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(GMT+08:00) 2005-01-25 19:11:06    
सुंग ज्येई लीन मंदिर का दूसरा भाग

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दक्षिणी चीन के व्यन नान प्रांत की शांकलीला काउंटी से उत्तर की ओर देखने पर आप घास मैदानों के परे पहाड़ों के बीच कुछ इमारतों का एक समूह खड़ा पायेंगे। सफेद और लाल रंग वाली ये इमारतें एक मंदिर की हैं, जो एक पुराने पगोडे जैसा है। यह है सुंग ज्येई लीन मंदिर। सुंग ज्येई लीन मंदिर का दूसरा नाम क्वेई ह्वा मंदिर है।यह चीन के व्यन नान प्रांत का सब से बड़ा तिब्बती बौद्ध मंदिर है और खांग बा क्षेत्र के प्रसिद्ध मंदिरों में भी शामिल है। सुंग ज्येई लीन मंदिर का निर्माण वर्ष सोलह हजार उन्नासी  में शुरू हुआ। इस का निर्माण पांचवे दलाई लामा ने कराया जो वर्ष सोलह हजार इक्यासी में पूरा हुआ। यह खांग बा क्षेत्र के तेरह प्रसिद्ध मंदिरों में से एक माना जाता है और चीन के सी छ्वेन व व्यन नान प्रांतों का तिब्बती बौद्ध धर्म की पीत शाखा का केंद्र भी है।

सुंग ज्येई लीन मंदिर एक पांच मंजिला इमारत है। इसका मुख्य भवन पहाड़ की चोटी पर स्थित है। इसमें लाल, काले व सफेद तीन रंगों की इमारतें हैं,जहां गगनचुंबी चीड़ खड़े हैं।गहरी तिब्बती विशेषता वाली इन इमारतों में धार्मिक रंग जाहिर होता ही है। प्रमुख भवन के ऊपरी स्वर्णिम सिरे में हान जाति की इमारत की विशेषता दिखती है।

सुंग ज्येई लीन मंदिर में हम ने चारों ओर से आये भिक्षुओं को पूजा करते देखा। इनमें कुछ लामा थे, कुछ पर्यटक और कुछ स्थानीय अनुयायी। वे हाथों में चक्र लेकर भूमि पर दंडवत पूजा कर रहे थे। कुछ वैसे ही मंत्र जप रहे थे। दिलचस्प बात यह है कि उन में तिब्बती लोगों के अलावा, बेई , नाशी और हान व लीसु जाति के लोग भी थे। स्थानीय लोगों ने हमें बताया कि शांगरिला में अनेक जातियों वाले कई परिवार हैं। यहां तक कि एक ही परिवार के लोगों के विभिन्न धार्मिक विश्वास होते हैं।

अमरीकी लेखक श्री जैम्स शिर्टन ने अपनी पुस्तक मिटायी गयी भूमि में लिखा है. रत्नों की अनेक कोरें होती हैं। सभी धर्मों में सच्चाई होती है। इसलिए, वे सब शांतिपूर्वक शांगरिला में रहते हैं।

सुंग ज्येई लीन मंदिर से बाहर आकर हम ने देखा कि उसके आसपास अनेक परिवार हैं। ये सब मकान तिब्बती शैली के थो।

दूर से देखने पर बताना मुश्किल था कि नागरिकों के मकान कहां और मंदिर कहां। स्थानीय लोगों ने बताया कि तिब्बती जाति के लोग अपने परिवार के कम से कम एक सदस्य के लामा होने पर बहुत गर्व करते हैं क्योंकि उन का जीवन धर्म से अलग नहीं है। उन की नजर में मकान को मंदिर के पास स्थानांतरित करना चाहिए या लामाओं के लिए स्वतंत्र रूप से एक मकान की तैयारी करनी चाहिए। इसलिए, अनेक लामाओं के मकान मंदिर के पास ही होते हैं।

मंदिर से बाहर आकर हम ने देखा पास में मणिपत्थर है, जिस पर रंगीन धार्मिक पताकाएं फहर रही हैं। पास के एक सफेद पगोडे के नीचे अनेक सूत्र चक्र थे। तिब्बती जनता के लिए बुद्ध की पूजा प्रति दिन का व्यायाम है।

यदि रास्ते में मंदिर न हो, तो वे वहां बुद्ध की पूजा करने के लिए पत्थरों का ढेर लगाते हैं। हर जगह उड़ती धार्मिक पताकाओं से तिब्बती जनता को पूजा की प्रेरणा मिलती है। उस की नजर में हवा में पताका एक बार उड़ती है, तो उस पर लिखा बौद्ध सूत्र भी एक बार पढ़ा जाता है।