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(GMT+08:00) 2004-11-29 09:17:19    
तिब्बत स्वायत प्रदेश का चौथा भाग

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आज के इस कार्यक्रम में हम बरेली, उत्तर प्रदेश के आबिद अली देशप्रेमी, विजयवाड़ा आंध्र प्रदेश की सुश्री रहमतुन्निसा,मऊ, उत्तर प्रदेश के अनुराग दीप, दीपा यादव, ऊषा देवी, राथिका देवी,कोआथ के हाशिम आज़ाद, ख़ैरून निसा, रज़ोमा खातुन बाबू अकरम,बिलासपुर, छत्तीसगढ़ के चुन्नीलाल मासूम,कलेर, बिहार के मोहम्मद असिफ खान, बेगम निकहत प्रवीन, सदफ आरजून, अजफर अकेला, तहमीना मशकुर, आजमगढ़ यू पी के काएम महदी, जावेद हैदर मजीद और भागलपुर, बिहार की नाजनी हसन, तामन्ना हसन, हमीदा हसन, शबीना हसन, सुलताना खातून, नाजमा खानम के पत्र शामिल कर रहे हैं। इन सभी श्रोताओं ने चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के बारे में विस्तृत जानकारी चाही है।

वर्ष 2003 में चीन में एड्ज के विषाणु से ग्रस्त रोगियों के 8 लाख 40 हजार मामले पाए गए और 80 हजार रोगियों की मृत्यु हो गई। यानी चीन में एड्ज की स्थिति गंभीर है।

पर तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में एड्ज की स्थिति इतनी गंभीर नहीं है। तिब्बत में एड्ज विषाणु से ग्रस्त प्रथम व्यक्ति का पता वर्ष 1994 में लगा। तब से तिब्बत में ऐसे कुल 11 मामले पाए गए।

गत वर्ष जनवरी से अक्टूबर तक स्वायत्त प्रदेश के संक्रामक रोग निरोध केन्द्र और ल्हासा संगरोध प्रशासन ने आम लोगों में एड्ज के चार मामले पाए।

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में एड्ज रोग निरोध अभियान वर्ष 1990 में शुरु हुआ।

वर्ष 2000 में एड्ज रोग के मामलों को रिपोर्ट करने की व्यवस्था कायम हुई।

वर्ष 2000 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन को पोलियो रहित क्षेत्र घोषित किया। 29 अक्टूबर, 2001 को, चीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की यह घोषणा जारी की। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह भी घोषित किया कि वर्ष 2005 तक दुनिया भर से पोलियो की जड़ काट दी जायेगी।

हालांकि चीन पोलियो मुक्त हो चला है, फिर भी यहां पोलियो की रोकथाम का कार्यक्रम जारी है। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में एक बड़ा चिकित्सा जाल बिछ चुका है। हर वर्ष बच्चों को स्वास्थ्य केन्द्र में इकट्ठा कर पोलियो निरोधक गोली पिलायी जाती है, या टीका लगाया जाता है। पोलियो को रोकने का यह उपाय सरल, सस्ता और कारगर है।

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में परम्परागत रीति-रिवाजों का समादर किया जाता है। तिब्बती लोग अपने रीति-रिवाजों का पालन करती गतिविधियां करते हैं। वे हर वर्ष तिब्बती नववर्ष उत्सव, शाक्यमुनि की स्मृति में सगदावा उत्सव, फसल काटने के समय वांगगो उत्सव और दही का मजा उठाने के लिए श्वेतन उत्सव मनाते हैं। इस के अतिरिक्त वहां और धार्मिक उत्सव भी मनाए जाते हैं। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में तिब्बतियों और हान लोगों के बीच शादी का इतिहास बहुत पुराना है। सातवीं सदी के शुरू में राजा सुनजानकानबू ने तिब्बत राजवंश की स्थापना की। उन्होंने थांग राजवंश के सम्राट से उनकी बेटी के साथ विवाह बंधन बांधने का निवेदन किया।थांग सम्राट ने यह निवेदन स्वीकार कर राजकुमारी वनछंग का सुनजानकानबू के साथ विवाह कराया। 5000 से अधिक नौकर, शिल्पकार राजकुमारी के साथ तिब्बत गए। राजकुमारी के दहेज में ऐसे अनाज, फलों व साग-सब्जियों के बीज भी थे, जो तत्कालीन तिब्बत में उपलब्ध नहीं थे। इस के अतिरिक्त चीनी उपचार पद्धतियों, वनस्पतियों और खगोल व पंचांग के बारे में बड़ी संख्या में पुस्तकें भी शामिल थीं। राजकुमारी वनछंग और तिब्बती नरेश सुनजानकानबू के विवाह से तिब्बत के आर्थिक व सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा मिला। यह तिब्बतियों और हान लोगों के बीच विवाह की शुरुआत थी। आज भी दोनों जातियों के बीच विवाह होता है। तिब्बत में तिब्बती व हान लोगों के अतिरिक्त ह्वेई, मनबा,लोबा, नू जैसे जातियों के लोग बसे हुए हैं। इन जातियों के लोगों के साथ भी तिब्बतियों का विवाह मामूली बात है।

तिब्बत में लोगों को धार्मिक विश्वास का पूरा अधिकार है। स्वायत्त प्रदेश के अधिकांश तिब्बती, मनबा, लोबा और नाशी लोग बौद्ध मत के अनुयाई हैं। साथ ही वहां मुसलमानों और कैथोलिकों की भी बड़ी संख्या हैं।

वर्तमान में स्वायत्त प्रदेश में कुल 1700 बौद्ध मठ हैं, इन में रहने वाले भिक्षुओं और भिक्षुणियों की संख्या करीब 46000 है। मसजिदों की संख्या 4 है और मुसलमान आबादी 3000। एक कैथोलिक चर्च हैं और 700 कैथोलिक।

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