दक्षिण पश्चिमी चीन का एक ऐसा स्थान है , जहां चांदनी रात में भी पुस्तक पढ़ी जा सकती है , इस स्थान का नाम रखा गया है चांदनी नगर । नगर में एक मशहूर गायिका रहती है, जिसे स्थानीय लोग चांद की पुत्री कहलाते हैं । यही गायिका चीन की ई जाति की प्रसिद्ध गायिका छ्युपीआवु है ।
छ्युपीआवु के नाम में दो अर्थ है , छ्युपी ई जाति का कुल नाम है और आवु व्यक्तिगत नाम , जो वहां के बड़े ल्यांग शान पहाड़ी क्षेत्र में पायी जाने वाली एक किस्म की सुन्दर पक्षी के नाम पर आधारित है , आवु नाम की पक्षी का चहक बहुत सुरीली है और उस के पर पंख खूबसूरत है । इसलिए छ्युपी के मां बाप ने अपनी सुन्दर बेटी का नाम आवु रखा । यह कल्पना के बाहर की बात है कि बड़ी होने के बाद छ्युपीआवु सचमुच एक मशहूर गायिका बन गयी । ई जाति के लोग नाच गान के शौकिन हैं , हर साल के मशाल उत्सव के दौरान गांव गांव में जोशीली मनोरंजन समारोह आयोजित होता है । रोशनी से जगमगते हुए पहाड़ों में गीतों , साजों बाजों की धुन तथा हर्षोल्लास की लहर दौड़ रही है । ऐसे जोशीले माहौल में पली बढ़ी छ्युपीआवु को गीत गाने का असाधारण लाभ मिला । पांच छै साल की उम्र में ही वह अपने मां बाप से तंतु वाद्य बजाने तथा लोक गीत गाने की कला सीखने लगी । पिता जी की तंतु वाद्य बजाने की कला बहुत अच्छी है , जिस ने छोटी आवु को अविस्मरणीय स्वप्न दिखाया । छ्युपीआवु को अब भी अपने बचपन की एक घटना की याद है कि एक दिन वह मां बाप से छुपी चोरी एक गाड़ी पर सवार हो कर पड़ोसी जिला शहर में किसी कला मंडली का कार्यक्रम देखने गई । इस की याद करते हुए उन्हों ने संवाददाता को बतायाः
मुझे भी नहीं पता चला था कि किस तरह ही मैं छुपी चोरी से एक ट्रक पर चढ़ी और जिला शहर के थिएटर में घुस गई , थिएटर के रौनक माहौल और जगमगी रोशनी व्यवस्था से छोटी छ्युपीआवु बहुत प्रभावित हो गई ,कलाकारों के शरीर पर पहने हुए जातीय पहनावा इतना सुन्दर थे कि उस की कल्पना से परे है । विभिन्न जातीय कलाकारों की कला प्रस्तुति से छ्युपीआवु इतना मनोमुग्ध हो गयी कि उस ने मन ही मन में कलाकार बनने की ठान ली है ।
वर्ष 1974 में 13 साल की उम्र में छ्युपीआवु ने मेकु काऊंटी की कला मंडली में भाग लेने के लिए नाम पंजीकृत किया , इस तरह उस का कला को अपने को अर्पित करने का जीवन शुरू हो गया । चंद कुछ सालों के भीतर छ्युपीआवु ने क्रमशः मेकु काऊंटी और ल्यांग शान प्रिफेक्चर की ओर से सछवान प्रांत के सांस्कृतिक समारोहों में हिस्सा लिया और उस का नाम भी धीरे धीरे स्थानीय लोगों में मशहूर होने लगा । वर्ष 1980 में छ्युपीआवु ने सछवान प्रांत की ओर से पेइचिंग में आयोजित प्रथम अल्प संख्यक जातीय सांस्कृतिक समारोह में भाग लिया और समारोह का प्रमुख पुरस्कार यानी श्रेष्ठ कला पुरस्कार जीता । अपनी इस प्रकार की सफलता के आधार पर उसे थ्येनचिन संगीत कालेज में आगे अध्ययन का मौका मिला । वर्ष 1982 में संगीत कालेज से स्नातक होने के बाद वह केन्द्रीय जातीय नृत्य गान मंडली में दाखिला हो गई और पेइचिंग में काम करने लगी और वह भी व्यापक चीनी दर्शकों की लोकप्रिय गायिका के रूप में उभरी । वह वर्षों से चीनी केन्द्रीय टीवी यानी सी सी टीवी के वसंत त्यौहार रात्रि समारोह और सी .सी. टी.वी की देशव्यापी कला प्रदर्शन दौरा जैसे अहम सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लिया । उन्हों ने चीनी राष्ट्रीय कला मंडली के सदस्य के रूप में एशिया , यूरोप तथा अमरीका के अनेक देशों में कला प्रदर्शन किया । उन के गाना दूर से आये मेहमान तथा प्यारा मेरा चीनी राष्ट्र चीन में अत्यन्त लोकप्रिय हो रहे हैं । उन्हें चीनी दर्शकों के पसंदीदा कलाकार तथा सर्वश्रेष्ठ कलाकार के पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया । दर्शक इस तरह उन की सराहनी करते हैं कि उन का शक्ल रूप खूबसूरत हैं , आवाज सुरीली है और वेशभूशा मनोहर है । किस भी किस्म के सांस्कृतिक कार्यक्रम में भी वे अपनी ई जाति का सुन्दर पोशाक पहनती हुई दिखाई देती है , उन के सिर पर ई जाति की अलग पहचान वाला आभूषण उन का प्रतीकात्मक चिंह हो गया है । अपने हर कार्यक्रम में वे ई जाति का एक गीत गाती है ,वह चाहती है कि दर्शक उन के पहनावा तथा ई जाति के गीतों से ई जाति के बारे में ज्यादा जानकारी पा सके । वर्षों के अथक प्रयासों से यह सिद्ध हुआ है कि उन के इस प्रकार के प्रयास को ई जाति के लोगों से बड़ा समर्थन प्राप्त हुआ और देश के करोड़ों दर्शकों ने भी उन की कोशिश की सराहनी की । छ्युपीआवु ने अपनी एक रूचिकर कहानी सुना कर बतायीः
एक वसंत त्यौहार के रात्रि टीवी सांस्कृतिक समारोह में कार्यक्रम पेश करने के बाद छ्युपीआवु को एक पत्र मिला , पत्र में देश के सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश में तैनात सेना के एक जवान ने कहा कि मैं भी ई जाति का निवासी हूं , सेना में तैनाती के कारण कई सालों से घर नहीं लौटा , इसलिए वर्षों से मेरे मन में यह आशा संजोए हुई है कि वसंत त्यौहार के टीवी कार्यक्रम में आप को देख सकता हूं । आप को देखने पर मुझे यो लगा है कि मैं घर वालों से मिल चुका हूं । छ्युपीआवु ने भावविभोर हो कर कहा कि इस प्रकार के लाखों दर्शकों के प्रोत्साहन और समर्थन से ही जातीय कला के विकास के लिए कोशिश करने का उन का संकल्प और पक्का हो गया है । एक जातीय गायिका होने के नाते उन्हें अपनी जाति के श्रेष्ठ गीतों को लोगों तक पहुंचाने का फर्ज है ।
छ्युपीआवु की आवाज स्नेह से भरी है और बड़ी भावोद्वेलित है । ई जाति का गाना हमेशा ई जाति के लोगों से प्रेरणा दे सकता है । वह कहती है कि मैं राजधानी पेइचिंग के रंग मंच पर काम करती हूं , पर मैं अगली नहीं हूं , मैं पचास लाख ई लोगों का प्रतिनिधित्व भी करती हूं ।
अपनी कैरियर में असाधारण सफलता पाने की भांति छ्युपीआवु का अपना सुखमय परिवार भी है , उन के पति उन की कैरियर का दृढ़ता के साथ समर्थन करते हैं और हर कण में उन का ख्याल रखते हैं । उन की छोटी बेटी उन्ही की शक्ल सूरत पर उतरी है , प्यारी प्यारी और बहुत चंचल , वह अपनी मां की तरह बड़ी होने पर एक कलाकार बनेगी , यही छ्युपीआवु दंपति की अभिलाषा है ।
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