फुमी जाति चीन की बहुत कम जन संख्या वाली जातियों में से एक है , अब उस की कुल जन संख्या मात्र तीस हजार है , जो दक्षिण पश्चिम चीन के युन्नान प्रांत के उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र में स्थित पाई व फुमी जातीय स्वायत्त काऊंटी में रहती है । फुमी जाति के पूर्वज चीन के उत्तर पश्चिम भाग में घास मैदान में रहते थे और घुमंतू पशुपालन का जीवन बिताते थे । करीब 13 वीं शताब्दी में वे स्थानांतरित हो कर आज के आबाद स्थल आ कर बस गए । बीते सात सौ सालों में फुमी जाति के लोग युन्नान प्रांत के नानपिंग क्षेत्र की फुमी काऊंटी में रहते हुए अपनी जाति की अलग पहचान बनाए रखे हुए हैं , उन के जातीय संगीत , भाषा , संस्कृति व रीति रिवाज में स्पष्ट विशेषता पायी जाती है ।
फुमी जाति के विशेष ढंग के वाद्ययंत्र बांसुरी से बजायी गई धुन बहुलॉत सुरीली है , फुमी जाति के युवा येन ल्येनचुन को अपना जातीय वाद्य बजाना बहुत पसंद है । येन ल्येनचुन का जन्म युन्नान प्रांत के फुमी जाति बहुल स्थान में हुआ था , पर विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद वह पेइचिंग में बस गए , उस के दिल में अपने गांव तथा अपनी जाति की संस्कृति के प्रति गाढ़ा लगाव है और उसे फुमी का संगीत बहुत पसंद भी है । उस की बांसुरी धुन से घने पहाड़ी जंगल में आबाद फुमी गांव की याद आती है ।
फुमी जाति के लोग अपनी जाति से बहुत प्यार करते हैं , उन के जीवन में ढेर सारी प्राचीन मान्यताएं और प्रथाएं सुरक्षित हैं । युवा लोग बुजुर्ग पीढ़ी से एतिहासिक कहानी सुनने के उत्सुक हैं , जब कि बुजुर्ग लोग भी वाचन गायन के रूप में फुमी जाति के उत्तर से दक्षिण में स्थानांतरित होने का इतिहास बताना पसंद करते हैं। इन कहानियों से फुमी जाति के पूर्वजों की मेहनत तथा बुद्धिमता जाहिर होती है ।
अपने पूर्वजों के लम्बे रास्ते के स्थानांतरण की याद में फुमी महिलाओं के बहु तहों वाले स्कर्ट के बीचोंबीच लाल रंग की धागे से एक घूमादार रेखा कसीदा की जाती है, यह घूमादार रेखा फुमी के पूर्वजों के स्थानांतरण का प्रतीक है । फुमी लोगों की मान्यता के अनुसार उन की मृत्यु के बाद वे इसी रास्ते से अपना अंतिम पड़ाव पहुंच जाते हैं ।
फुमी जाति के लोग मानते हैं कि मृत्यु के बाद उन की आत्मा अपनी जन्म भूमि वापस लौटती है , इसलिए वे अंतिम संस्कार के आयोजन में भी पूर्वजों की समृत्ति में रस्म जोड़ देते हैं । फुमी जाति के लोगों के अंतिम संस्कार में बकरी का मार्ग दर्शन नामक रस्म होता है , इस के अनुसार पुजारी मृतक को उस के पूर्वजों के नाम और उत्तरी भाग में लौटने का रास्ता बताता है , मृतक को रास्ता दिखाने के लिए एक बकरी भी लाता है । रस्म के दौरान पुजारी यह मंत्र जपाता रहता है कि तुरंत तैयार हो , यह सफेद बालों वाला बकरी तुझे रास्ता दिखाएगा , तुम हमारे पूर्वजों की जन्म भूमि --उत्तरी भाग लौट जाओ ।
फुमी जाति में अपनी जाति की विशेषता बनाए रखने के लिए अनेक रीति रिवाज प्रचलित होते हैं । मसलन् घुमंतू जाति की संतान होने के नाते फुमी जाति के बच्चे 13 साल की उम्र में ही व्यस्क माने जाते हैं , इस के लिए व्यस्क रस्म आयोजित होता है । श्री येन ल्येनचुन ने अपने व्यस्क रस्म की याद करते हुए कहाः
व्यस्क रस्म फुमी जाति के बच्चों का एक अहम उत्सव है , यह इस का प्रतीक है कि बच्चे अब परवान चढ़ गए हैं । व्यस्क रस्म के आयोजन के समय परिवार के सभी लोग अग्नि कुंड के सामने इक्ट्ठे हो जाते हैं , अग्नि कुंड के आगे देव स्तंभ खड़ा किया गया है , व्यस्क रस्म लेने वाले बच्चे का पांव अनाज से भरी बौरे पर दबा हुआ है , इस का अर्थ है कि उस का भावी जीवन खुशहाल होगा । रस्म के दौरान बच्चा हाथों में चौकू और चांदी की सिक्का पकड़ता है और बच्ची कंगन , रेशम और टाट के कपड़े हाथ में लेती है । यह उन की मेहनत और कार्यकुशलता का परिचायक होता है ।
व्यस्क रस्म के बाद फुमी जाति के युवक युवती सामुहित उत्पादन श्रम तथा विभिन्न सामाजिक कार्यवाहियों में भाग लेने लगते हैं और उन्हें प्यार मुहब्बत करने तथा शादी ब्याह करने की हैसियत भी प्राप्त हुई है । फुमी जाति में स्वतंत्र प्रेम विवाह की प्रथा चलती है । जाति में दुल्हन छीनने की प्रथा अब भी फुमी लोग बहुल क्षेत्रों में चलती है ।
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