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2004-12-02 15:10:22
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चीन के स्कूलों में छात्रों को वैज्ञानिक शिक्षा देने का नया उपाय
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यह सर्व विदित है कि वैज्ञानिक शिक्षा किसी देश के विकास की नींव होती है और बच्चों में विज्ञान की शिक्षा के प्रचार का विशेष महत्व होता है। इधर के वर्षों में चीन के विभिन्न क्षेत्रों के मिडिल व प्राइमरी स्कूलों के छात्रों में जोर-शोर से वैज्ञानिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है । अब तक परंपरा यह रही है कि स्कूलों में अध्यापक छात्रों को विभिन्न जानकारियां दें, लेकिन आधुनिक समय में यह विचार भी बदलने लगा है। आधुनिक शिक्षा का विचार है कि छात्रों में स्वेच्छा से जानकारी पाने की शक्ति होनी चाहिये। इसके लिए चीन के कुछ स्कूलों को आदर्श बनाया गया है। ऐसी एक मिसाल पूर्वी चीन के शानतुंग प्रांत के चीनान शहर के शीचैन प्राइमरी स्कूल की है जिसने छात्रों को वैज्ञानिक शिक्षा देने का नया उपाय ढ़ूंढ़ा है। इस स्कूल में छात्रों के लिए प्रति हफ्ते कई घंटों की विज्ञान व तकनीक की कक्षाएं लगती हैं। इन कक्षाओं में वे पुस्तकों से ही नहीं ज्ञान नहीं पाते, स्वयं भी वैज्ञानिक परीक्षण करते हैं। इस स्कूल की पांचवीं कक्षा के एक छात्र कोतुंग ने गौरव के साथ बताया कि वह वहां खुद रोबोट बनाता है। उसका बनाया रोबोट न केवल चल सकता है ,चीज़ों को पकड़ तक सकता है और अपने रास्ते में आने वाली बाधाओं से बच भी सकता है। कोतुंग ने बताया कि एक दिन उसने अपनी मां को घर में सफाई करते देखा , तो उस के दिमाग में अचानक यह विचार आया कि वह एक रोबोट बनाए जो मां की जगह घर की सफाई कर सके। इसके बाद कोगुंत ने अपने कुछ घनिष्ठ मित्रों को यह विचार बताया और वे सब ऐसा रोबोट बनाने पर सहमत हुए। कोतुंग के अध्यापक ने अपने छात्रों के इस विचार की प्रशंसा की और उन के इस कामकाज को ठोस समर्थन दिया। कोतुंग और उस के मित्रों ने अध्यापक से कंप्यूटर, इलेक्ट्रोनिक्स व मशीनरी की जानकारी पाने के बाद एक रोबोट बनाना शुरू किया। उन्हों ने एक सच्चे इंजीनियर की तरह रोबोट का डिजाइन तैयार किया। इसमें मुसीबतें आईं, तो उन्हों ने खुद पुस्तकों से उनका जवाब तलाशने की कोशिश की। और अन्त में वे अपनी ही शक्ति के बूते यह रोबोट बनाने में सफल हुए। इन छात्रों की इस रचना पर समाज का व्यापक ध्यान भी गया। बहुत से लोग इस रोबोट को देखने स्कूल आये। चीनी रक्षा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्री मा हूंगश्वे ने रोबोट देखकर बड़ी खुशी से कहा कि प्राइमरी स्कूल के इन कुछ छात्रों का विचार बहुत गहरा है। रोबोट बनाने को उन्होंने उन के दिमाग और कौशल के सुधार के लिए बहुत अच्छा बताया। रोबोट के अलावा इस स्कूल के छात्रों ने स्वचालित कप , नाचने वाला सिक्का और आग से चलने वाला छोटा गुब्बारा भी बनाया। स्कूल में हाल ही में हुई वैज्ञानिक रचना प्रदर्शनी में उन्होंने ऐसे सैकड़ों स्वनिर्मित गुब्बारे आकाश में छोड़े। ये गुब्बारे प्लास्टिक, रबड़ और लोहे की बोतल से निर्मित हैं और इनमें अल्कोहल को ईंधन की तरह इस्तेमाल किया गया है। छात्रों ने बताया कि उन्होंने ऐसे गुब्बारे के निर्माण में मौजूद अनेक कठिनाइयों को दूर कर लिया है और इन कठिनाइयों का हल करने के दौरान बहुत कुछ सीखा भी। इस स्कूल की प्रधान सुश्री मा लीश्या के अनुसार उन का स्कूल वैज्ञानिक परीक्षण तथा छात्रों के अपने हाथ से किये गये काम को बहुत महत्वपूर्ण मानता है। इस से छात्रों की गुणवत्ता को उन्नत होती है और उनमें बचपन से ही विज्ञान के प्रति गहरी रुचि जगने लगती है, जो उन की पूरी जिंदगी के लिए लाभदायक साबित हो सकती है। नीचे आप उक्त कहानी से जुड़े चीन में गुणी शिक्षा तथा बाल बच्चों की गुणवत्ता को उन्नत करने के कुछ कार्यों पर नज़र डाल दें । पिछले दो सालों में चीन ने गुणी शिक्षा को अमल में लाने की सकारात्मक कोशिश की है , और इस संदर्भ में उल्लेखनीय प्रगति भी प्राप्त की । चीन की शिक्षा मंत्री सुश्री चेन ने कहा कि उन्हों ने कहा कि वर्ष दो हजार एक से चीन को गुणी शिक्षा के अपने अभियान में महत्वपूर्ण प्रगति मिलती शुरू हुई । प्राइमरी व मिडिल स्कूलों में नयी पाठ्य पुस्तकों का प्रयोग शुरू हो गया है और हाई स्कूलों में नये तरीके की कक्षाओं का अनुशीलन व परीक्षण भी शुरू हुआ है । साथ ही देश के प्राइमरी व मिडिल स्कूलों में नैतिक शिक्षा का सुधार भी शीघ्रता से आगे बढ़ा है । इधर खेल , संगीत व चित्रकला जैसी कक्षाओं का नया मापदंड और छात्रों का स्वास्थ्य मापदंड भी तैयार किया जा चुका है । एक ताजा सर्वेक्षण कहता है कि चीन के 3 से 18 वर्ष की उम्र वाले बच्चों में से आधे , या तो दूसरों के साथ सहयोग करने में असमर्थ हैं , या श्रम से प्रेम नहीं करते हैं , या मनोवैज्ञानिक तौर पर हद से ज्यादा कमजोर हैं । इसी स्थिति को देखते हुए चीन के राष्टीय महिला संघ और चीनी शिक्षा मंत्रालय ने देश के बच्चों के नैतिक बल को उन्नत करने के लिये गत फरवरी से चीनी लघु नागरिक नैतिकता निर्माण योजना शुरू की । चीन की कोई तीस करोड़ आबादी ऐसी हैं , जिस की औसत उम्र 18 साल के नीचे है । चीन सरकार ने पिछली शताब्दी में परिवार नियोजन का जो राष्टीय सिद्धांत लागू किया , उस के तहत एक परिवार में एक ही बच्चा होने की व्यवस्था है । इसलिये वर्तमान में भी चीनी शहरों के अधिकांश परिवार इकलौती संतान वाले नजर आते हैं । ऐसे इक्लौते बच्चों को अपने माता पिता के अतिरिक्त , दादा दादी , नाना नानी भी हैं , यानी सब परिवार के सभी सदस्य इस अकेले बच्चे को प्रेम करते हैं । लेकिन हद से ज्यादा प्रेम से बच्चों के प्रशिक्षण के लिये बाथक बन जाता है , कारण यह है कि वे ये स्वयं को दुनिया का केंद्र मानने लगते हैं , और दूसरों पर ध्यान नहीं देते । इस नैतिक मनोवैज्ञानिक समस्या के समाधान के लिये चीन के प्राइमरी स्कूलों में नैतिक कक्षाएं खोली गयीं , और अब लघु नागरिक नैतिकता निर्माण जैसी योजना लागू की गयी । इन सब का लक्ष्य चीनी बच्चों को बुनियादी सामाजिक मल्यों में दीक्षित करना व जिम्मेदारी का भाव पैदा करना है । चीनी महिला संघ की उपाध्यक्षा सुश्री गू श्यू ल्यैन ने कहा कि चीन की लघु नागरिक नैतिकता निर्माण योजना का देश जनता से बहुत लोकप्रिय है , और इस का लक्ष्य चीनी बच्चों की नैतिक गुणवता को उन्नत करना और उन्हें उदार विचारधारा कायम करना है । इस योजना का नारा है - घर में माता पिता के लघु सहायक बनें , स्कूल में सहपाठियों के मित्र बनें , समाज में दूसरों की मदद करने वाले हों तथा जीवन में पर्यावरण के लघु रक्षक ।
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