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(GMT+08:00) 2005-01-28 14:37:40    
मिङ राजवंश के अन्त में किसान विद्रोह

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मिङ राजवंश के अन्तिम काल में , खोजाओं और राजदरबार के अफसरों के बीच अधिकाधिक सत्ता व विशेषाधिकार प्राप्त करने की होङ तेज होने के साथ साथ शासकीय भ्रष्टाचार भी उत्तरोत्तर बढता गया। प्रशासनिक व्यवस्था के बिगड़ने के साथ ही किसानों की जमीन हथियाने का सिलसिला भी जोर पकड़ता गया।

मिङ सरकार ने यह बहाना बनाकर कि उत्तर पूर्व में युद्ध चल रहा है और विद्रोही किसानों को दबाने के लिए सैनिकों की भरती व द्रेनिंग करना जरूरी है, तरह तरह के टेक्स लगाकर जनता को और ज्यादा चूसना शुरू कर दिया। देश के किसान इस क्रूर शोषण व दमन के शिकार तो थे ही, और जब उन पर प्राकृतिक विपत्तियों की मार पड़ी तो वे बिलकुल असहाय हो गए।

 मिङ राजवंश के अन्तिम 70 सालों में बाढ , सूखा , भुखमरी और महामारी जैसी विपत्तियां एक के बाद एक मुसीबत बरपा करती रहीं, खेतीयोग्य भूमि सूखकर बंजर बन गई और किसान जगह जगह भूख से तडपकर मरने लगे। उन के सामने दो ही विकल्प रह गए, मौत या विद्रोह, और किसान समुदाय को अपना निर्णय लेने में कोई हिचक नहीं हुई।

1627 में उत्तरी शेनशी प्रान्त में भीषण सूखा पड़ा और लोगों को खेतों से अनाज का एक दाना तक नसीब नहीं हुआ, फिर भी सरकार ने जनता से जबरन टैक्स वसूल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । हजारों किसान भुखमरी के शिकार हो गए, और जो बचे उन्होंने विद्रोह का झण्डा उठाया।

दूसरे इलाकों के किसानों भी उनके समर्थन में विद्रोह किया। कुछ ही सालों के अन्दर पूरे शेनशी प्रान्त और पूर्वी कानसू प्रान्त में काओ इङश्याङ, ली चिछङ , चाङ श्येनचुङ और अन्य किसान नेताओं के नेतृत्व में दर्जनों विद्रोही किसान संगठन कायम हो गए। इस संघर्ष में न केवल हान जाति के लोग बल्कि मंगोल और ह्वेइ जातियों के लोग भी शामिल हुए।

1635 में 13 विद्रोही किसान नेताओं ने , जिन के अधीन किसान सेना की 72 टुकड़ियां थीं, हनान प्रान्त के शिङयाङ नामक स्थान पर एक सम्मेलन आयोजित किया। इन नेताओं में ली चिछङ और चाङ श्येनचुङ सर्वप्रमुख थे। ली चिछङ के नेतृत्व वाली टुकड़ी ने शेनशी, कानसू, सछ्वान, हूपेइ और हनान में लड़ाई लड़ी थी, जब कि चाङ श्येनचुङ की सेना हूपेइ और सछ्वान प्रान्तों में सक्रिय थी।

ली चिछङ ने भूमि के समान वितरण और लगान की अदायगी में पूरी छूट का नारा लगाया, जो गरीब किसानों की फौरी मांग को प्रतिबिम्बित करता था। इससे यह भी जाहिर होता था कि किसान युद्ध विकसित होकर एक नई मंजिल पर पहुंच गया था जबकि किसानों द्वारा भूस्वामित्व की सामन्ती व्यवस्था को बदलने की मांग की जाने लगी थी। ली चिछङ और उस के सैनिक जहां जहां गए, वहां वहां व्यापक किसान समुदाय ने उन का स्वागत किया, और विद्रोहियों की संख्या जल्दी ही बढकर लाखों तक पहुंच गई।  

1644 में ली चिछङ ने अपनी सेना के साथ पेइचिङ की ओर कूच कर दिया। रास्ते में उन का बहुत कम प्रतिरोध हुआ और वे एक महीने से कुछ ज्यादा समय में ही राजधानी पेइचिङ पहुंच गए। नगर की रक्षा के लिए तैनात मिङ सेना की टुकड़ियों ने लड़ने से इनकार करते हुए एक के बाद एक आत्मसमर्पण कर दिया। मिङ राजवंश के अन्तिम सम्राट छुङचन के लिए भागने या छिपने की कोई जगह नहीं बची और उसने राजमहल के पीछे कोयला पहाड़ी पर जाकर पेड से लटककर आत्महत्या कर ली। ली चिछङ के नेतृत्व में किसान सेना ने शहर में प्रवेश किया। इस प्रकार मिङ राजवंश का अन्तहो गया।