चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा, गेन सू प्रांत का लाफूलन शहर औऱ सी छ्वेन प्रांत का दे ग नामक स्थान चीन में तिब्बती संस्कृति के तीन प्रमुख केंद्र हैं। इन तीनों जगहों में बौद्धसूत्र का प्रकाशन करने वाली संस्थाएं हैं। इनमें से दे ग बौद्ध सूत्र प्रेस अपने विशेष रखरखाव और श्रेष्ठ छपाई के लिए सब से प्रसिद्ध है।
चीन के दक्षिण-पश्चिमी प्रांत सी छ्वेन के गेनज़ी तिब्बती प्रिफेक्चर की इसी नाम की काउंटी से प्रस्थान कर 5050 मीटर ऊंचे छ्वेअरशेन पहाड़ को पार करने के बाद हम आखिकार तिब्बती वीर केसार की जन्मभूमि द गे पहुंचे। दे ग बौद्धसूत्र प्रेस का तिब्बती नाम दे ग बा भवन है, तिब्बती भाषा में दे ग का मतलब है अच्छा स्थल। इस भवन का कुल क्षेत्रफल लगभग 3000 वर्गमीटर है।यह एक पुरानी तिमंजिला इमारत है। दे ग बौद्धसूत्र प्रेस के प्रधान श्री छोंग जा ने तिब्बती भाषा में श्री छोंग जा ने बताया कि दे ग बौद्ध सूत्र प्रेस की स्थापना हुए कोई 200 वर्ष हो चुके हैं। छिंग राजवंश के योंगजन सम्राट के शासन काल में वर्ष 1729 में दे ग के 12वें मुखिया छ्वे जी तंग बा ज रन ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए कई हजार जाने-माने तिब्बती बौद्धों को इकट्ठा कर इस भवन का निर्माण शुरू किया। इस के बाद, अन्य स्थानीय अधिकारी इस भवन का विस्तार करते रहे। आज दे ग बौद्ध सूत्र प्रेस देश-विदेश में तिब्बती संस्कृति के भंडार के रूप में विख्यात है।
जब हम ने दे ग बौद्धसूत्र प्रेस की इमारत में प्रवेश किया, तो घी की सुगन्ध हमारे नथुनों में भर आयी। इस भवन की प्रथम मंजिल बौद्ध सूत्रों की छपाई के लिए इस्तेमाल होने वाली उभरवां पट्टियोंत को धोने की जगह है। दूसरी मंजिल में बौद्ध सूत्रों की छपाई होती है,जबकि तीसरी मंजिल में मुख्य कारखाना है। जब हम लकड़ी की छोटी-छोटी सीढ़ियों से दूसरी मंजिल पहुंचे, तो घी के दीपक की धुंधली रोशनी में हम ने देखा कि इमारत की छत तक पहुंचने वाली लकड़ी की आलमारियों में बौद्ध सूत्रों के प्रकाशन में प्रयुक्त उभरवां पट्टियां रखी हैं।
प्रेस के मजदूरों ने बताया कि वहां कुल 830 से ज्यादा शास्त्रीय ग्रंथ सुरक्षित हैं और बौद्ध सूत्रों की उभरवां पट्टियों की संख्या तीन लाख से ज्यादा है. वहां न केवल तिब्बती बौद्ध धर्म की विभिन्न शाखाओं के शास्त्रीय ग्रंथ रखे हैं, तिब्बती जाति के कई सांस्कृतिक, वैज्ञानिक व तकनीकी ग्रंथ भी हैं। दे ग की इस प्रेस में रखे ग्रंथों में तिब्बती जाति के इतिहास, राजनीति, धर्म, अर्थतंत्र, चिकित्सा, भौतिक विज्ञान आदि विषयों के ग्रंथ शामिल हैं। इसीलिए, वह तिब्बती संस्कृति का भंडार माना जाता है। दे ग के अनेक मुखिया तिब्बती बौद्ध धर्म की बन पो, निंग मा, गे लु, सागा और ग च्वू शाखाओं के अनुयायी रहे। उनके इस धर्म की इन पांच शाखाओं के अपनाने के कारणँ ही दे ग की प्रेस अपनी स्थापना की शुरुआत से तिब्बती बौद्ध धर्म की विभिन्न शाखाओं के मशहूर धार्मिक ग्रंथ सुरक्षित करती रही। वहां तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध ग्रंथ गेनजुर और देनजुर के अलावा कई चित्र व कविताएं भी रखी हैं। इन के अलावा, यहां लोग भारत के दुर्लभ बौद्ध धर्म के स्रोत, चिकित्सा शास्त्र के चार ग्रंथ तथा तीन भाषाओं संस्कृत, उर्दू और तिब्बती में लिखे गये पोरोबाछ्येनसुंग नामक बौद्ध धर्म के ग्रंथ आदि अनेक मूल्यवान पुस्तक देख सकते हैं।
दे ग की प्रेस में बौद्ध सूत्रों की छपाई के लिए इस्तेमाल होने वाली सभी पट्टियां ह्वा नामक पेड़ की लकड़ी से बना कर रखी गयी हैं। इन में से कुछ की उम्र इस प्रेस के इतिहास से भी पुरानी है। कई सौ वर्ष गुजरने के बाद भी वे पूरी तरह सुरक्षित हैं। लोगों के लिए यह एक अनोखी बात ही है। प्रेस की एक कर्मचारी सुश्री छिंग छ्वो ने बताया कि इन पट्टियों को काटने से पहले इन्हें विशेष उपचार दिया जाना जरूरी होता है।
उन्होंने कहा,सब से पहले, इन्हें तीन महीनों के लिए पशु मल में रखा जाता है और इस के बाद घी में भिगोया जाता है। इससे इनका आकार वर्षों के बाद भी नहीं बदलता और इन्हें कीड़ों से भी बचाया जा सकता है। इतना ही नहीं, हर बार छपाई के बाद इन्हें अच्छी तरह धोना भी जरूरी होता है और फिर दोबारा घी में भिगोया जाना भी आवश्यक होता है। इसीलिए 200 वर्षों में भी ये पहले की ही तरह बनी हुई हैं।
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