बीस वर्ष की उम्र में टैकोर मौत का व्यापार शीर्षिक एक पेपर लिखा था। पेपर में बरतानवी उपनीवेशवादियों की चीन में अफीम व्यापार करने पर कड़ी निंदा की। सन उन्नीस सौ चौबीस में मैत्री की खोज के लिए चौंसठ वर्षीय टौकोर ने चीनी जनवादी क्रांति के महान नेता डाक्टर सुन यात सन के निमंत्रण पर चीन की यात्रा की।
अपने निमंत्रण पत्र में डाक्टर सुन यात सन ने कहा, यदि मुझे आप का स्वयं स्वागत करने का अवसर प्राप्त होगा, तो मैं बेहद गौरव महसूस करुंगा।
इस के केवल यह कारण नहीं है कि आप ने भारतीय साहित्य के विकास में चार चांद लगा दिया, बल्कि इस का यह भी कारण है कि आप मानव जाति के भविष्य खुशहाली के लिए भरपुर प्रयत्न कर रहे हैं।
12 अप्रैल को टैकोर एक पानी जहाज़ पर सवार हुए शांगहाई पहुंचे। शांगहाई के विभिन्न तबकों के लोगों ने उन का हार्दिक स्वागत किया। टैकोर चीन में कोई 50 दिन ठहरे। उन्गोंने खुशी खुशी शांग हाए, हांगचओ, नान चिन, पेइचिंग, थाई व्येन और हेन खो आदि शहरों की यात्रा की। यात्रा के दौरान, उन और सुप्रसिद्ध लेखक औऱ कलाकारवांग थोंग च्याओ ,श्वू जी मो और मेई लेन फांग आदि के बीच गहरी मैत्री कायम हुई । पेइचिंग में उन्होंने छिंग ह्वा युनिवर्सिटी के विद्यार्थियों के साथ दिल खोल कर बातचीत की। उन्होंने मुझे यह कारण नहीं मालूम है कि मुझे चीन को उत्साहपूर्ण व्याख्यान दिये। उन्होंने कहा , मुझे यह कारण नहीं मालूम है कि मुझे चीन को अपनी ही मातृभूमि लगती है, चीन औऱ भारत पुराने और प्रियतम भाई भाई है। 13 अप्रैल को उन्होंने शांगहाई में अपने एक भाषण में बड़े जोश के साथ चीनी श्रोताओं से कहा, मुझे पक्का विश्वास है कि आप लोगों का एक महान और उज्जवल भविष्य होगा, जो भी एशिया का भविष्य होगा। मेरी आशा है कि आप के राष्ट्र का पुनः उत्लाव हो जाएगा। टैकोर भारत चीन की परम्परागत मैत्री को बेहद कीमती समझते थे। उन की यह उत्कट अभइलाषा थी कि दोनों देश, एकजुट होकर नये एशिया का निर्माण करे। उन्होंने कहा, चीन और भारत की मैत्री और एकता, संघर्षरत एशिया का शइला है।
चीन से स्वदेश लौटने के बाद चीन भारत मैत्री को बढ़ाने के लिए उन्होंने शान्तिनिकेतन में एक चीनी कालेज खोल दिया, जिस में विशेष रुप से चीनी भाषा और साहित्य का अध्ययन किया जाता था।
सन उन्नीस सौ सैंतीस में जापानी सैन्यवादियों ने चीन के खिलाफ़ आक्रमण कारी युद्ध छेड़ दिया। टैकोर डटकरे चीनी जनता के पक्ष में खड़े होकर जापानी फाशइस्जों के आक्रमण की कड़ी भर्त्सना की। उन्होंने जापानी कवि योने नोगिछी , जिस ने जापानी साम्राज्यवादियों के अपराधों की तीव्र निन्दा की औऱ स्पष्ट शब्दों में भविष्यवाणी की। चीन अजेय है उस की जनता अपनी निष्ठा और अभूतपूर्व एकता से अपनी मातृभूमि के नये युग का सृजन कर रही है। नतीजे में जापान, अपने आक्रमण में कुल्हाड़ा उठाकर अपने ही पांव को तोड़ बैठेगा।
जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध से पहले टैकोर चीन की फिर यात्रा करने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन, युद्ध की वजह से वह चीन की फिर यात्रा नहीं कर सके थे। उन्होंने कहा था, किसी एक चीनी किसान से कहा था, अच्छा, जब आप लोगों को विजय प्राप्त होगी, तो विजय की खुशी मनाने मैं चीन जाऊंगा। अफसोस था कि सात अगस्त उन्नीस सौ इक्यावन में उन का देहान्त हो गया।
सन उन्नीस सौ इकतालिस में अपनी भृत्यथ्य्या में रवीन्द्रनाथ ने भी चीनी जनता के प्रतिरोध युद्ध के बारे में गहरी चिंता व्यस्त की। हालांकि उन्हें पक्का विश्वास था कि अन्त में चीन की विजयी होगा।
सन उन्नीस सौ छप्पन में चीनी प्रधआन मंत्री च्ओ अन लेन ने विश्वभारती का दौरा किया। उन्होंने चीनी जनता की ओऱ से रवीन्द्रनाथ ठाकुर के प्रति उदात आदर औऱ गहरी याद व्यक्त की। उन्होंने कहा चीनी जनता टैकोर के प्रति गहरा भाव रखती है।
हम टैकोर के चीनी जनता के प्रति प्रेम भाव को कमी नहीं भूल सकेंगे। हम राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए चीनी जनता सारा किये गए कठोर संघर्ष के प्रति टैकोर के समर्थन को भी कभी नहीं भूल सकेंगे।
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