• हिन्दी सेवा• चाइना रेडियो इंटरनेशनल
China Radio International Friday   Jul 25th   2025  
चीन की खबरें
विश्व समाचार
  आर्थिक समाचार
  संस्कृति
  विज्ञान व तकनीक
  खेल
  समाज

कारोबार-व्यापार

खेल और खिलाडी

चीन की अल्पसंख्यक जाति

विज्ञान, शिक्षा व स्वास्थ्य

सांस्कृतिक जीवन
(GMT+08:00) 2004-11-01 14:13:22    
 श्रोताओं की रचनाएं

cri

फतेहपुर शेखावाटी राजस्तान के श्री प्रमोद माहेश्वरी की एक कविता , शीर्षक है जन्म पर ढेरों बधाई ।

ह्वांग हो --यांगत्सी की गोदीपली ,

विश्व की प्राचीनतम जो सभ्यता ।

आज हर एक मोर्चे पर पा रही ,

नित नई ,ऊंची सुनहरी सफलता ।

दो अरब उद्यमी हाथों से संवार ,

छू रही आकाश की ऊंचाइयां ।

चार आविष्कार की उर्वर धरा ,

मापती है ज्ञान की गहराइयां ।

कोई चवालीस साल पहले उसी भू से ,

फुटती है एक ध्वनि धारा महा ।

जिस के मैत्री और शांति भाव का ,

नित्य बढ़ता जा रहा है कारवां ।

उस धरा से पुनः मिला है ,

आज फिर नायाब एक तोहफा नया ।

पुण्य ,मकरेद और महक से ओतप्रोत ,

मन मोहनी ,ज्ञानी ये श्रोता वाटिका ।

----------

मन्दसौर मध्य प्रदेश के राम प्रसाद धनगर गुर्जर ने जो छीटी कविता लिखी है , वह यहां प्रस्तुत है ।

हम दुनिया को यह बताएंगे ,

चाइना इंटरनेशनल के कार्यक्रमों में

आप ज्ञान भंडार पाएंगे ।

भारत और चीन की दोस्ती बढ़ाएंगे

हमारी भावना को दुनिया तक पहुंचाएगे ।

बाग में फूलती बहुत है , पर गुलाब जैसा नहीं ,

आकाशवाणी केन्द्र बहुत हैं , पर चाइना रेडियो जैसा नहीं ।

-----------

समस्तीपुर बिहार के पी .सी. गुप्ता की कविता , जो इस प्रकार हैः

खोल दो मन के खिड़की को ,

अब नव प्रकाश आने दो ।

कल की घटना को भूल जाए ,

आज मीत बन गले लगाने दो ।

एक दिवस ऐसा भी था जब ,

हम लोग भाई भाई बने हुए थे ।

आपस में हम सब मिलते थे ,

दो तन एक जान बने हुए थे ।

विश्व में मैत्री का उदाहरण ,

हम लोगों को दिया जाता था ।

हर्ष विभोर हो जाता था ,

जब मिलन अपना होता था ।

पर राजनीति के खेल ने ,

जुदा किया हम दोनों को ।

तब क्या बचा था जीवन में ,

सिर्फ हम लोगों को रोने को ।

पर अब स्थिति सुधर रही है ,

प्रेम का झोंका घरों में आया है ।

मत रोको उस झोंको को ,

जो मैत्री का संदेश फैलाया है ।

आगे की सोच अब आ जाओ ,

ओ मीत , तुम भेद भाव भुला कर ।

धन्य हो जाऊंगा ओ भाई मेरे ,

तुम्हारा प्रेम स्नेह को पा कर ।

------------

श्र रोहतास बिहार के राकेश रौशन द्वारा भेजा एक छोटा आलेख , शीर्षक है समय ।

हम समय को नष्ट नहीं करते , बल्कि समय हमें नष्ट करता है । समय वह संपत्ति है , जो लोग प्रत्येक मनुष्य को ईश्व की ओर से मिली है , जो लोग इस धन को उचित रीति से बर्तते हैं , वही शारीरिक सुख तथा आत्मिक आनंद प्राप्त करते हैं । इसी समय संपत्ति के सदुपयोग से एक जंगली मनुष्य सभ्य और एक सभ्य देवता स्वरूप बन सकता है । इसी के द्वारा मूर्ख विद्वान , निर्धन धनवान तथा अज्ञा अनुभवी बन सकता है । संतोष हर्ष या सुख मनुष्य को कदापि प्राप्त नहीं होता , जब तक वह उचित रीति से समय का उपयोग नहीं करता ।

समय निसंदेह एक रत्न राशि है । जो कोई इसे अपरिमित अगणित रूप से अन्धाधुन्ध व्यय करता है , वह दिन दिन अकिंचन , रिक्तहस्त और दरिद्र होता है । वह आजीवन खिन्न , व्याकुल और भाग्य को कोसता रहता है । मृत्यु भी उसे जंजाल और दुख से छुड़ा नहीं सकती । प्रत्युत उस के लिए मृत्यु का आगमन मानो अपराधी के लिए गिरफ्तारी का वारंट हो ।

सच तो यह है कि समय नष्ट करना एक प्रकार की आत्महत्या है , अन्तर केवल इतना है कि आत्मघात सर्वदा के लिए जीवन जंजाल से छुड़ा देता है और समय के दुरूपयोग से एक निर्दिष्ट काल तक जीवन मृत की दशा बनी रहती है ।

Post Your Comments

Your Name:

E-mail:

Comments:

© China Radio International.CRI. All Rights Reserved.
16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040