सुङ और य्वान राजवंशों के काल में संस्कृति और विज्ञान दोनों क्षेत्रों में लम्बे डग भरे गए। चीन के तीन महत्वपूर्ण आविष्कारों (छपाई, बारूद और कुतुबनुमा) को और विकसित किया गया।
सुङ राजवंशकाल में ब्लाक छपाई के काम में बहुत तरक्की हुई और 11 वीं शताब्दी के मध्य में पी शङ नामक कारीगर द्वारा छपाई के लिए अलग अलग टाइपों के आविष्कार से छपाई के इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। य्वान काल में रांगे या लकड़ी के टाइप बनाए जाने लगे। बाद में, टाइप जोडकर छापने की तकनीक पूर्व में कोरिया और जापान तक तथा पश्चिम में मिस्र और योरप तक पहुंच गई। यह विश्व संस्कृति के विकास में चीनी जनता का एक महत्वपूर्ण योगदान था।
बारूद का आविष्कार प्राचीन चीन के कीमियागरों ने किया था और थाङ काल के अन्त में उस का इस्तेमाल फौजी काम के लिए भी होने लगा था। सुङ राजवंश के जमाने में बारूद बनाने की तकनीक में सुधार किया गया तथा बारूद वाले तीर, अग्नि बंदूक (बारूद भरकर चलाई जाने वाली बंदूक) और आदिम किस्म की तोप जैसे नए हथियारों का आविष्कार किया गया। य्वान काल में बारूद अरब देशों के जरिए योरप तक पहुंच गई।
युद्धरत राज्य काल में चीनियों ने चुम्बक पत्थर के चुम्बकीय गुण का पता लगा लिया था, जबकि दक्षिण दिग्दर्शक सुई का आविष्कार किया गया था। उत्तरी सुङ काल के दौरान कृत्निम चुम्बक का पहली बार प्रयोग शुरु हुआ। चूंकि चुम्बक सुई हमेशा उत्तर दक्षिण दिशा में रहती है, इसलिए जल्दी ही कुतुबनुमा का आविष्कार हुआ। दक्षिणी सुङ काल में कुतुबनुमा का इस्तेमाल करने वाले चीनी व्यापारी जहाज नियमित रूप से चीन से जापान , मलय द्वीपसमूह और भारत तक आते जाते थे। इन जहाजों में अरबी और फारसी व्यापारी भी अक्सर यात्रा करते थे, इसलिए उन्होंने भी कुतुबनुमा का इस्तेमाल करना सीख लिया और उसे योरप तक पहुंचाया। निस्संदेह , कुतुबनुमा के इस्तेमाल से जहाजरानी के विकास में बहुत मदद मिली।
उत्तरी सुङ काल के वैज्ञानिक शन ख्वो (1031-1065) ने अपनी महत्वपूर्ण रचना मङ शी पी थान (स्वप्न सरिता उपवन में लिखे गए लेख) में प्राचीन चीन की वैज्ञानिक उपलब्धियों और स्वयं अपने अनुसंधान की उपलब्धियों को लिपिबद्ध किया। यह चीनी विज्ञान के इतिहास की एक मूल्यवान विरोसत है। 1088 में उत्तरी सुङ काल के खगोलज्ञ सू सुङ ने जलशक्ति से चलने वाली एक स्वचालित छल्लेदार घड़ी का डिजाइन किया। यह दुनिया की सब से पुरानी खगोलीय घड़ी साबित हुई है। य्वान राजवंश के वैज्ञानिक क्वो शओचिङ (1231-1316) ने चीन के प्राचीन पंचांग का अध्ययन करके शओ शि ली ( समय बताने वाला पंचांग) नामक एक नया पंचांग तैयार किया, जिस के अनुसार एक साल की सही सही अवधि 365.2425 दिन निर्धारित की गई, जो वास्तविक समय से केवल 26 सेकण्ड कम है।
य्वान राजवंश के ही कृषि वैज्ञानिक वाङ चन ने नुङ शू ( कृषि के बारे में लेख) नामक पुस्तक लिखी, जिस की शब्दसंख्या 3 लाख से भी अधिक है। यह कृषि तकनीक, जंगलात, पशुपालन, कृषि सहायक धंधों और मत्स्यपालन से संबंधित अपने जमाने की सब से समृद्ध पुस्तक थी, जिस से पता चलता है कि उस समय चीन का कृषि उत्पादन काफी ऊंचे स्तर पर पहुंच गया था।
सुङ काल में अनेक चिकित्साग्रन्थ तैयार किए गए, जिन में सब से उल्लेखनीय रचनाएं एक्यूपंक्चर से संबंधित थीं। 1027 में शाही चिकित्सक वाङ वेइयी ने मनुष्य की एक कांस्यप्रतिमा बनाकर उस पर मानवशरीर के समस्त एक्यूपंक्चर बिन्दुओं को प्रदर्शित किया और तीन खण्डों वाला अपना एक्यूपंक्चर ग्रन्थ लिखा, जो बाद के काल के एक्यूपंक्चर चिकित्सकों के लिए अति उपयोगी सिद्ध हुए।
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