फुमी जाति में अपनी जाति की विशेषता बनाए रखने के लिए अनेक रीति रिवाज प्रचलित होते हैं। मसलन् घुमंतू जाति की संतान होने के नाते फुमी जाति के बच्चे 13 साल की उम्र में ही व्यस्क माने जाते हैं , इस के लिए व्यस्क रस्म आयोजित होता है । श्री येन ल्येनचुन ने अपने व्यस्क रस्म की याद करते हुए कहाः
व्यस्क रस्म फुमी जाति के बच्चों का एक अहम उत्सव है , यह इस का प्रतीक है कि बच्चे अब परवान चढ़ गए हैं । व्यस्क रस्म के आयोजन के समय परिवार के सभी लोग अग्नि कुंड के सामने इक्ट्ठे हो जाते हैं , अग्नि कुंड के आगे देव स्तंभ खड़ा किया गया है , व्यस्क रस्म लेने वाले बच्चे का पांव अनाज से भरी बौरे पर दबा हुआ है , इस का अर्थ है कि उस का भावी जीवन खुशहाल होगा । रस्म के दौरान बच्चा हाथों में चौकू और चांदी की सिक्का पकड़ता है और बच्ची कंगन , रेशम और टाट के कपड़े हाथ में लेती है । यह उन की मेहनत और कार्यकुशलता का परिचायक होता है ।
व्यस्क रस्म के बाद फुमी जाति के युवक युवती सामुहित उत्पादन श्रम तथा विभिन्न सामाजिक कार्यवाहियों में भाग लेने लगते हैं और उन्हें प्यार मुहब्बत करने तथा शादी ब्याह करने की हैसियत भी प्राप्त हुई है । फुमी जाति में स्वतंत्र प्रेम विवाह की प्रथा चलती है । जाति में दुल्हन छीनने की प्रथा अब भी फुमी लोग बहुल क्षेत्रों में चलती है ।
हां , यह भी सच है कि आधुनिक युग में सामाजिक प्रगति के परिणामस्वरूप फुमी जाति की कुछ प्राचीन मान्यताएं और प्रथाएं लुप्त हो गई हैं । फिर भी उन के जीवन में कुछ न कुछ अंश देखने को मिल सकता है । अतीत में फुमी जाति के लोग खाना खाने से पहले प्याला माथे के ऊपर उठा कर देवता की पूजा करते थे , अब केवल वृद्धाओं में यह प्रथा चलती है । देवता पर जो अंधविश्वास था , अब भी खत्म हो गया , किन्तु देवता पूजा का रस्म अब भी सुरक्षित है और फुमी जाति का धार्मिक विश्वास भी नहीं बदला ।
फुमी जाति को पातिन धर्म में आस्था है , यह एक प्रकार का आदिम धर्म है । पातिन धर्म का फुमी जाति के जीवन के सभी प्रमुख मामलों में महत्व होता है । कहा जाता है कि पातिन एक खूबसूरत और कार्यदक्ष देवी है , वह हमेशा सफेद कपड़ा और स्कर्ट पहनती है और चश्मे का पानी व दुध पीती है , लेकिन अनाज नहीं खाती । वह हमेशा लोगों को दुखों और मुसिबतों से उबार कर लेने को तैयार रहती है । फुमी जाति की मान्यता में पातिन देवी सर्वज्ञ व सर्वजयी देवता है , वे उस की असीम आस्था के साथ पूजा करते हैं । चीनी केन्द्रीय जातिय विश्वविद्यालय के शोध कर्ता सुश्री यांग चु ह्वी ने इस की चर्चा में कहाः
पातिन धर्म यह मानता है कि जग की सभी वस्तुओं में आत्मा होती है , इस धर्म के प्रवर्तक का नाम पातिन था , इसलिए धर्म का नाम पातिन पड़ा है । फुमी के लोग मानते हैं कि पहाड़ों , नदियों , पेड़ पौधों तथा मानव जानवरों में आत्मा होती है , अगर किसी समय गड़बड़ी पैदा हुई , तो वह आत्मा की हरकत है , इसलिए अशकुन से बचने के लिए कुछ रस्म आयोजित आत्मा से रक्षा की विनती की जानी चाहिए ।
लम्बे पुराने इतिहास तथा गाढ़ा विश्वास से प्रभावित फुमी जाति के लोग स्वभाव में बड़े सीधे सादे , दयालु और मेहमाननवाज हैं । मेहमानों का बड़े जोश के साथ स्वागत सत्कार करने की भावना फुमी जाति में गहन रूप से गर्भित है , जब कभी रिश्तेदार और मेहमान घर आये , तो परिवार के मालिक मालिकन बड़े स्नेह के साथ पेश होते हैं और मेहमानों के स्वागत में घी का चाय , हलवा और फल परोसते हैं और मदिरा का जाम पेश करते हैं । जब मेहमान बिदा लेते हैं ,उसे मुर्गे के पकाए टांग , नमकीन गोश्त का एक टुकड़ा , एक डिब्बा चाय तथा एक मिठ्टा बोतल शराब भेंट करते हैं । भेंट की चीजें ज्यादा तो नहीं है , पर उस में फुमी लोगों का स्नेह और प्यार निहित है , ये चारों चीजें स्वयं बनायी गई हैं , इस से फुमी जाति की गाढ़ा दोस्ती जाहिर है । फुमी की यह परम्परा अब भी प्रचलित रही है ।
यही है चीन की अल्पसंख्यक जाति फुमी जाति के बारे में संक्षिप्त जानकारी , चीन के युन्नान प्रांत में रह रही फुमी जाति की जनता का जीवन काफी रंगारंग होता है , यदि आप को मौका मिला , तो खुद जा कर इस का अनुभव ले जाएं
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