य्वान राजवंश के जमाने में यातायात व संचार व्यवस्था बहुत अच्छी थी। देश के मुख्य थल और जल मार्गों के किनारे 1300 से ज्यादा डाककेन्द्र बनाए गए थे। उत्तरी और दक्षिणी चीन को जोड़ने वाली बड़ी नहर को तलकर्षित व चौड़ा कर पेइचिङ और दक्षिणी चीन के समृद्ध शहरों के बीच यातायात को सुगम बना दिया गया था। उस काल में समृद्ध पोत छाङच्याङ नदी के मुहाने पर स्थित ल्यूच्या बन्दरगाह (वर्तमान च्याङसू प्रान्त की थाएछाङ काउन्टी का ल्यूहो नामक स्थान) से रवाना होकर ह्वाङहाए सागर (पीत सागर) और पोहाए सागर से होते हुए चिकू (वर्तमान थ्येनचिन) तक जाते थे।
नीले और सफेद चीनीमिट्टी के बर्तन य़्वान राजवंश की दस्तकारी के नए उत्पाद थे। ह्वाङ ताओफो नामक एक मेहनतकश महिला ने सूती कपड़ा उद्योग के विकास में योगदान किया था।
य्वान राजवंश के शासकों ने किसानों से बहुत सी खेतीयोग्य जमीन छीनकर खेतीबारी के लिए गैरिजन सेना को दे दी थी या बौद्धमंदिरों को भेंट कर दी थी। इसके अलावा किसानों से भारी लगान व टैक्स भी वसूल किया जाता था तथा बेगार करवाई जाती थी। यही नहीं, फौजी काम के लिए किसानों से उनके घोड़े भी जबरन ले लिए जाते थे—य्वान राजवंश काल में किसानों से कुल मिलाकर 7 लाख घोड़े इस प्रकार छीने गए।
उस समय उत्तरी चीन के बहुत से किसान मंगोल जाति के कुलीनों के गुलाम बन गए। जनता के विरोध को कम करने के लिए य्वान शासकों ने जातियों के बीच फूट डालने की कोशिश की। उन्होंने सारे देश की जनता को चार
श्रेणियों में बांट दिया, पहली श्रेणी मंगोलों की थी, जिन का स्थान सबसे ऊंचा था, दूसरी श्रेणी सेमू (रंगीन आंखों वाले) लोगों की थी, जिनमें पश्चिमी की श्या जाति, उत्तरपश्चिम की उइगुर जाति तथा मध्य एशिया से चीन में आई विभिन्न जातियों के लोग शामिल थे, तीसरी श्रेणी हानों की थी, जिन में उत्तरी चीन के हान लोग और न्वीचन, खित्तन व पोहाए आदि जातियों के लोग शामिल थे, तथा चौथी व सबसे निम्न श्रेणी दक्षिणवासियों की थी, जिन में दक्षिणी चीन में रहने वाले हान जाति व अन्य जातियों के लोग शामिल थे। इस वर्गीकरण का उद्देश्य विभिन्न जातियों के परस्पर सम्पर्क तथा शासकों के विरुद्ध उनकी संयुक्त प्रतिरोध शक्ति को क्षीण करना था।
य्वान शासकों के क्रूर शासन से विभिन्न जातियों की जनता के बीच तीव्र विरोध पैदा हुआ। 1351 में लाल साफा सेना ने ल्यू फूथुङ के नेतृत्व में आज के आनह्वेइ प्रान्त के इङचओ नामक स्थान में विद्रोह कर दिया। विभिन्न स्थानों के किसानों ने इसका समर्थन किया। लाल साफा सेना ने तीन रास्तों से उत्तर की ओर अभियान किया। लेकिन इस सेना में आपसी तालमेल की कमी और उसकी विभिन्न टुकड़ियों द्वारा अलग थलग ढंग से लड़ाई किए जाने के कारण यह अभियान अन्त में असफल हुआ और युद्ध में ल्यू फूथुङ की मृत्यु हो गई। 1356 में लाल साफा सेना की एक दूसरी टुकड़ी ने कमाण्डर चू य्वानचाङ के नेतृत्व में चीछिङ ( वर्तमान नानचिङ ) पर कब्जा कर लिया।
छै सात सालों की लड़ाई के बाद इस सेना की संख्या और शक्ति धीरे धीरे काफी बढ गई। उस ने छाङच्याङ नदी के मध्य व निचले भाग के इलाकों पर नियंत्रण कर लिया और छाङच्याङ नदी के दक्षिण में अपने पांव जमा लिए। इसके बाद 1357 में चू य्वानचाङ ने श्वी ता व छाङ य्वीछुन नामक दो कमांडरों को अपनी सेना के साथ उत्तरी अभियान के लिए भेजा। उन्होंने तातू पर कब्जा कर लिया और य्वान राजवंश का तख्ता उलट दिया। इस प्रकार , य्वान राजवंश के अन्तिम काल के किसान विद्रोहों ने एक महान ऐतिहासिक भूमिका अवश्य अदा की, लेकिन उन सबका भी अन्त यही हुआ कि सामन्ती जमींदार वर्ग के एक राजवंश ने दूसरे की जगह ले ली।
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