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(GMT+08:00) 2005-01-13 14:39:10    
जीव विज्ञान के विकास से लोगों के जीवन का सुधार

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जैव तकनालाजी के विकास पर आज विश्व भर का ध्यान आकर्षित है। जैव तकनालाजी में मुख्यतः जीवों की गुणवत्ता तथा जैव गतिविधियों के नियमों का अनुसंधान किया जाता है, ताकि जैव गतिविधियों का नियंत्रण कर मानव कल्याण किया जा सके। चीन भी जैव तकनालाजी के विकास पर इधर विशेष ध्यान दे रहा है और इस संदर्भ में उसने काफी उपलब्धियां भी प्राप्त की हैं। ध्यान रहे , वर्ष 1950 में चीनी नागरिकों की औसत आयु सिर्फ 35 साल थी , जबकि आज यह 73 के अंक को छू रही है। पेइचिंग विश्वविद्यालय की प्रोफेसर सुश्री वांग वेनली के अनुसार चीनियों की औसत आयु बढ़ने का मुख्य कारण उनके जीवन स्तर में आया सुधार ही है, पर इसके लिए टीकों तथा जीवाणुरोधी दवाओं के प्रयोग को भी श्रेय दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि चीनियों का बेहतर स्वास्थ्य व ऊंची औसत आयु सब का संबंध जैव तकनालाजी के विकास से है।
 प्रोफेसर वांग ने कहा कि जैव तकनालाजी के तेज़ विकास ने लोगों को प्रेरित किया है। हमें आशा है कि मानव को जैव तकनालाजी का विकास बेहतरीन जीवन और स्वास्थ्य दे सकेगा। प्रोफेसर वांग ने इसका उदाहरण देते हुए कहा कि टीकों के अनुसंधान और उत्पादन ने चीनियों के स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण योगदान किया। वर्ष 1949 में नये चीन की स्थापना होने से पहले चीनी चेचक, हैजा और तपेदिक आदि संक्रामक रोगों से ग्रस्त रहे। इस स्थिति को बदलने के लिए चीन सरकार ने टीकों के अनुसंधान व उत्पादन पर जोर दिया और इसके जरिये नागरिकों के स्वास्थ्य में बड़ा सुधार किया। टीके के प्रयोग से चीन ने वर्ष 1960 में वैरियोला जैसे भयानक संक्रामक रोग का समूल विनाश कर दिया ,जब कि दुनिया के दूसरे देश दस साल बाद ही चेचक का अंतिम रूप से पता लगा पाये। आज चीन सरकार हर बच्चे को मुफत में तपेदिक, पीलिया और खसरे आदि संक्रामक रोगों के टीके लगाने की सेवा प्रदान करती है। चीनी नागरिक अपने खर्च पर फ्लू और दिमागी सूजन की रोकथाम के टीके लगवा सकते हैं। तथ्यों से सिद्ध हो चुका है कि टीके लगवाना रोगों के मुकाबले में बहुत कारगर है। परंपरागत रोगों के अलावा चीन सरकार ने हाल में प्रकाश में आये रोगों की रोकथाम के लिए भी टीकों के अनुसंधान को बड़ा महत्व दिया। वर्ष 2003 में चीन में सार्स का गंभीर फैलाव हुआ। चीनी अनुसंधानक्रताओं ने जैव तकनीक के जरिये सार्स के टीके पर अनुसंधान शुरू किया और जल्द ही इसमें प्रगति भी प्राप्त की। चीनी सार्स अनुसंधानशाला के प्रधान श्री वांग श्याओफांग का कहना है कि सार्स के टीके के अनुसंधान की प्रगति से जाहिर है कि चीन ने सार्स के मुकाबले में भारी सफलता प्राप्त की है। तथ्यों से स्पष्ट है कि सार्स कोई अजेय रोग नहीं है। जैव तकनालाजी के जरिये सार्स का भी मुकाबला किया जा सकता है। चीन सार्स के टीके के उत्पादन में विश्व के सर्वोन्नत स्तर पर है। अभी सार्स के टीके के सिलसिलेवार परीक्षण होने हैं। इनमें सफलता मिलने के बाद चीनी लोग बाजार से ही यह टीका खरीद सकेंगे। संक्रामक रोगों के अतिरिक्त जैव तकनालाजी की ल्यूकेमिया यानी रक्त के कैंसर तथा एनीमिया या खून की कमी जैसी बीमारियों के इलाज में भी भारी भूमिका सिद्ध हो चुकी है। 23 वर्षीय च्यांग जूह्वे को कालेज से स्नातक होने के बाद खुद के रक्त के कैंसर से पीड़ित होने की बात पता चली। पर जब उन्होंने सुना कि हेमोपोइटिक स्टेम सेल के जरिये इस रोग का उपचार हो सकता है, तो उन्होंने तुरंत अपना नाम चीनी हेमोपोइटिक स्टेम सेल बैंक में दर्ज़ कराया। कुछ माह बाद चीनी हेमोपोइटिक स्टेम सेल बैंक ने च्यांग जूह्वे की हेमोपोइटिक स्टेम सेल का प्रत्यारोपण किया। और आज च्यांग जूह्वे फिर से सामान्य काम करने में समर्थ हो गये हैं। उनके अनुसार उन्हें नयी ज़िन्दगी जैव तकनालाजी के विकास से मिली। अब तक सौ से अधिक रोगी जैव तकनालाजी के जरिये बड़ी जटिल बीमारियों के पंजे से मुक्त हो कर सुखमय जीवन का सौभाग्य पा चुके हैं। चिकित्सा के अतिरिक्त कृषि तथा नये किस्म के बीजों के विकास में भी जैव तकनालाजी की विशेष महत्वपूर्ण भूमिका है। चीन की जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का एक पांचवां भाग है, लेकिन चीन की खेतीयोग्य भूमि विश्व की कुल कृषियोग्य भूमि का सात प्रतिशत मात्र है। अपनी विशाल जनसंख्या की अनाज की भरपूर आपूर्ति के लिए चीन सरकार ने बीस साल पहले ही जैव तकनालाजी के जरिये उच्च उत्पादकता वाले बीजों का विकास करना शुरू कर दिया था। यहां चर्चा करें कि सुपर धान के विकास के क्षेत्र में चीन विश्व की अग्रिम पंक्ति में है। चीनी अनुसंधानकर्ताओं ने जंगली धान के जीन को आम धान के जीन के साथ जोड़ कर बिल्कुल नये किस्म का धान पैदा किया। ऐसे सुपर धान का प्रति हेक्टर उत्पादन एक या डेढ़ टन अधिक होता है। इस सफलता के आधार पर अब चीनी विशेषज्ञों ने नये किस्म के अर्धनिषेचित धान का प्रसार करना शुरू किया है। चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी के डाक्टर चेन हाऊ के अनुसार इस परीक्षण के सफल रहने पर हर साल उत्पादित अतिरिक्त अनाज तीन करोड़ लोगों की मांग की आपूर्ति पूर कर सकेगा। जैव तकनालाजी के विकास से इस तरह लोगों का जीवन और सुन्दर बनेगा। चीनी कृषि वैज्ञानिक इधर अधिक उत्पादकता वाले संकर धान के बीजों के संवर्द्धन में जुटे रहे हैं । इस कार्य में उन्हे उल्लेखनीय कामयाबी भी हासिल हुई है। अधिक उत्पादकता वाले धान के बीजों का बड़े रकबे में उगाए जाने पर प्रति हेक्टर उत्पादन बारह टन रहा। चीन भविष्य में अनाज के मुख्य उत्पादन क्षेत्रों में धान के नये बीजों को लोकप्रिय बना कर धान की फ़ी इकाई पैदावार में वृद्धि करेगा। अधिक उत्पादकता वाला धान उगाने की योजना फिलीपींस स्थित अंतरराष्ट्रीय धान अनुसंधान प्रतिष्ठान ने 1990 के दशक में पेश की थी। इस के बाद चीन समेत विश्व के विभिन्न प्रमुख धान उत्पादक देशों ने ऐसे धान के विकास की योजना पर अनुसंधान करना शुरू किया। धान कोई साठ प्रतिशत चीनियों का मुख्य खाद्य है और चीन में इस अनाज के उपभोग की मात्रा चालीस प्रतिशत है। जनसंख्या में दिन प्रति दिन वृद्धि होने और खेतों के रकबे के मुश्किल से बढ़ पाने की ताजा हालत में अधिक उत्पादकता वाले संकर धान का विकास तथा धान की फ़ी इकाई पैदावार में तेज़ वृद्धि का लक्ष्य पाना, विश्व की अनाज की सप्लाई की स्थिति सुधारने, पर्यावरण व प्राकृतिक संसाधनों पर जनसंख्या वृद्धि के दबाव को कम करने तथा चीन में अनाज की सुरक्षा की गारंटी का एक महत्वपूर्ण उपाय है। खबर है कि चीन का लक्ष्य आगामी वर्ष दो हजार पंद्रह तक प्रति हेक्टर तेरह से चौदह टन पैदावार देने वाले धान के बीजों का विकास करना है। इससे चीनी किसानों को अनाज से होने वाली वार्षिक आय में एक अरब पचास करोड़ य्वान की वृद्धि होगी। ऐसे में चीन का अनाज उत्पादन उसकी अनाज की मांग को भी पूरा कर सकेगा।