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(GMT+08:00) 2004-10-25 15:05:40    
डा. सुन यात्सेन

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आज के इस कार्यक्रम में लेते हैं कोआथ बिहार के राकेश रौशन, शेख जफर हसन, हरद्वार प्रसाद केशरी ने का पत्र। उन्होंने डा. सुन यात्सेन के बारे में विस्तृत जानकारी देने का निवेदन किया।

हम उनकी जिज्ञासा शांत करने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं।

डाक्टर सुन यात्सेन चीन के आधुनिक इतिहास की जनवादी क्रांति के पूर्वगामी थे। उन का जन्म 12 नवंबर, 1866 को क्वांगतुंग प्रांत के चुंगशान जिले के छ्वेईहंग गांव में हुआ था। वे किसान परिवार से थे। डाक्टर सुन यात्सेन का नाम वन था, यात्सेन उन का उपनाम था।

दस साल की उम्र में वे स्कूल में भरती हुए और वर्ष 1879 में उन्होंने होनोलूलू जाकर वहां के एक मिडील स्कूल में पढ़ाई शुरू की। डाक्टर सुन यात्सेन के बड़े भाई वहां के एक प्रसिद्ध व्यापारी थे। उन की सहायता से सुन यात्सेन ने अपना पढाई पूरी की और बाद में उनकी ही मदद से क्वांगचओ और हांगकांग के मेडिकल कॉलेजों में शिक्षा ग्रहण की। मेडिकल स्नातक होने के बाद सुन यात्सेन डाक्टर बने। मकाओ व क्वांगचओ में अपना चिकित्सा व्यवसाय चलाने के साथ वे देशोद्धार के कार्य में भी सक्रिय थे। वर्ष 1883 से 1885 के बीच हुए चीन-फ्रांस युद्ध से उतपन्न राष्ट्रीय खतरे को दूर करने में सुन यात्सेन का पूरा जोश जागृत हुआ।

वर्ष 1884 में सुन यात्सेन ने सुश्री लू मू चन के साथ शादी की।

नवंबर, 1894 में सुन यात्सेन ने छिंग राजवंश की सरकार का तख्ता उलटने और चीन गणराज्य की स्थापना के उद्देश्य से होनोलूलू में "शिंगचुंगह्वेई"नामक पार्टी स्थापित की। फरवरी 1895 में हांगकांग में इस पार्टी की शाखा स्थापित गुई, और अक्टूबर में उसने क्वांगचओ में विद्रोह के प्रयास किए। विद्रोह के प्रयास नाकाम रहने पर सुन यात्सेन विवश होकर समुद्रपार भाग निकले।

अक्टूबर 1896 में ब्रिटेन के लंदन शहर मेंछिंग सरकार के दूतावास ने सुन यात्सेन की गिरफ़्तारी की, पर ब्रिटिश दोस्तों के प्रयास से वे बच गये।

अक्टूबर 1905 में सुन यात्सेन ने ह्वांगशिंग जैसे अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर जापानी शहर टोक्यो में "शिंगचुंगह्वेई" और"शिंगह्वाह्वेई" पार्टियों के मेल से "थुंगमंगह्वेई"पार्टी की स्थापना की। सुन यात्सेन निर्वासन में प्रधान मंत्री निर्वाचित भी हुए।

वर्ष 1906 से 1911 के बीच, "थुंगमंगह्वेई"पार्टी ने दक्षिणी चीन में अनेक सशस्त्र विद्रोह चलाए। सुन यात्सेन ने इन सशस्त्र विद्रोहों की रणनीति तैयार की, और समुद्रपार से इस के लिए वित्तीय सहायता जुटाने का भी प्रयास किया। हालांकि यह विद्रोह नाकाम रहे, पर इससे 清 सरकार को भारी चोट पहुंचीई।

10 अक्टूबर 1911 को, जब छिंग सरकार का तख्ता उलटने के उद्देश्य सेऊझांग विद्रोह का आरम्भ हुआ, तो विभिन्न प्रांतों के क्रांतिकारी उस में शामिल हुए। परिणामस्वरूप ऊझांग विद्रोह की लहर ने चीन के अंतिम 清 राजवंश का तख्ता उलट दिया। इस के साथ चीन में कोई 2000 वर्ष पुरानी सामंती साम्राज्य व्यवस्था खत्म हो गई।

यह खबर पा कर सुन यात्सेन दिसंबर में स्वदेश लौटे, तो उन्हें 17 प्रांतों के प्रतिनिधियों ने चीन गणराज्य का अंतरिम राष्ट्रपति निर्वाचित किया। 1 जनवरी 1912 को, संत यातसेन ने नानचिंग में अपने पद की शपथग्रहण की, और चीन गणराज्य की अंतरिम सरकार गठित की। चीन के इतिहास में यह पहली गणराज्य सरकार थी।

13 फरवरी 1912 को साम्राज्यवाद और सामंतवाद के दबाव में सुन यात्सेन को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। 1 अप्रैल को सुन यात्सेन अंतरिम राष्ट्रपति के पद से मुक्त हुए और य्वान शी खेई ने उनका स्थान लिया। अगस्त में थुंगमंगह्वेई के आधार पर कोमिनतांग पार्टी की स्थापना की गई, और संत यातसेन पार्टी के महा सचिव निर्वाचित हुए।

वर्ष 1915 में श्री डाक्टर सुन यात्सेन ने लू मू चन से तलाक लिया और सुश्री सुंग छिंग लिंग के साथ विवाह किया।

जुलाई, 1917 में उत्तरी युद्ध-सामंति सरकार त्वानछी रूई ने कांग्रेस और अंतरिम संविधान को भंग कर दिया। सुन यात्सेन ने अंतरिम संविधान की रक्षा के लिए उत्तरी युद्ध-सामंति सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ा। उन्होंने में सैनिक सरकार की स्थापना की, और जनरलीसिमो का पद संभाला। 5 मई 1918 में वे जनरलीसिमो का पद छोड़ने को विवश हुए और शंघाई चले गए। वर्ष 1919 में उन्हें प्रधान मंत्री नियुक्त किया गया।

नवंबर 1920 में उन्होंने क्वांगचओ वापस लौट कर फिर से अंतरिम संविधान की सुरक्षा का अभियान शुरू किया। मई, 1921 में विशेष कांग्रेस ने उन्हें विशेष राष्ट्रपति का पद संभाल दिया। वर्ष 1923 में उन्होंने क्वांगचओ में तीसरी बार सत्ता की स्थापना की, और जनरलीसिमो का पद संभाला। इस के तुरंत बाद जनवादी क्रांति को गति देने के लिए उन्होंने रूसी कम्युनिस्ट पार्टी और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सुझाव पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ सहयोग करने का फैसला लिया।

जनवरी, 1924 में फ़ंग यू श्यांग ने पेइचिंग में शासन की बागडोर हाथ में ले ली, और श्री डाक्टर सुन यात्सेन को पेइचिंग आने का निमंत्रण लिया। और12 मार्च 1925 को, यकृत के कैंसर के कारण डाक्टर सुन यात्सेन कापेइचिंग में निधन हो गया।

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