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(GMT+08:00) 2005-01-10 14:54:04    
था गुंग मंदिर की यात्रा

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चीन के तिब्बती क्षेत्र में प्रचलित धर्म तिब्बती बौद्ध धर्म है। यह मुख्य तौर पर नींग मा, ग दांग, सागा, ग च्वु और ग लु पांच शाखाओं में विभाजित है। दक्षिण-पश्चिमी चीन के सी छ्वान प्रांत के था गुंग घास मैदान पर स्थित था गुंग मंदिर तिब्बती बौद्ध धर्म की सागा शाखा का एक प्राचीन मंदिर और तिब्बत के खांग बा क्षेत्र का तिब्बती नागरिकों का एक प्रमुख पवित्र स्थल भी है।

दक्षिण-पश्चिमी चीन के सी छ्वान प्रांत के गेनजी तिब्बती प्रिफेक्चर की राजधानी खांग दींग से प्रस्थान कर ज द्वो पहाड़ की चढाई करने के बाद, हम आखिरकार था गुंग मंदिर पहुंचे। था गुंग मंदिर बहुत बड़ा नहीं है, पर बहुत शानदार दिखता है। इस के प्रमुख प्रबंधक आबू के अनुसार, था गुंग मंदिर लगभग 1000 वर्ष पुराना है। इस मंदिर के इतिहास की चर्चा में श्री आबू ने बताया, था गुंग मंदिर का इतिहास खासा पुराना है। कहा जाता है कि ईसवी 641 में जातीय एकता और सीमांत क्षेत्र को स्थिर बनाने के लिए थांग राजवंश के राजा थांग थेई चुंग ने अपनी बेटी कुमारी वन छन का तिब्बती राजा सुंग च्येन गेन बू से विवाह करवाया और शाक्यमुनि की एक मूर्ति राजकुमारी और तिबब्ती राजा को उपहार के रूप में दी। कुमारी वन छन के तिब्बत जाने के रास्ते में था गुंग से गुजरते समय एक अनोखी घटना घटी। हुआ यह कि यह मूर्ति भूमि पर खड़ी हो गई और लोग उसे हिला तक नहीं पाये। जब लोगों ने इसे बहुत हिलाने की कोशिश की, तो इसने खुद कहा कि उसे यहीं रहना पसंद है। पर इस मूर्ति का अपना विशेष ध्येय था। इसलिए, राजकुमारी वन छंग ने निर्णय लिया कि स्वर्ण से इसके आकार की एक बुद्ध मूर्ति यहां रखी जाए। शाक्यमुनी की ऐसी नयी मूर्ति के निर्माण के बाद ही लोग इस मूर्ति को यहां से उठा सके। इसके बाद लोगों ने यहां था गु मंदिर का निर्माण कराया और शाक्यमुनि की मूर्ति तिब्बत के जुखलांखा मठ पहुंचायी गयी। तिब्बती भाषा में था गुंग का अर्थ है बुद्ध की पसंद की जगह।

था गुंग मंदिर में दा श्योंग, जु शी और हजार हाथों व हजार आंखों वाले क्वेन ईंग बुद्ध के भवन हैं। मंदिर के इन भवनों के पास पगोडे और लामाओं के अतिथिगृह भी हैं।

दा श्योंग पाओ द्येन मंदिर लामाओं का प्रमुख पूजा स्थल है। इस में तिब्बती बौद्ध धर्म की सागा शाखा के संस्थापक श्री सागा बेन्जीदा की मूर्ति स्थापित है। इसके चार किनारों पर पूर्वी सफेद पगोडा, दक्षिणी पीला पगोडा, पश्चिमी लाल पगोडा और उत्तरी हरा पगोडा है। इनका अपना-अपना विशेष अर्थ है। दा श्योंग पाओ द्येन में अनेक भित्तिचित्र भी हैं। थांग राजवंश के तिब्बती चित्र, रंगीन मूर्तियां और घी से बनायी गयी चीजें भी यहां हैं। दा श्योंग पाओ द्येन में तिब्बती जातीय धार्मिक संस्कृति की विशेषता प्रतिबिंबित होती है।

था गुंग मंदिर में एक विशेष मूर्ति है, जिस के हजार हाथ और हजार आंखें हैं। यह चीन के तिब्बती बहुल क्षेत्रों में ऐसी सब से ऊंची मूर्ति मानी जाती है। कहा जाता है कि चीन के थांग राजवंश की राजकुमारी वन छन ने तिब्बत जाने के रास्ते में था गु से गुजरते समय बौद्ध अनुयाइयों की इच्छा को पूरा करने के लिए इस मूर्ति का निर्माण कराया।

था गुंग मंदिर में अनेक मूल्यवान बौद्धिक धरोहरें भी रखी हैं, जिन में बुद्ध की टांग, 11वीं शताब्दी के भारतीय भिक्षु का घंटा व छड़ी आदि हैं।

था गुंग मंदिर के पीछे विभिन्न आकार वाले लगभग सौ बौद्ध पगोडे हैं, जो इसकी यात्रा करने वाले पर्यटकों को आकृष्ट करते है। यहां के लामाओं ने हमें एक कहानी सुनायी। पुराने समय में इस मंदिर के सामने दो कुंएं थे। दोनों एक-दूसरे से नहीं जुड़े थे। उनका पानी बहुत मीठा था। उत्तरी ओर के कुंएं का पानी आम तौर पर बुद्ध की पूजा के इस्तेमाल में किया जाता , जबकि दक्षिणी ओर के कुंएं का भिक्षुओं के दैनिक जीवन में इस्तेमाल होता था। था गुंग मंदिर की यात्रा करने वाले अकसर यहां पानी पीते हैं। कुछ लोग इस पानी को विशेष बोतलों में रखकर घर ले जाते हैं। कहा जाता है कि आज की था गुंग काउंटी पुराने समय में एक बड़ा तालाब थी। अवलोकितेश्वर बुद्ध ने आकाश से मानवों की विपत्ति देखी तो उनके दिल में दया पैदा हुई और अनेक लोगों को धर्मसिद्धांत सुनाने के लिए उन्होंने मनुष्यों के लिए एक पवित्र स्थल चुनने का निर्णय लिया। अवलोकितेश्वर ने आकाश से कुछ मीटी नीचे गिरायी। यह मिट्टी था गुंग के तालाब में जा गिरी और धीरे-धीरे तालाब का पानी भरने लगा। उस वक्त तालाब में एक ड्रैगन रहता था। तालाब में पानी गायब होने से ड्रैगन को विवश होकर भूमि के नीचे जाना पड़ा। उसने अवलोकितेश्वर से प्रार्थना की और उन से यह अपने लिए दुनिया को देखने वाली एक खिड़की खोलने को कहा। अवलोकितेश्वर ने उसके लिए था गुंग में दो कुंएं बना दिये।

था गुंग मंदिर के पास छोटे-बड़े लगभग 200 प्रार्थना चक्र भी टंगे हैं। वहां अनुयायी उन्हें घुमाते हुए पूजा कर रहे थे। मंदिर के बाहर हमारी मुलाकात सुश्री सी रन ला मू से हुई। उनके एक हाथ में प्रार्थना चक्र था और दूसरे में माला। वे दीवारों के चारों ओर घूम रही थीं और उन के मुख पर शांति नजर आती थी। सुश्रीसी रन ला मू ने बताया,

था गुंग मंदिर इस क्षेत्र का अपेक्षाकृत बड़ा मंदिर है। यहां के जो निवासी तिब्बत की तीर्थ यात्रा नहीं कर पाते , वे था गुंग मंदिर आकर पूजा करते हैं।

सुश्री सी रन ला मू के अनुसार, था गुंग मंदिर को तिब्बती बहुल क्षेत्र में बहुत ऊंचा स्थान प्राप्त है। किसी अनुयायी का मंदिर के चारों ओर एक बार घूमना इस बात का द्योतक होता है कि उसने तीस हजार बार पूजा की है।