दक्षिणी चीन के व्यन नान प्रांत की शांकलीला काउंटी से उत्तर की ओर देखने पर आप घास मैदानों के परे पहाड़ों के बीच कुछ इमारतों का एक समूह खड़ा पायेंगे। सफेद और लाल रंग वाली ये इमारतें एक मंदिर की हैं, जो एक पुराने पगोडे जैसा है। यह है सुंग ज्येई लीन मंदिर। सुंग ज्येई लीन मंदिर का दूसरा नाम क्वेई ह्वा मंदिर है।यह चीन के व्यन नान प्रांत का सब से बड़ा तिब्बती बौद्ध मंदिर है और खांग बा क्षेत्र के प्रसिद्ध मंदिरों में भी शामिल है।
सुंग ज्येई लीन मंदिर का निर्माण वर्ष 1679 में शुरू हुआ। इस का निर्माण पांचवे दलाई लामा ने कराया जो वर्ष 1681 में पूरा हुआ। यह खांग बा क्षेत्र के तेरह प्रसिद्ध मंदिरों में से एक माना जाता है और चीन के सी छ्वेन व व्यन नान प्रांतों का तिब्बती बौद्ध धर्म की पीत शाखा का केंद्र भी है।
सुंग ज्येई लीन मंदिर एक पांच मंजिला इमारत है। इसका मुख्य भवन पहाड़ की चोटी पर स्थित है। इसमें लाल, काले व सफेद तीन रंगों की इमारतें हैं,जहां गगनचुंबी चीड़ खड़े हैं।गहरी तिब्बती विशेषता वाली इन इमारतों में धार्मिक रंग जाहिर होता ही है। प्रमुख भवन के ऊपरी स्वर्णिम सिरे में हान जाति की इमारत की विशेषता दिखती है।
जब हम ने इस मंदिर में प्रवेश किया, तो वहां लामा पूजा कर रहे थे। इस मंदिर में आठ भवन हैं जो कमल के एक बड़े फूल की तरह लगते हैं।
हजारों लोगों के बैठने के इंतजाम वाले जा छांग भवन में प्रवेश किया तो पाया उसके अंदर बिजली के बल्ब नहीं हैं, केवल घी के दिये जल रहे हैं। यह बहुत रहस्यमय़ लगा। धीमी रोशनी में भवन के 108 लाल स्तंभ भी नजर आये जो उसका आधार हैं। इस भवन के चारों ओर बुद्ध की कहानी कहने वाले चित्र अंकित हैं। भवन के वायीं ओर के एक ऊंचे स्थान पर तिब्बती सूत्र रखे हैं। कहा जाता है कि वहां दस हजार सूत्र रखे हैं।
सुंग ज्येई लीन मंदिर की गाइड ने बताया, इस छोटे बक्से में कई मूल्यवान पुस्तकें रखी है। जब भी हम किसी तिब्बती बौद्ध मंदिर की यात्रा करते हैं तो वहां रखी पुस्तकों की संख्या से पता लगा सकते हैं कि यह मंदिर कितना महत्वपूर्ण होगा।
सुंग ज्येई लीन मंदिर के प्रमुख भवन में पांचवें दलाई लामा की मूर्ति रखी है। इस के पीछे प्रसिद्ध भिक्षुओं के पगोडे और सातवें दलाई लामा की मूर्ति भी है। इस के अलावा यहां आठ स्वर्ण बौद्ध भिक्षु, दो देंजुर शास्त्री और रंगीन स्वर्ण थांगखा चित्र भी हैं। इनका बौद्ध अनुयाइयों में बहुत ऊंचा स्थान है।
सुंग ज्येई लीन मंदिर के मध्य में लाखांग के आठ मकान हैं जो अलग- अलग तौर पर विभिन्न देवताओं के भवन, खाने के भवन आदि नामों से जाने जाते हैं।
भवन में कई भिक्षु एक दल में बैठ कर पूजा करते हैं। पर्यटकों को देखकर वे मैत्री से मुस्कराते हैं। उन के मुख पर गहरी धार्मिक शक्ति दिखती है।
आज सुंग ज्येई लीन मंदिर में कुल 700 भिक्षु हैं। ये भिक्षु जीवित बुद्ध और जाबा दो किस्मों में विभाजित हैं। जीवित बुद्ध को छोड़कर यहां ग शी, ग नोंग, बेन ज्वे आदि भी हैं। लामाओं को उनके ज्ञान की तुलना के आधार पर दस श्रेणियों में विभाजित किया गया है। व्यन नान प्रांत के सब से बड़े तिब्बती बौद्ध मंदिर सुंग ज्येई लीन मंदिर की सातवें दलाई लामा के साथ मैत्री है। सुंग ज्येई लीन मंदिर की गाइड ने बताया, छठे दलाई लामा के देहांत के बाद, सातवें दलाई लामा की खोज हुई। उस वक्त राजनीतिक स्थिति बहुत गड़बड़ थी। मंगोलिया के राजा ने छठे दलाई लामा की इच्छा के अनुरूप चलने के बहाने मनमानी से एक बच्चे को सातवां दलाई लामा नियुक्त कर दिया लेकिन, ल्हासा के लामाओं ने उसे मान्यता नहीं दी। उन्होंने छठे दलाई लामा की इच्छानुसार सच्चे अवतार की खोज की।
मंगोलिया के राजा यह जानकर बहुत क्रुद्ध हुए। उन्होंने इस बच्चे को मारने की केशिश की। लामाओं ने इस बच्चे को गुप्त रुप से चुंग द्येई यानी आज के शांगरिला पहुंचा दिया। यहां आने पर इस बच्चे ने देखा कि यहां पठार पर तालाब है, तो उसे बहुत खुशी हुई। उसने कहा कि मुझे यही जगह पसंद है। वह हर बार दूध पीते समय इस तालाब में भी डालता और प्रार्थना करता कि इसका पानी सभी बच्चों का पालन करे। इस के बाद बच्चे ने छिंग राजवंश के राजा खांग शी का विश्वास व समर्थन जीता और छइंगहाई के दाल्स मंदिर में पोषण के बाद वह सच्चे रूप से सातवां दलाई लामा बना।
सातवें दलाई लामा ने सुंग ज्येई लीन मंदिर के विस्तार व पुनर्निर्माण के लिए भारी समर्थन दिया और उसे एक छोटे पोताला महल जैसा बनाया। जो तिब्बती ल्हासा नहीं जा सकते, वे यहां पूजा कर मन की शांति पाते हैं।
सुंग ज्येई लीन मंदिर के पास बौद्ध सूत्र अंकित अनेक प्रार्थना चक्र टंगे हैं। मंदिर की गाइड ने बताया, इन पर छैः शब्दों वाले सूत्र लिखे हैं। यहां की जनता सूत्र ग्रंथ नहीं पढ़ सकती, पर इन सूत्रों को चक्रों में डाल कर उन्हें घुमा कर पूजा का लक्ष्य प्राप्त कर सकती है। कहा जाता है कि एक चक्र घुमाना एक वर्ष पूजा करने के बराबर होता है। तिब्बती जनता मानती है कि 30 हजार बार पूजा करने के बाद मनुष्य फिर से मनुष्य बन जाता है।
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