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(GMT+08:00) 2004-12-21 16:24:31    
सानी जाति का रीति रिवाज 

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सानी जाति में युवाओं में प्रेम के लिए नाच गान की आवश्यकता है । चांदनी रात में युवक त्रितंतुओं वाला साज और बांसुरी लिए गांव की जंगल में आते हैं , उन के द्वारा बजाई गई धुन के मधुर लय का साथ देते हुए युवतियां मुक्त भाव से नाचती हैं , यदि किसी युवक युवती में प्रेम का भाव उत्पन्न हुआ , तो उन में प्रेम का संबंध तय होता है । सानी जाति में अविवाहित युवतियों के सिर पर का आभूषण विशेष होता है , उन के सिर पर जो गोलाकार टोपी पहनती है , वह लाल , नीला , हरा , बेंगनी , पीला , सफेद तथा काला सात रंगों की धागों से बनाई गई है , टोपी के दोनों किनारों पर त्रिकोण रंगीन कसीदारी तितली सरीखा आभूषण जोड़ा गया है , कहा जाता है कि इस प्रकार का त्रिकोण तितली नुमा आभूषण प्रेम के लिए आग में अपनी जान देने वाले दोनों प्रेमी प्रेमिका की स्मृति में बनाया गया है , ये प्रेमी प्रेमिका आग में जान देने के बाद सात रंगों का इंद्रधनुष बन गए और सात रंगों की टोपी भी आगे चल कर सच्चे प्रेम का प्रतीक बनता है । सानी युवतियों की टोपी का यह विशेष आभूषण अविवाह का चिन्ह भी होता है । यदि किसी युवती को किसी युवक से प्यार आया ,तो वह अपनी टोपी की तितली को उसी युवक को भेंट करती है । इसलिए जब कभी आप किसी ऐसी युवती से मिले ,जिस की टोपी पर मात्र एक तितली रह गई है , तो आप को मालूम होना चाहिए कि उस युवती का अपना प्रेमी मिल चुका है

सानी जाति की युवती सुश्री बी छुन ह्वा का कहना है कि सानी युवती की टोपी पर यदि दो तितलीनुमा आभूषण सीधे खड़े है , तो इस का अर्थ है कि वह अविवाहित है , यदि किसी की टोपी पर सिर्फ एक तितलीनुमा आभूषण समतल रखा गया है , तो इस का मतलब है कि वह विवाहित है । सानी जाति की प्रथा के अनुसार अविवाहित युवती की टोपी के तितलीनुमा आभूषण को मनमानी से छूने की इजाजत नहीं होती है , यदि कोई युवक युवती के तितलीनुमा आभूषण को हाथ से छूता है , तो अर्थ यह हुआ है कि वह युवती का हाथ मांगता है । इसलिए यह हरकत एक जिम्मेदाराना अभिव्यक्ति है , इस नियम को तोड़ने वाले युवा को जोर से पीटने से ले कर तीन साल का बिना पारिश्रमिक वाला कड़ा परिश्रम करने की सजा दी जाती है । सानी जाति के लोग स्वभाव में खुले , सादे और बहादुर हैं , वे अपनी जाति को बाघा जैसा समझते हैं , इस जाति की यह विशेषता उन के नृत्य में भी अभिव्यक्त होती है ।

त्रितंतुओं वाले साज पर बजायी गई धुन मशहूर है , कहता है कि त्रितंतु साज सानी जाति की आत्मा है , जब कभी इस साज पर धुन बजाया जाने लगा , तो सानी लोग बच्चों से ले कर बुजुर्गों तक सभी पुरूष नारी जमीन पर बाईं पांव दबाने लगते हैं । इस सरल , पर जोश से भरे नाच के पीछे यह कथा चलती है कि प्राचीन काल में सानी जाति के पूर्वज पहाड़ी गुफाओं में रहते थे , वे आग से जमीन पर उगे घास जला कर उसे खेतीयोग्य बनाते थे , फिर फसलों की बीजों की बुवाई करते थे । बुवाई को ठीक समय पर पूरा करने के लिए वे कभी कभार तपती जमीन पर ही बीज बोना शुरू करते थे , क्योंकि उस समय वे रंगे पांवों से खेतीबाड़ी करते थे , इसलिए तपती जमीन से पांवों को बड़ा कष्ट सहना पड़ता था और वे दोनों पांवों को बारी बारी से दबाते हुए मेगनत जारी रखते थे । कालांतर में सानी जाति ने इस मेहनत को नृत्य का रूप दिया और सानी के लोगों ने त्रितंतु साज की धुन पर पांव दबाने का नाच बनाया । सानी जाति मशाल उत्सव भी मनाती है , मशाल उत्सव की खुशी में वे प्रायः त्रितंतु साज का साथ देते हुए नाचते हैं ।

चीन में खुलेपन की नीति लागू होने के बाद हर साल बड़ी संख्या में दूसरी जगहों के लोग विश्वविख्यात पत्थरों की जंगल देखने आते हैं , उन्हें सानी जाति के प्राचीन रीति रिवाज और जातीय विशेषता वाली हस्तशिल्पी वस्तुएं पसंद आती है । इसलिए सानी जाति पर्यटन सेवा का विकास कर पत्थरों की जंगल में गाइड का काम करने लगे , कारगरी की चीजें बेचते रहे और परम्परागत नाच गान का कार्यक्रम पेश करते रहे , पर्यटन सेवा के विकास से सानी जाति के लोगों को खासा आय भी प्राप्त हुई है । आम तौर पर सानी जाति के लोग खेतीबाड़ी से अवकाश समय पर्यटन सेवा करते हैं ।

सानी जाति का नाच गान सुनने देखने के बाद पर्यटकों को प्रायः सानी का महक मदिरा पिलाया जाता है , सानी लोग जाम पेश करते हुए गाना भी गाते हैं , जिस के भावार्थ इस प्रकार हैः सानी के मदिरा में प्यार लबालब है , पसंद हो , तो आप जरूर पीलेंगे , नापसंद हो , तो भी आप को पिलाया जाएगा । यह जबरदस्ती नहीं है , यह प्यार की असीम थाह है , जिस से सानी जाति की उत्साहपूर्ण मेहमाननवाजी व्यक्त होती है ।