20 सदी के 1979 से 1998 तक के करीब 20 सालों में चीन की आर्थिक ने 7 से 8 प्रतिशत की वृद्धि दर बरकरार रखी । क्या इस का मतलब है कि चीन की आर्थिक की अपनी पूरी नीहित शक्ति का पूरा उपयोग हो चुका है , क्या आर्थिक वृद्धि दर अपने सबसे उंची सीमा तक पहुंच चुकी है विशेषज्ञों का उत्तर है - नहीं - । चीनी सामाजिक आकादमी के अर्थ अनुसंधान प्रतिष्ठान के निदेशक श्री य्वेन कांग मिंग ने इस का विश्लेषण करते हुए कहा 8 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर हमारी पूरी शक्ति का मिसाल नहीं है, इस की अब भी भारी गुंजाइश है।
हालांकि पिछले कुछ सालों में उत्पन्न एशियाई वित्तीय संकट ने चीन की आर्थिक पर भी बडा प्रतिकूल प्रभाव डाला था, लेकिन वर्ष 2001 से 2002 के इन दो सालों में , चीन ने फिर भी अपनी आर्थिक दर 8 प्रतिशत तक कायम रखी , यहां तक कि कुछ महीनों में 8.3 प्रतिशत वृद्धि दर भी देखी गई थी।
श्री य्वेन कांग मिंग ने कहा कि पिछले कुछ सालों में चीन की आर्थिक वृद्धि में आई भारी सरगर्मी व मुद्रा स्फीति पर लगाम लगाने के लिए , चीन के निर्णायक विभागों ने बहुत से नियंत्रित कार्रवाईयों से आर्थिक स्थिति को समन्यव में रखा । आर्थिक वृद्धि में सरगर्मी , बाजार की जरूरत पर निर्भर होती है , जबकि इन सालों में चीन के आर्थिक की विभिन्न जरूरतों का बाजार में भरपूर मांग बनी रही है।
घरेलु उपभोग की जरूरतों की मांग में बढोतरी होने से, चीन के शहरी नागरिकों की औसत आय 7000 य्वेन और ग्रामीणवासियों की औसत आय 2000 य्वेन दर्ज की गई है, फिर भी अब तक 50 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को आवश्यक घरेलु इलैक्ट्रोनिक साज सामान उपलब्द्ध नहीं हो पाए है, पर शहरी निवासियां फिलहाल मकान व कार जैसी उच्च कोटि की उपभोगता वाले सामानो की खरीददारी के युग में प्रवेश कर चुके है, वर्ष 2002 में कार की खरीददारी का आधा भाग शहरी नीजि परिवार रहे थे।
श्री य्वेन कांग मिंग ने इस पर अपना विचार व्यक्त करते हुए बताया चीनी लोगों के मन में अब भी उच्च कोटि की वस्तुओं की खरीदने की तमन्ना है , न कि जरूरतों की चीजें वे पूरी तरह खरीद चुकें है और कुछ खरीदने के लिए बाकी नहीं रहा है। इस से देखा जा सकता है कि बाजार में उपभोगता की जरूरत की गुंजाइश बहुत ही विशाल है , शायद कोई एसा देश होगा जो चीन की बाजार की तरह विशाल और गुंजाइशों से भरपूर हो। जाहिर है आर्थिक की वृद्धि , बाजार की जरूरत को खींचने में तेज गति कायम रखेगी ।
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