सुङ काल में दर्शनशास्त्र के क्षेत्र में हेतुवादी मत को प्रधानता प्राप्त थी, जिस का प्रतिनिधित्व उत्तरी सुङ के छङ हाओ और छङ ई तथा दक्षिणी सुङ के चू शी करते थे। वे लोग यह मानते थे कि न्याय या दैवी न्याय ही विश्व का मूल है और सामन्ती व्यवस्था दैवी न्याय का मूर्त रुप है, जो शाश्वत और अपरिवर्तनीय है। उन्होंने मेहनतकश लोगों की अपने भौतिक जीवन को बेहतर बनाने की मांग को निकृष्ट मानव इच्छा बताकर निन्दा की, उन का कहना था कि ऐसी मांग दैवी न्याय के विपरीत है। वे चाहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति मानव इच्छा बताकर निन्दा की, उन का कहना था कि ऐसी मांग दैवी न्याय के विपरीत है। वे चाहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति मानव इच्छा को त्याग दे, ताकि दैवी न्याय को सुरक्षित रखा जा सके।
दक्षिणी सुङ काल के प्रगतिशील विचारक छन ल्याङ (1143-1194) ने चू शी जैसे दार्शनिकों की तीव्र आलोचना करते हुए कहा कि ये उदासीन और विरक्त व्यक्ति हैं, जो निरर्थक और खोखली बातें करना पसंद करते हैं। छन ल्याङ दूसरों के हितार्थ ठोस कार्यों के महत्व पर जोर देते थे। उन का कहना था, मनुष्य के लिए हमत्वपूर्ण बात यह है कि वह दुनिया को बेहतर बनाने और उस की व्यवस्था को पुनःस्थापित करने की इच्छा अपने अन्दर पैदा करे, तब वह एक उदात्त व्यक्ति बन जाएगा, भले ही उसका व्यवहार न्याय के पूरी तरह अनुरूप न हो।
इतिहास के क्षेत्र में उत्तरी सुङ राजवंश के सिमा क्वाङ (1019-1086) ने इतिहास एक दर्पण नामक ग्रन्ध का कालक्रम के अनुसार सम्पादन किया, जिस में युद्धरत राज्य काल से लेकर पांच राजवंशों के काल तक के 1392 बर्षों का इतिहास लिपिबद्ध है। 294 खण्डों की इस अन्यतम कृति की सामग्री का चयन अत्यन्त सावधानी से तथा प्रस्तुतीकरण सजीव व रोचक ढंग से किया गया है।
दक्षिणी सुङ काल के इतिहासकार य्वान शू ने इतिहास एक दर्पण की विषयवस्तु को घटनाक्रम के अनुसार पुनर्व्यवस्थित कर इतिहास एक दर्पण की घटनाएं नामक एक नए ग्रन्थ की रचना की ,जो चीन में अपनी तरह की पहली कृति साबित हुई। इन के अलावा, दक्षिणी सुङ काल के विद्बान चङ छ्याओ ने सामान्य इतिहास और सुङ य्वान काल के इतिहास मा त्वानलिन ने चीनी संस्थाओं व प्रथाओं का सामान्य अध्ययन नामक ग्रन्थों का सम्पादन किया, जो थाङ काल के तू यओ द्वारा सम्पादित संस्थाओं व प्रथाओं के बारे में के समकक्ष थे।
साहित्य रचना के क्षेत्र में सुङ काल अपने छि शैली के काव्य और य्वान काल अपने संगीतमय नाटकों के लिए प्रसिद्ध हैं। छि कविता का एक नया रूप था, जिस में छन्द की पंक्तियां तथा हर पंक्ति की लम्बाई अनिश्चित होती है। यह सुङ काल में बहुत लोकप्रिय था, जबकि बहुत से मशहूर छि काव्यरचयिता उदित हुए थे।
उत्तरी सुङ काल के सू शि (1037-1101) ने विषयवस्तु और लेखनशैली की दृष्टि से छि काव्य का और विकास कर साहित्य में असाधारण योगदान किया। स्वतंत्र और मुक्त शैली की उन की रचनाओं में ओज व लालित्य का मनोहारी समन्वय देखने को मिलता है। दक्षिणी सुङ काल के लू यओ (1125-1210) और शिन छीची (1140-1207) ने भी छि काव्यरचना में उतनी ही प्रसिद्धि प्राप्त की। ये दोनों कवि अपने समय के किन विरोधी संघर्ष में शामिल हुए थे, अतः उनकी रचनाओं में देशभक्ति , वीरता व करुणा की भावनाएं कूट कूट कर भरी हुई हैं। सुङ काल अपने गद्य के लिए भी प्रसिद्ध है। चङ कुङ, वाङ आनशि , अओयाङ श्यू, सू शि , सू श्युन और सू चे जैसे श्रेष्ठ गद्यलेखक इसी काल में प्रकाश में आए।
य्वान काल संगीतमय नाटकों का स्वर्ण युग था। इस काल में क्वान हानछिङस, वाङ शिफू और मा चीय्वान जैसे मशहूर नाटककार हुए हैं। य्वान काल के 500 से अधिक नाटकों में 160 से अथिक नाटक आज तक मौजूद हैं। य्वान राजवंश की राजधानी तातू में जन्मे क्वान हानछिङ ने 60 से अधिक नाटकों की रचना की, जिन में से तओ अ य्वान (भरी गरमी में हिमपात ) जैसे एक दर्जन नाटक आज भी उपलब्ध हैं।
सुङ य्वान काल में बहुत से यशस्वी चित्रकार भी हुए, जिन में उत्तरी सुङ काल के तुङ य्वान , ली छङ और फान ख्वान सबसे मशहूर हैं। चित्रकार चाङ चत्वान द्वारा रचित कृति छिङ मिङ त्योहार के मौके पर नदीतट का दृश्य में तत्कालीन खाएफङ शहर की चहल पहल और जन जीवन को चित्रित किया गया है। य्वान काल में चित्रकला की मुख्य धारा प्राकृतिक दृश्यों का चित्रांकन था।
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