पांच राजवंशों और देस राज्यों के बाद के तीन सौ सालों में ल्याओ, सुङ , पश्चिमी श्या और किन राजवंशों का अस्तित्व साथ साथ कायम रहा।
उत्तरी चीन में खित्तन जाति के कुलीन लोगों ने ल्याओ राजवंश (916-1125) कायम किया। यह राज्य दो सौ साल से भी अधिक समय तक कायम रहा और उस का इलाका उत्तर में हेइलुङ नदी तक, दक्षिण में वर्तमान हपेइ प्रान्त के उत्तरी भाग तक तथा पूर्व में समुद्रतट तक फैला हुआ था। खित्तन जाति एक पुरानी जाति थी, जो वर्तमान ल्याओनिङ प्रान्त में ल्याओहो नदी के ऊपरी भाग के शारमुरुन नदी के इलाके में लम्बे समय से रहती आ रही थी। थाङ राजवंश के जमाने में उसकी शक्ति उत्तरोत्तर बढती गई और थाङ राजवंश का अन्त होते होते वह उत्तर चीन में एक बड़ी शक्ति बन गई। 907 में खित्तन सरदार आफोछी ने अपनी जाति के तमाम छोटे छोटे कबीलों को एक किया। 916 में उसने खित्तन के नाम से एक नया राज्य कायम किया और अपने को सम्राट घोषित कर दिया। उस ने लिनह्वाङफू (वर्तमान ल्याओनिङ प्रान्त के बाएं पाएरिन बैनर के आसपास) को अपनी राजधानी बनाया। बाद में इस राज्य ने दक्षिण की ओर अपनी सेना भेजकर वर्तमान हपेइ प्रान्त और शानशी प्रान्त के उत्तरी भाग तक अपना विस्तार कर लिया।
979 और 986 में ल्याओ सेना ने दो बार सुङ राजवंश की सेना को पराजित किया। बाद में सुङ और ल्याओ दोनों पक्षों ने शान्तिवार्ता के लिए अपने अपने दूत छानचओ (वर्तमान हनान प्रान्त का फूयाङ ) भेजे और एक संधिपत्र हस्ताक्षर किए, जिस के अन्तर्गत उत्तरी सुङ राजवंश ने हर साल 10,00,00 ल्याङ चांदी और 25,00,00 थान रेशमी कपड़ा ल्याओ राजवंश को देना स्वीकार कर लिया।
1125 में किन राज्य ने ल्याओ राज्य को जीत लिया। ल्याओ राज्य के आत्मसमर्पण के पहले इसी राजपरिवार का येलूताशी नामक व्यक्ति बची खुची खित्तन सेना को लेकर पश्चिम की ओर चला गया और मध्य एशिया के इलाके में अपना नया राज्य कायम किया, जिसकी राजधानी हूसिवोअड़त्वो थी जो ईली नदी के पश्चिम और छूहो नदी के दक्षिण में स्थित है। इतिहास में यह राज्य पश्चिमी ल्याओ या काला खित्तन राज्य के नाम से मशहूर है। बाद में मंगोल जाति के चंगेज खान ने इस राज्य को जीत लिया।
जब उत्तरी सुङ राज्य और ल्याओ राज्य आपस में लड़ रहे थे, तो आज के निङश्या ह्वेइ स्वायत्त प्रदेश, कानसू प्रान्त और उत्तर पश्चिमी शेनशी प्रान्त में रहने वाली छ्याङ जाति की ताङश्याङ नामक उपजाति ने पश्चिमी श्या राज्य की स्थापना की। थाङ राजवंश के अन्तिम काल से लेकर सुङ राजवंश के प्रारम्भिक काल तक चीन के सम्राट इस राज्य को मान्यता देते रहे। 1038 में इस राज्य के ली य्वानहाओ ने अपने को सम्राट घोषित कर दिया और अपने राज्य का नाम ताश्या रखा, जो इतिहास में पश्चिमी श्या के नाम से मशहूर है। उसकी राजधानी शिङछिङफू थी। इस राज्य ने उत्तरी सुङ राजवंश की शासन व्यवस्था का अनुकरण करते हुए सरकारी विभाग व दफ्तर कायम किए। इसने हान लिपि के आधार पर अपनी लिखित भाषा भी प्रचलित की। पश्चिमी श्या और उत्तरी सुङ राजवंशों के बीच कई बार लड़ाइयां हुईं, जिन में दोनों पक्षों को भारी हानि उठानी पडी। अन्ततः 1044 में दोनों के बीच सुलह हुई और ली य्वानहाओ ने अपनी सम्राट की उपाधि त्यागकर उत्तरी सुङ राजवंश द्वारा प्रदत्त श्या राज्य के स्वामी की उपाधि ग्रहण की। बदले में , उत्तरी सुङ राजवंश ने पश्चिमी श्या राज्य को हर साल 153000 थान रेशमी कपडा, 72000 ल्याङ चांदी और 30000 चिन चाय भेंट में देना स्वीकार किया। ली य्वानहाओ के मरने के बाद पश्चिमी श्या राज्य की शक्ति दिनोंदिन घटती गई और 1227 में चंगेज खान ने उसे खत्म कर दिया।
हालांकि ल्याओ और श्या राज्यों तथा उत्तरी सुङ राजवंश के बीच लगातार लडाइयां जारी रहीं, फिर भी हान जाति, खित्तन जाति और ताङश्याङ जाति के लोगों के बीच घनिष्ठ आर्थिक व सांस्कृतिक संबंध हमेशा कायम रहे। मध्यवर्ती मैदान से रेशमी कपडा , अनाज, चाय , जडी बूटी , चीनीमिट्टि के बरतन और पुस्तकें लगातार ल्याओ और श्या के इलाकों में भेजी जाती थीं तथा ल्याओ और श्या के लोगों द्वारा घोड़े, गाय बैल व ऊंट और कालीन व कम्बल आदि चीजें चीन के भीतरी प्रदेश में पहुंचाई जाती थीं।
|