चीन के तिब्बती क्षेत्र में प्रचलित धर्म तिब्बती बौद्ध धर्म है। यह मुख्य तौर पर नींग मा, ग दांग, सागा, ग च्वु और ग लु पांच शाखाओं में विभाजित है। दक्षिण-पश्चिमी चीन के सी छ्वान प्रांत के था गुंग घास मैदान पर स्थित था गुंग मंदिर तिब्बती बौद्ध धर्म की सागा शाखा का एक प्राचीन मंदिर और तिब्बत के खांग बा क्षेत्र का तिब्बती नागरिकों का एक प्रमुख पवित्र स्थल भी है।
दक्षिण-पश्चिमी चीन के सी छ्वान प्रांत के गेनजी तिब्बती प्रिफेक्चर की राजधानी खांग दींग से प्रस्थान कर ज द्वो पहाड़ की चढाई करने के बाद, हम आखिरकार था गुंग मंदिर पहुंचे। था गुंग मंदिर बहुत बड़ा नहीं है, पर बहुत शानदार दिखता है। इस के प्रमुख प्रबंधक आबू के अनुसार, था गुंग मंदिर लगभग 1000 वर्ष पुराना है। इस मंदिर के इतिहास की चर्चा में श्री आबू ने बताया, था गुंग मंदिर का इतिहास खासा पुराना है। कहा जाता है कि ईसवी 641 में जातीय एकता और सीमांत क्षेत्र को स्थिर बनाने के लिए थांग राजवंश के राजा थांग थेई चुंग ने अपनी बेटी कुमारी वन छन का तिब्बती राजा सुंग च्येन गेन बू से विवाह करवाया और शाक्यमुनि की एक मूर्ति राजकुमारी और तिबब्ती राजा को उपहार के रूप में दी। कुमारी वन छन के तिब्बत जाने के रास्ते में था गुंग से गुजरते समय एक अनोखी घटना घटी। हुआ यह कि यह मूर्ति भूमि पर खड़ी हो गई और लोग उसे हिला तक नहीं पाये। जब लोगों ने इसे बहुत हिलाने की कोशिश की, तो इसने खुद कहा कि उसे यहीं रहना पसंद है। पर इस मूर्ति का अपना विशेष ध्येय था। इसलिए, राजकुमारी वन छंग ने निर्णय लिया कि स्वर्ण से इसके आकार की एक बुद्ध मूर्ति यहां रखी जाए। शाक्यमुनी की ऐसी नयी मूर्ति के निर्माण के बाद ही लोग इस मूर्ति को यहां से उठा सके। इसके बाद लोगों ने यहां था गु मंदिर का निर्माण कराया और शाक्यमुनि की मूर्ति तिब्बत के जुखलांखा मठ पहुंचायी गयी। तिब्बती भाषा में था गुंग का अर्थ है बुद्ध की पसंद की जगह।
प्रति वर्ष, था गुंग मंदिर में बुद्ध संबंधी अनेक गतिविधियां आयोजित होती हैं। ऐसे मौकों पर हजारों अनुयायी व पर्यटक देश के विभिन्न स्थलों से यहां आते हैं। मंदिर के प्रमुख प्रबंधक आबू ने बताया, था गुंग मंदिर में प्रति वर्ष 10 से ज्यादा धार्मिक गतिविधियां होती हैं, जिनमें मुख्य रूप से विश्व शांति पूजा रस्म और शांति पूजा रस्म आदि शामिल हैं। इन रस्मों में भाग लेने वालों की संख्या दस हजार से भी ज्यादा होती है और ये चीन के भीतरी इलाके, गेन सू, छिंग हाई, शन जंड औऱ क्वांग च्यो आदि प्रांतों से यहां आते हैं। कुछ पर्यटक तो हांगकांग, मकाओ व विश्व के अन्य स्थलों से भी आते हैं। अपनी नौकरी से खुश न रहने वाले लोग था गुंग मंदिर आकर बुद्ध शाक्यमुनि की पूजा करते हैं और शांति पाते हैं।
आबू के अनुसार, आज था गुंग मंदिर में 300 से ज्यादा लामा रहते हैं। मंदिर में बौद्धशास्त्र अकादमी भी खोली गयी है। विभिन्न स्थलों से आये लामा अकादमी में दाखिला लेते हैं। यहां के सभी लामा अपने परिवार पर निर्भर रहते हैं। मंदिर लामाओं के खाने व रहने की जगह नहीं देता। जब हम मंदिर से बाहर निकले तो हमें सात -आठ युवा लामा मिले। वे लोग दोपहर का भोजन कर रहे हैं। इन का मुख पठार की धूप में चमक रहा था।
29 वर्षीय लामा सी लांग दा जी को मंदिर आये 10 वर्ष हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि वे लोग जेन बा नामक परम्परागत तिब्बती खाना खा रहे हैं। बोतल में छिंग ख और घी को धीरे-धीरे मिला कर जेन बा बनाया जाता है। हर एक लामा को खाना खुद बनाना होता है। लामा सी लांग दा जी के अनुसार, तिब्बती मंदिर में कोई भी भोजनालय नहीं है, लामाओं को खुद ही खाना बनाना पड़ता है। वे आम तौर पर अपने परिवार पर निर्भर रहते हैं। उन्होंने कहा, चीन के तिब्बती बहुल क्षेत्र में 99 प्रतिशत मंदिर इसी तरह के हैं। यहां लामा अपने परिवार या खुद पर निर्भर रहते हैं और उन की कोई निश्चित आमदनी भी नहीं होती।
पर चीन के तिब्बती बहुल क्षेत्रों में अनेक लोग लामा बनना चाहते हैं। लामा सी लांग दा जी ने बताया कि यदि घर का बच्चा मंदिर जाना चाहता है, तो घर के सभी लोग खुश होते हैं। कभी-कभी तो एक ही परिवार के दो-तीन बच्चे लामा बन जाते हैं। तिब्बती जनता को लामा बनाना सब से अच्छा विकल्प लगता है। मंदिर सभी अनुयायियों के लिए खुले रहते हैं। युवक 18 वर्ष की उम्र पर पहुंचने पर अपनी इच्छा से लामा बन सकते हैं।
चीन के भीतरी इलाकों के अनेक मंदिरों की तुलना में तिब्बती मंदिर आम तौर पर घनी आबादी वाले स्थलों में स्थित हैं, पहाड़ों या सुदूर स्थलों में नहीं। वहां अनेक स्थलों में मंदिरों के बाद ही कस्बों या गांवों की स्थापना होती है। अधिकांश तिब्बती लोग धर्म पर विश्वास करते हैं। मंदिर उनके लिए ऐसी जगह है जहां वे अकसर जाते हैं।
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