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चीन की अल्पसंख्यक जाति

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सांस्कृतिक जीवन
(GMT+08:00) 2004-12-10 14:32:29    
मंगोलों का उदय और य्वान राजवंश द्वारा चीन का एकीकरण

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मंगोल जाति चीन की एक अल्पसंख्यक जाति है, जो प्राचीन काल से यहां रहती आई है। शुरु शुरु में यह जाति अड़कुन नदी के पूर्व के इलाकों में रहा करती थी, बाद में वह वाह्य हिङकान पर्वतश्रृंखला और आलथाए पर्वतश्रृंखला के बीच स्थित मंगोलिया पठार के आरपार फैल गई।मंगोल जाति के लोग खानाबदोशों का जीवन व्यतीत करते थे और शिकार , तीरंदाजी व घुङसवारी में बहुत कुशल थे। बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इसके मुखिया तेमूचीन ने तमाम मंगोल कबीलों को एक किया।

 1206 में मंगोल जाति के विभिन्न कबीलों के सरदारों ने तेमूचिन को अपनी जाति का सब से बड़ा मुखिया चुना और उसे सम्मान में "चंगेज खान"(1162-1227) कहना शुरू किया, जिस का मतलब है "बहुसंख्यक लोगों का प्रतापी सम्राट"। उस ने मंगोल शासन कायम किया और अपने सैनिकों को साथ लेकर दक्षिण की ओर हमला करने के लिए कूच कर दिया।

1215 में उस ने किन राज्य की "मध्यवर्ती राजधानी"चुङतू पर कब्जा कर लिया और ह्वाङहो नदी के उत्तर के विशाल उलाकें को हथिया लिया। 1227 में चंगेज खान ने पश्चिमी श्या शासन को खत्म कर दिया। पश्चिमी श्या के साथ लड़ाई के दौरान चंगेज खान की बीमारी की वजह से ल्यूफान पर्वत पर मृत्यु हो गई। उस के बाद उस का बेटा ओकताए गद्दी पर बैठा, जिस ने सुङ से मिलकर किन पर हमला किया और 1234 के शुरू में किन के शासन को खत्म कर दिया। किन राज्य पर कब्जा करने के बाद मंगोल फौजों ने अपनी पूरी शक्ति से सुङ पर हमला किया।

1260 में कुबलाई ने अपने को महान खान घोषित किया और हान परंपरा का अनुसरण करते हुए 1271 में अपने शासन को "मंगोल" के स्थान पर य्वान राजवंश (1271-1368) का नाम दे दिया। कुबलाई खान इतिहास में य्वान राजवंश के प्रथम सम्राट शिचू के नाम से प्रसिद्ध है।

 1276 में य्वान सेना ने सुङ राजवंश की राजधानी लिनआन पर हमला करके कब्जा कर लिया, और सुङ सम्राट व उस की विधवा मां को बन्दी बनाकर उत्तर ले आया गया। दक्षिण सुङ राज्य के प्रधान मंत्री वंन थ्येनश्याङ तथा उच्च अफसरों चाङ शिच्ये और लू श्यूफू ने पहले चाओ श्या और फिर चाओ पिङ को राजगद्दी पर बिठाया, तथा य्वान सेनाओं का प्रतिरोध जारी रखा। लेकिन मंगोलों की जबरदस्त ताकत के सामने उन्हें अन्त में हार खानी पड़ी।

य्वान राजवंश द्वारा चीन के एकीकरण से थाङ राजवंश के अन्तिम काल से चली आई फूट समाप्त हो गई। इस ने एक बहुजातीय एकीकृत देश के रूप में चीन के विकास को बढावा दिया। य्वान राजवंश की शासन व्यवस्था के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार के तीन मुख्य अंग थे--- केन्द्रीय मंत्राल्य, जो सारे देश के प्रशासन के लिए जिम्मेदार था, प्रिवी कोंसिल, जो सारे देश के फौजी मामलों का संचालन करती थी, और परिनिरीक्षण मंत्रालय, जो सरकारी अफसरों के आचरण व काम की निगरानी करता था। केन्द्र के नीचे "शिङ शङ"(प्रान्त) थे।

चीन में स्थानीय प्रशासनिक इकाइयों के रूप में प्रान्तों की स्थापना य्वान काल से शुरू हुई और यह व्यवस्था आज तक चली आ रही है। य्वान राजवंश के जमाने से ही तिब्बत औपचारिक रूप से केन्द्रीय सरकार के अधीन चीन की एक प्रशासनिक इकाई बन गया। फङहू द्वीप पर एक निरीक्षक कार्यालय भी कायम किया गया, जो फङहू द्वीपसमूह और थाएवान द्वीप के प्रशासनिक मामलों का संचालन करता था। आज का शिनच्याङ प्रदेश और हेइलुङ नदी के दक्षिण व उत्तर के इलाके य्वान राज्य के अंग थे। य्वान राजवंश ने दक्षिणी चीन सागर द्वीपमाला में भी अपना शासन कायम किया। य्वान राजवंश के शासनकाल में विभिन्न जातियों के बीच सम्पर्क वृद्धि से देश के आर्थिक व सांस्कृतिक विकास को तथा मातृभूमि के एकीकरण को बढावा मिला।

य्वान राजवंश की राजधानी तातू (वर्तमान पेइचिङ) तत्कालीन चीन के आर्थिक व सांस्कृतिक आदान प्रदान का केन्द्र था। वेनिस के यात्री मार्को पोलो ने , जो कभी य्वान राजदरबार का एक अफसर भी रह चुका था, अपने यात्रा वृत्तान्त में लिखा है:"य्वान राजवंश की राजधानी तातू के निवासी खुशहाल थे","बाजार तरह तरह के माल से भरे रहते थे। केवल रेशम ही एक हजार गाड़ियों में भरकर रोज वहां पहुंचाया जाता था"।"विदेशों से आया हुआ विभिन्न प्रकार का कीमती माल भी बाजार में खूब मिलता था। दुनिया में शायद ही कोई दूसरा शहर ऐसा हो जो तातू का मुकाबला कर सके।"