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(GMT+08:00) 2004-10-21 15:23:29    
चीनी युद्ध कला सिखाने का स्कूल

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इधर के वर्षों में चीन का बहुत तेज़ी से आर्थिक विकास हो पाया है , इस के साथ ही परंपरागत संस्कृति के प्रति भी बहुत से युवाओं की रुचि बढ़ती जा रही है । चीन के मशहूर कूंफू यानी युद्ध कला भी परंपरागत संसकृति का एक अंश है । कुछ क्षेत्रों में विशेष तौर पर युद्ध कला सिखाने का स्कूल भी खोला गया है । श्री ली मींग ची पूर्वी चीन के शानतुंग प्रांत के लाइचाओ शहर में मशहूर कूंफू कलाकार हैं , उन्हों ने वर्ष 1992 में स्वयं से पूंजी एकत्र कर युद्ध कला स्कूल स्थापित किया । इधर के सालों में श्री ली के स्कूल में से कई हजार युद्ध कलाकार स्नातक हो गये हैं , उन के कुछ ने चीन की राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय कूंफू प्रतियोगिताओं में खिताब भी जीता है । आज श्री ली का युद्ध कला स्कूल देश में दस सब से मशहूर कूंफू स्कूल माना जा रहा है । श्री ली के कूंफू स्कूल में दो हजार छात्र पढ़ रहे हैं । रोज़ सुबह छात्र पांच बजे उठते हैं , और फिर दस मिनटों के भीतर अपनी व्यक्तिगत कामकाज पूरा कर अभ्यास शुरू करते हैं । एक घंटे के बाद उन की सांस्कृतिक पढ़ाई भी होने लगी । श्री ली मींग ची ने अपने छात्रों के अध्ययन के प्रति संतोष प्रकट करते हुए कहा , सभी कूंफू कलाकारों को सांस्कृतिक पढ़ाई भी करनी ही चाहिये । क्योंकि युद्ध कलाकारों को सिर्फ सांस्कृतिक अध्ययन करके कूंफू का सत्य महसूस हो सकता है । श्री ली के चीनी युद्ध कला स्कूल का मकसद, संस्कृति और युद्धकला दोनों को महत्व करना है । हरेक छात्र को कूंफू का अभ्यास करने के साथ ही सांस्कृतिक अध्ययन करना ही पड़ेगा । और कूंफू के भी सिद्धांत और कसरत दो भाग हैं । छात्र अपनी स्थिति के मुताबिक भिन्न भिन्न उपाधियों को चुन सकते हैं । रोज़ चार बजे स्कूल में छात्र कूंफू का अभ्यास शुरू करते हैं । वे अपने अध्यापकों के मार्गदर्शन से कठोर अभ्यास करते हैं । ये छात्र सब अपनी दिल्चस्पी से युद्धकला स्कूल में अध्ययन करने आये हैं । स्कूल के अध्यापकों ने कहा कि छात्रों को स्नेहतापूर्ण भावना सिखाना बहुत महत्वपूर्ण है । क्योंकि अगर युद्ध कलाकार अपनी कौशल का दूसरे के साथ मारने में इस्तेमाल करे , तो यह युद्ध कला के सिद्धांत का उल्लंखन हो जाएगा । चीनी युद्ध कला स्कूल में ची यून थाओ और थान सूंग थाओ दो युवा हैं । दोनों घनिष्ठ मित्र हैं । उन में एक शानतुंग प्रांत की कूंफू प्रतियोगिता का चैंपियनशिप विजेयता है और दूसरे ने राष्ट्रीय प्रतियोगिता का खिताब जीता । दोनों अब अच्छे दोस्त हैं , पर पहले उन दोनों ने अकसर हल्की सी बातों पर मारपीट की थी । स्कूल में दाखिल होने के बाद दोनों ने युद्ध कला सीखने के साथ साथ कूंफू की भावना व सिद्धात की जानकारी भी हासिल किया है । इन दो लड़कों ने कहा कि पहले उन की दिमाग में कूंफू दूसरों के साथ मारने का माध्यम था । चीनी युद्ध कला स्कूल में दाखिल होने के बाद उन्हों ने यह सीख लिया कि युद्ध कला का इस्तेमाल , दूसरे के खिलाफ आक्रमण करने नहीं , पर व्यायाम करने और आत्म रक्षा करने के लिए ही किया जाना चाहिये । क्योंकि मारपीट के जरिये समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकेगा , और बल के प्रयोग से बहुत सी समस्याओं को और जटिल बनाया जाएगा । लड़का ची यून थाओ ने कहा कि स्कूल में आने से पहले उन का विचार बहुत सरल था । तब उस ने सोचा था कि वह कूंफू सीखकर दूसरे के आक्रमण का मुकाबला कर सकता था । लेकिन स्कूल में पांच साल सीखने के बाद उसे महसूस है कि कूंफू कोई सरल कौशल नहीं , पर दर्शनशास्त्र ही है । कूंफू सीखने के बाद मेरा विचार भी बदल गया है । अब मैं पहले से अधिक खोला बना हूं और मैरे साथियों के साथ संबंध भी बहुत सुधर गये हैं । लड़की डाइश्वांग इस युद्ध कला स्कूल में इंटलेजेंट कहलाती है । उस ने अपने श्रेष्ठ लेख के साथ चीनी राष्ट्रीय लेख प्रतियोगिता तथा राष्ट्रीय जूडो प्रतियोगिता में भाग लिया और खिताब जीता । लेकिन जब वह प्राइमरी स्कूल में पढ़ रही थी , वह माता पिता की आंखों में तकलीफ पहुंचाने की लकड़ी थी । माता पिता ने अपनी इस नटखट लड़की की देखभाल नहीं कर सकी , तो उसे चीनी युद्ध कला स्कूल में भरती कराने सोचा । लेकिन स्कूल में कई साल सीखने के बाद लड़की बिल्कुल बदल गयी है । उस ने स्कूल में कूंफू सीखने के अतिरिक्त सांस्कृतिक उपाधियां सीखने में भी बहुत कठोर काम किया । अब डाइश्वांग साथियों व अध्यापकों की आंखों में सुन्दर , नम्र और बुद्धिमान लड़की ही है । उस का अपना विचार है कि युद्ध कला स्कूल में से स्नातक होने के बाद वह चीनी जन पुलिस विश्वविद्यालय में दाखिल होगी और बाद में पुलिस का काम करेगी । चीनी युद्ध कला स्कूल के स्थापक व प्रमुख श्री ली मींग ची ने कहा कि उन के स्कूल को भी विश्व में प्रविष्ट होने की योजना है । बाद में चीनी युद्ध कला स्कूल को एक अंतर्राष्ट्रीय स्कूल बनाया जाएगा , और अधिकाधिक विदेशी छात्र इस स्कूल में चीनी कूंफू सीखने आएंगे । अब तक अमेरिका व फ्रांस में भी चीनी युद्ध कला स्कूल की शाखाएं स्थापित हो चुकी हैं । स्कूल में अमेरिका , कनाडा , इटली , होलैंड , जर्मनी , इजराइल , कोरिया गणराज्य और जापान आदि दसेक देशों के छात्र पढ़ रहे हैं । सैकड़ों विदेशी छात्रों ने चीनी युद्ध कला स्कूल में अल्प समय के लिए अध्ययन या आदान प्रदान करने आये हैं । चीनी युद्ध कला स्कूल के कई प्रतिनिधि मंडल भी कोरिया गणराज्य , सिंगापुर , अमेरिका और कनाडा गये हैं । विशेषज्ञों का मानना है कि चीनी कूंफू का प्राइमरी , मिडिल स्कूलों में और यहां तक कालेज़ों में प्रविष्ट कराया जाने का बड़ा लाभ है । क्योंकि कूंफू का अभ्यास करने से न सिर्फ छात्रों को अधिक तन्दुरूस्त बनाया जा सकता है , बल्कि छात्रों की दिमाग को भी और अधिक शांत बनाया जा सकता है ।