000 से ज्यादा लाल सेना के आहतों में से अधिकांश दूसरी जगह स्थानांतरित किये गये।

इन कठिन दिनों में पांचवें ग दा जीवित बुद्ध को तिब्बत के ल्हासा में शरण लेनी पड़ी। रास्ते में उन्होंने छिंगहाई प्रांत में लाल सेना के कारनामे की तारीफ में कविताएं लिखीं। अपनी कविताओं में उन्होंने लिखा, लाल सेना ने मुझे एक उज्ज्वल रास्ता दिखाया है और पठार के सियारों को भगा दिया है। गेन जी प्रिफेक्चर के एक युवक यांग जन ने कहा वर्ष 1950 के जुलाई माह में, चीनी लाल सेना जापानी आक्रमण के विरोध में युद्ध के लिए चीन के उत्तरी भाग की ओर चली गयी। पांचवें ग दा जीवित बुद्ध को लाल सेना की बड़ी याद आई और उन्होंने एक तिब्बती गीत की रचना की जिस में मुख्य रूप से लाल सेना की भावना प्रतिबिंबित थी और लाल सेना व तिब्बती जाति की मैत्री का गुणगान था।

वर्ष 1949 में जब नये चीन की स्थापना की खबर चीन के तिब्बती बहुल क्षेत्र में आयी, तो पांचवें ग दा जीवित बुद्ध और वहां की जनता बड़ी खुश थी। उन्होंने कुछ तिब्बती देशभक्त लोगों के साथ छिंगहाई से पेइचिंग जाकर माओ ज तुंग, जू देई और च्यो अन लेई से मुलाकात की और लाल सेना को अपने जन्मस्थान की जनता की मुक्ति कराने का निवेदन किया । वर्ष 1950 में चीन के सी छ्वान तिब्बती क्षेत्र की मुक्ति हुई। पांचवें ग दा जीवित बुद्ध को दक्षिण- पश्चिमी सैनिक व राजनीतिक कमेटी का सदस्य और दक्षिण-पश्चिमी जातीय मामलों की कमेटी का सदस्य नियुक्त किया गया। वर्ष 1950 में चीनी जन मुक्ति सेना ने खांग दींग में प्रवेश किया और पांचवें ग दा जीवित बुद्ध पश्चिमी खांग प्रांत की जन सरकार के उपाध्यक्ष चुने गये। उस वक्त देश-विदेश की शत्रु शक्तियों ने तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति में बाधा डालने और तिब्बत का विभाजन करने की कुचेष्टा की। इस परिस्थिति में पांचवें ग दा जीवित बुद्ध ने पेइचिंग में चीनी जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन में भाग लेने का अवसर त्याग दिया और चीनी केंद्रीय सरकार की ओर से तिब्बतियों को समझाने के लिए वहां भेजे जाने का निवेदन किया। तिब्बत जाने से पहले उन्होंने कहा था, मैं तिब्बती जनता के कल्याण के लिए और तिब्बत की यथाशीघ्र मुक्ति के लिए तिब्बत जा रहा हूं। मैं खुद तिब्बत की जनता व लामाओं से कहूंगा कि नये चीन की सरकार व मुक्ति सेना तिब्बती जनता की राहत है। तिब्बती जनता मुझे अच्छी तरह जानती है, इसलिए, यदि मैं मर भी गया, तो मुझे इस पर गर्व होगा। गेन जी प्रिफेक्चर के पर्यटन व संस्कृति ब्यूरो के प्रधान श्री चांग थाओ ने कहा,वर्ष 1952 में पांचवें ग दा जीवित बुद्ध ने तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति की खातिर पेइचिंग में चीनी जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन में भागीदारी का अवसर त्यागा पर दुर्भाग्य कि वे रास्ते में विदेशी शत्रु द्वारा मार डाले गये। उस वक्त वे केवल 47 वर्ष के थे।

पांचवें ग दा जीवित बुद्ध की मृत्यु की खबर सुनकर उन की जन्मभूमि की जनता ने विभिन्न तरीकों से इस जीवित बुद्ध को याद किया। उन की जन्मभूमि के आसपास के लोगों ने उन के लिए एक स्मृति भवन का निर्माण कराया।

गेन जी प्रिफेक्चर के पर्यटन व संस्कृति ब्यूरो के प्रधान श्री चांग थाओ ने कहा,चीनी कम्युनिस्ट पार्टी व चीन की केंद्रीय सरकार की अनुमति पर, वर्ष 1992 में चीनी प्रचार-प्रसार मंत्रालय के समर्थन से गेन जी काउंटी में कमांडर जू दे और पांचवें जीवित बुद्ध ग दा के लिए एक स्मृति भवन का निर्माण किया गया। इस भवन में जू दे द्वारा जीवित बुद्ध को दिया गया छाता और अन्य सामग्री रखी है। इस भवन के निर्माण का मुख्य लक्ष्य युवकों को इतिहास की जानकारी दे कर शिक्षित करना है।

अब यह भवन गेन जी काउंटी में देशभक्ति की शिक्षा का केंद्र बन गया है। इसके साथ ही वह गेन जी प्रिफेक्चर व सी छ्वेन प्रांत की देशभक्ति की शिक्षा का भी आधार है।